वर्ष - 33
अंक - 50
07-12-2024

6 दिसंबर, 2024 को बाबरी मस्जिद को हिंदुत्व भीड़ द्वारा गिराए जाने की 32वीं वर्षगांठ है, जिसे भाजपा के बड़े नेताओं ने खुलेआम समर्थन दिया था. यह देश में सांप्रदायिक फासीवाद का एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया. यह विध्वंस उस समय के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा राष्ट्रीय एकता परिषद से किए गए वादे के बावजूद हुआ कि उनकी सरकार बाबरी मस्जिद की सुरक्षा के लिए पूरी तरह जिम्मेदार होगी.

इस घटना को और भी गंभीर इसलिए माना गया क्योंकि यह वादा 15 नवंबर 1991 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हिस्सा था. यह आदेश उन याचिकाओं के संदर्भ में था, जिनमें 7 अक्टूबर और 10 अक्टूबर 1991 की अधिसूचनाओं को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत फैजाबाद में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के निकट कुछ संपत्ति को अयोध्या में तीर्थस्थलों के विकास और उन्हें सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से अधिग्रहण के लिए अधिसूचित किया गया था.

जब उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह और भाजपा सरकार ने अपना वादा पूरा नहीं किया, तो सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 1994 में उन्हें अवमानना का दोषी ठहराया और सिर्फ एक दिन की कैद और 2000 रुपये के जुर्माने की सांकेतिक सजा दी. लेकिन जिन बड़े नेताओं ने बाबरी मस्जिद गिराने के लिए भीड़ को उकसाया था, जैसे लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी और अन्य कई, जो विध्वंस के बाद कैमरे पर खुशी मनाते नजर आए, उन्हें सितंबर 2020 में सीबीआई कोर्ट ने बरी कर दिया.

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के उस फैसले के बाद आया, जिसने मस्जिद के गिराए जाने को कानून का गंभीर उल्लंघन मानते हुए भी विवादित जमीन का मालिकाना हक उन्हीं लोगों को दे दिया, जिन्होंने मस्जिद का विध्वंस किया था. विध्वंस करने वालों का मकसद पूरा कर दिया गया, लेकिन न्याय की मांग करने वालों को सिर्फ ‘मुआवजे’ के तौर पर मस्जिद बनाने के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन का प्रस्ताव दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में खास तौर से पूजा स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 का जिक्र किया, जिसे संसद ने दो उद्देश्यों के लिए लागू किया था. पहला, यह किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप में बदलाव करने पर रोक लगाता है. दूसरा, यह यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी तय करता है कि 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थलों का जो धार्मिक स्वरूप था, उसे बनाए रखा जाए.

संविधान पीठ ने माना कि पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप को संरक्षित रखने की गारंटी देकर, संसद ने यह सुनिश्चित किया है कि औपनिवेशिक शासन से मिली स्वतंत्रता, अतीत के अन्यायों को दूर करने का संवैधानिक आधार प्रदान करती है. इससे हर धार्मिक समुदाय को यह विश्वास मिलता है कि उनके पूजा स्थलों का संरक्षण होगा और उनके स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.

इस कानून के तहत, संविधान पीठ के अनुसार, एकमात्र अपवाद यह है कि यदि किसी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप में 15 अगस्त 1947 के बाद बदलाव हुआ हो और इस मुद्दे पर कोई मामला, अपील, या कार्यवाही पूजा स्थल अधिनियम लागू होने से पहले ही लंबित हो.

तब कहा गया था कि अयोध्या विवाद और पूजा स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 के लागू होने के बाद सांप्रदायिक सौहार्द और मेल-मिलाप का रास्ता खुलेगा. लेकिन संघ ब्रिगेड के उस नारे को नजरअंदाज कर दिया गया, जो बार-बार दोहराया जाता है – ‘अयोध्या तो एक झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है.’

अब संघ परिवार ने इससे भी आगे बढ़ते हुए दोहरी रणनीति अपनाई है – एक ओर अदालतों के रास्ते मुकदमे कर, तो दूसरी ओर धार्मिक भावनाओं को भड़काकर. इसका असर ज्ञानवापी मस्जिद, संभल मस्जिद और अजमेर शरीफ दरगाह जैसी जगहों पर दिखाई दे रहा है. विश्व हिंदू परिषद ने करीब 3000 मस्जिदों की सूची तैयार की है, जिन्हें वे मंदिर में बदलना चाहते हैं.

ऐसे में यह आशंका गहरी हो जाती है कि संघ ब्रिगेड इतिहास को दोबारा लिखने और पूरे भारत को भगवा रंग में रंगने की अपनी कोशिश में असंख्य दीवानी मुकदमों और सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देगा.

संघ ब्रिगेड की सांस्कृतिक आक्रामकता का उद्देश्य स्पष्ट है – भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विविधता को खत्म कर पूरे देश को एक ही रंग में रंगना. उसके चिर-प्रतिक्षित सपने के साथ कोई समझौता नहीं हो सकता. इस कोशिश में वह शहरों और सड़कों के नाम बदल रहा है, इतिहास की किताबें फिर से लिख रहा है, और सार्वजनिक जीवन से मुसलमानियत के हर निशान को मिटाने की कोशिश कर रहा है.

हम उम्मीद करते थे कि न्यायपालिका 1991 के कानून का पालन करेगी, जो भारत को धर्मनिरपेक्ष रखने के लिए बनाया गया था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. न्यायपालिका अब उन न्यायाधीशों के प्रभाव में आती दिख रही है जो हिंदुत्व विचारधारा को बढ़ावा देते हैं और कानून का आधार संविधान की जगह धर्मग्रंथों में खोजते हैं.

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने खुद स्वीकार किया था कि उन्होंने बाबरी मस्जिद मामले का हल निकालने के लिए भगवान से प्रार्थना की थी. उन्होंने यह बात एक सार्वजनिक मंच पर कही थी, जिससे हिंदुत्व समर्थक नेता बहुत खुश हुए थे.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने सभी को चौंका दिया. कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताई, लेकिन साथ ही संभल की ट्रायल कोर्ट को मस्जिद समिति की याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट में सूचीबद्ध होने तक मामले पर आगे ना बढ़ने को कहा. इस फैसले से साफ है कि न्यायपालिका से उम्मीदें काफी कम हो गई हैं.

संभल मस्जिद के आसपास की घटनाएं संघ परिवार की एक पुरानी रणनीति को दोहराती हैं – एक ऐतिहासिक मस्जिद को निशाना बनाकर यह दावा किया जाता है कि वह एक ध्वस्त मंदिर के ऊपर बनाई गई थी. फिर, 1991 के कानून को दरकिनार करते हुए, एक ट्रायल कोर्ट के जज एक सर्वेक्षण का आदेश देते हैं, जो ‘जय श्री राम’ के नारों के बीच कुछ ही घंटों में पूरा कर लिया जाता है.

इस अत्याचार के विरोध में मुस्लिम समुदाय जब सड़कों पर उतरा तो पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज और गोलीबारी की. इस अत्यधिक बल प्रयोग में पांच युवा मुस्लिमों की जान चली गई. सरकार इस हिंसा को विरोध प्रदर्शन को काबू करने के लिए उठाया गया कदम बताकर सही ठहराने की कोशिश कर रही है. लेकिन सच्चाई यह है कि मुस्लिम समुदाय को जानबूझकर निशाना बनाया जाता है, जबकि पुलिस हिंदुत्व समर्थकों और कांवड़ियों के खिलाफ बार-बार होने वाली हिंसक घटनाओं, जैसे स्कूली बच्चों वाली बसों पर पत्थरबाजी, के लिए इतनी सख्त कार्रवाई नहीं होती.

इसी बीच, हिंदुत्ववादी ताकतें मुस्लिम धार्मिक स्थलों को निशाना बनाने की एक नई साजिश रच रही हैं. उत्तराखंड में, मुस्लिम मस्जिदों पर हमले के लिए ‘भूमि जिहाद’ जैसा झूठा आरोप लगाया जा रहा है, जिसमें दावा किया जाता है कि ये अवैध रूप से बनाई गई हैं. इस साल अक्टूबर में, उत्तरकाशी में एक मुस्लिम व्यक्ति की निजी ज़मीन पर बनी मस्जिद को गिराने के लिए संयुक्त हिंदू संगठनों ने हिंसक प्रदर्शन किया. इस घटना में कई पुलिसकर्मी घायल हुए, लेकिन प्रशासन ने एक भी गोली चलाने से परहेज किया.

6 दिसंबर, 2022, बाबा साहेब अम्बेडकर की 68वीं पुण्यतिथि भी है, जिन्होंने चेतावनी दी थी – ‘यदि हिंदू राज एक हकीकत बन जाता है, तो निस्संदेह यह इस देश के लिए सबसे बड़ी त्रासदी होगी.’ बाबा साहेब अम्बेडकर ने जिस विनाशकारी त्रासदी की चेतावनी दी थी, वह आज हमारे सामने है. चुनौती यह है कि भारत को इस विनाश से बचाएं और इस सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों के खिलाफ हम सब मिलकर इस खतरे का मुकाबला करें.