मोदी-2.0 शासन में वकीलों पर हमला

मोदी -2.0 सरकार ने लोकतंत्र और असहमति की आवाज पर हमला करने में एक महीने की भी देरी नहीं लगाई. ‘लाॅयर्स कलेक्टिन’ को फंसाने और उसे दंडित करने के दुखद प्रयास किए जा रहे हैं और सीबीआइ ने उस पर एफसीआरए के उल्लंघनों का आरोप लगाते हुए केस दायर किया है (जब कि तथ्य यह है कि मोदी सरकार ने चुनावी बौडं के जरिए राजनीतिक पार्टियों की विदेशी व काॅरपोरेट फंडिंग को बढ़ावा दिया और इसे वैधता प्रदान की है, और ऐसी फंडिंग का सबसे ज्यादा फायदा भी भाजपा ने उठाया).

बजट 2019-20 : निजीकरण, महंगाई, बेरोजगारी, असमानता व निराशा बढ़ाएगा

महंगाई को बढ़ाने वाला बजट में पहले से महंगे पेट्रोल-डीजल पर 1 रुपया प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी और 1 रुपया प्रति लीटर सेस बढ़ाया गया है. इससे माल ढुलाई व यात्री किराये पर असर पड़ेगा और आम आदमी की रोजमर्रा के उपभोग की वस्तुओं सहित हर ओर महंगाई बढ़ेगी। इसके साथ ही सोने के आयात सहित कुछ अन्य धातुओं पर भी एक्साइज ड्यूटी 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाई गई है. आयातित किताबों और मुद्रण सामग्री पर भी 5 प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी लगाई है. बजट से लगभग हर क्षेत्र में महंगाई बढ़ेगी.

मुजफ्फरपुर में स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढांचा तकरीबन नदारद है

(रमा नागराजन, टाइम्स ऑफ इंडिया, 20 जून 2019)

जब बिहार के मुजफ्फरपुर में केन्द्र और राज्य की सरकारें एक्यूट इनसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) नामक रोग (जिसे स्थानीय लोग चमकी बुखार कहते हैं) से निपटने की भागदौड़ में लगी हुई हैं, सरकारी आंकड़े बताते हैं कि जिले में सार्वजनिक स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा किस कदर चिंताजनक स्थिति में पड़ा है.

मोदीनाॅमिक्स -2.0 और बही-खाता 2019

मोदी सरकार ने अपनी पहली पारी के दौरान आर्थिक मोर्चे पर अपनी यात्रा की शुरूआत योजना आयोग को भंग करके की थी. विध्वंस और तोड़-फोड़ के इसी अभियान को लगातार जारी रखते हुए मोदी सरकार ने नोटबंदी जैसा कदम उठाया, जिसने अपनी कीमत आर्थिक तबाही के रूप में वसूल ली.

मोदी शासन की दूसरी पारी: मजदूर वर्ग पर हमले तेज हुए

श्रम कानूनों में संशोधन, भूमि अधिग्रहण कानून और सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों (पीएसयू) का निजीकरण – ये मोदी शासन की दूसरी पारी के तीन सर्वप्रमुख एजेंडा हैं. खुद अमित शाह ने इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए बैठक आयोजित की. बैठक से बाहर निकल कर श्रम मंत्री ने एलान किया कि वे लोग पहले ‘मजदूरी बिल संहिता’ और ‘पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कार्य स्थिति बिल संहिता’ पारित करेंगे और इसके बाद ‘औद्योगिक संबंध तथा सामाजिक सुरक्षा व कल्याण बिल संहिता’ का निर्माण करेंगे.

भाकपा(माले) की स्थापना के 50 वर्ष एवं चारु मजुमदार की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर

नक्सलबाड़ी के जनक, भाकपा(माले) के संस्थापक, भारतीय क्रांति के महानायक कामरेड चारु मजुमदार की शहादत के 47 वर्ष पूरा होने पर 28 जुलाई 1919 को उन्हें क्रांतिकारी श्रद्धांजलि देते हुए यहां प्रस्तुत है उनके लेखों में से कुछेक प्रासंगिक उद्धरण:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 का मसौदा: सरकार इतनी हड़बड़ी में क्यों है?

– कुमार परवेज

नरेन्द्र मोदी की दूसरी पारी की सरकार का गठन होते ही नए मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली 2017 में बनी शिक्षा सुधार मसौदा समिति के मसौदे को 1 जून 2019 को जारी कर दिया. इस पर विचार-विमर्श के लिए 31 जून तक का समय दिया गया है. मोदी सरकार की पहली पारी में जनवरी, 2015 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई शिक्षा नीति का विमर्श पत्र जारी किया था, जिसमें पंचायत से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक विमर्श-प्रक्रिया का उल्लेख किया गया था.

संस्थाबद्ध क्रूरता : जम्मू-कश्मीर में उत्पीड़न

“कोई इंसान कितनी बार मुंह फेर सकता है
और कितनी बार बहाना करेगा कि
उसने कुछ देखा ही नहीं?”

हम भारतीय कितनी कितनी बार अपना मुंह फेरें और बहाना करें कि हम कश्मीरी अवाम पर ढाए जा रहे भयावह उत्पीड़न को नहीं देख रहे हैं ?

इंसेफ्लाइटिस का बिहार में कहर : स्वास्थ्य मंत्रो के इस्तीफे की मांग पर माले-आइसा-आरवाईए-ऐपवा का बिहार में प्रतिवाद

इंत्जिनाइटिस जिसे मुजफ्फरपुर वो स्थानीय लोग ‘चमकी बुखार’ है कहते हैं, ने एक वार फिर से कहर ढाया है.  यह अजीब संयोग है कि 2014 में जब केंद्र में पहली बार नरेन्द्र मोदी की सरकार आई थी, इस बीमारी से 300 से अधिक बच्चों की मौतें हुई थी. इस बार फिर से जब मोदी सत्ता में दुबारा लौटे हैं, तो मौतों की संख्या अब तक 150 के पार कर गई है. अपना शपथ ग्रहण के बाद मोदी ने सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास का नारा दिया था, लेकिन मुजफ्फरपुर की घटना ने केंद्र व राज्य सरकार के इस दावे की पोल खोल कर रख दी है. अव्वल दर्जे की सुस्ती व घोर लापरवाही बतलाती है कि भाजपा-जदयू के नेता सत्ता के मद में चूर हैं.

आजाद भारत में भूमि सुधार और वर्तमान स्थिति

आजादी को लड़ाई वो अंतिम दौर में तेलंगाना किसान विद्रोह के जरिये देश में मुकम्मल भूमि सुधार की चुनौती कम्युनिस्टों ने पेश कर दी थी. आजादी के बाद भारत में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, मद्रास, असम एवं बाम्बे राज्य सबसे पहले अपने यहां 1949 में जमींदारी उम्मूलन बिल लाए. इन सब ने गोविन्द वल्लभ पन्त के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश जमींदारी उम्मूलन समिति की रिपोर्ट को अपने बिल का आधार बनाया. 1950 में भारत सरकार भी जमींदारी उम्मूलन कानून ले आई.