भारत के संविधान को अपनाए जाने की 75वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर, सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें 1976 के संशोधन के तहत प्रस्तावना में जोड़े गए ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को हटाने की मांग की गई थी. सामान्य परिस्थितियों में, शीर्ष अदालत के इस स्पष्ट फैसले से संविधान के खिलाफ चल रहे अभियान पर विराम लग जाना चाहिए था. लेकिन, कुछ ही दिनों बाद, इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक मौजूदा न्यायाधीश की ओर से अत्यंत कट्टरपंथी और असंवैधानिक बहुसंख्यकवादी बयान सामने आया.