हमें न्याय चाहिए : भारत में महिलाओं की सुरक्षा और आजादी के लिए संघर्ष का नया दौर

स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर कोलकाता के आरजी कार मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (आरजीकेएमसीएच) में एक 31-वर्षीया पोस्टग्रेजुएट प्रशिक्षु डॉक्टर के भयावह बलात्कार व हत्या कांड ने पश्चित बंगाल में बड़ी जन दावेदारी पैदा कर दी है जिसे महत्वपूर्ण महिला पहलकदमी ‘रिक्लेम द नाइट’ –एक अंतरराष्ट्रीय आन्दोलन से लिया गया नाम – से बल मिल रहा है. इस 15 अगस्त के दिन आज के भारत में महिलाओं की आजादी, महिलाओं की सुरक्षा और मर्यादित व लोकतांत्रिक जीवन के अनिवार्य महिला अधिकारों पर पूरा जोर दिया गया था.

समानता बनाम संघ : आधुनिक भारत में विचारों का बुनियादी संघर्ष

‘जाति व्यवस्था भारत के एकीकरण का कारक है और जो कोई जाति व्यवस्था पर हमला करता है, वो भारत का दुश्मन है’ – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिंदी मुखपत्र पांचजन्य ने ऐसा एक संपादकीय टिप्पणी में कहा है. हाल के वर्षों में जाति व्यवस्था का ऐसा खुलमखुल्ला महिमामंडन संभवतः नहीं हुआ है. यह संपादकीय भारत की आजादी की 77वीं वर्षगांठ की पूर्व बेला पर आया है. आरएसएस, जो अगले साल अपना शताब्दी वर्ष मनाएगा, जो आजकल भारत की ‘आधिकारिक (सरकारी) विचारधारा’ का संरक्षक है, की इस टिप्पणी को एक अलग-थलग दक्षिणपंथी प्रतिगामी शेखी मानकर हल्के में नहीं लिया जा सकता.

एससी/एसटी आरक्षण के अंदर उप-वर्गीकरण से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

1 अगस्त 2024 को सर्वोच्च न्यायालय की सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से एक फैसला सुनाते हुए आरक्षण के मकसद से अनुसूचित जातियों-अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण की वैधता को सही करार दिया. बहरहाल, कोर्ट ने इस मामले में निरपेक्ष स्वतंत्रता नहीं दी है.

बजट 2024 : गरीब और मध्यम वर्गों की कीमत पर अति-धनिकों का जश्न

मोदी सरकार की तीसरी पारी के पहले पूर्ण बजट ने इस शासन के मध्यमवर्गीय समर्थन आधार के और भी बड़े हिस्से को काफी हद तक भ्रममुक्त और आक्रोशित कर दिया है. यहां तक कि गोदी मीडिया के ऐंकरों ने भी वित्त मंत्री के समक्ष असहज करने वाले प्रश्न उठाने शुरू कर दिये हैं. यह बजट ऐसे चुनाव के बाद आया है जिसमें आर्थिक संकट की लंबी छाया स्पष्ट दिख रही थी और शासक पर्टी ने अपना बहुमत खो दिया है. इसीलिए इस बजट से यह आशा नहीं थी कि वह देश में व्याप्त चिंताओं के प्रति खामोश रहेगा.

बांग्लादेश में छात्र विप्लव

बांग्लादेश में ऐतिहासिक छात्र उभार दिख रहा है. इस विक्षोभ को जन्म तो दिया उच्च न्यायालय के फैसले ने जिसके जरिये सरकारी नौकरियों में पुरानी कोटा प्रणाली फिर से बहाल की गई है, किंतु राज्य आतंक और गैर-न्यायिक हिंसा के जरिये आन्दोलन का दमन करने के सरकारी प्रयासों ने इस आन्दोलन को उग्र कर दिया और इसे दावानल की भांति बांग्लादेश के विश्वविद्यालय कैंपसों में तथा जिला मुख्यालयों में फैला दिया. यह साफ दिख रहा है कि इस आन्दोलन की लहर छात्र समुदाय और कोटा के मुद्दे से परे व्यापक जनता के बीच पहुंच रही है और लोकतंत्र तथा बदलाव की गहरी आकांक्षा को जन्म दे रही है.

उप-चुनाव के नतीजे और आगे की चुनौतियां

लोकसभा चुनाव के कुछ सप्ताह बाद ही तेरह विधानसभा सीटों के लिए उप-चुनाव हुए और भाजपा इनमें से केवल दो सीटों पर काफी कम मतों के अंतर से जीत पाई. उप-चुनाव के ये नतीजे यकीनन 2024 के जनादेश की ही संपुष्टि करते हैं. इन नतीजों का महत्व इस दृष्टिकोण से भी बढ़ जाता है कि मोदी शासन इस जनादेश की भावना को उद्दंडतापूर्वक खारिज कर रहा है जैसा कि सरकार के रवैये और घोषणाओं तथा जनता को डराने-धमकाने के लिए हो रहे माॅब लिंचिंग और बुलडोजर विध्वंस की ताजातरीन घटनाओं से परिलक्षित हो रहा है.

दो चुनावों की कहानीः फासीवादी दमन रोकने के लिए फ्रांस की जनता को बधाई!

अप्रैल और मई 2024 में भारत के सामने एक चुनौती थी और पूरी दुनिया इस पर नजर रखे हुए थी. 4 जून को जब भाजपा का रथ 240 पर रूका तो पूरी दुनिया में लोकतंत्र समर्थकों ने राहत की सांस ली. हालांकि, जैसे ही भारत ने फासीवादी ताकतों को आंशिक रूप से पीछे धकेल दिया, यूरोपीय संसद के चुनावों में पूरे महाद्वीप में जेनोफोबिक अति दक्षिणपंथी पार्टियों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गयी. जर्मनी में एएफडी, फ्रांस में आरएन, सत्तारूढ़ ब्रदर्स ऑफ इटली और यूरोप भर में अन्य अति दक्षिणपंथी पार्टियों ने जून की शुरूआत में यूरोपीय चुनावों में महत्वपूर्ण जीत हासिल की.