मोदी -2.0 सरकार ने लोकतंत्र और असहमति की आवाज पर हमला करने में एक महीने की भी देरी नहीं लगाई. ‘लाॅयर्स कलेक्टिन’ को फंसाने और उसे दंडित करने के दुखद प्रयास किए जा रहे हैं और सीबीआइ ने उस पर एफसीआरए के उल्लंघनों का आरोप लगाते हुए केस दायर किया है (जब कि तथ्य यह है कि मोदी सरकार ने चुनावी बौडं के जरिए राजनीतिक पार्टियों की विदेशी व काॅरपोरेट फंडिंग को बढ़ावा दिया और इसे वैधता प्रदान की है, और ऐसी फंडिंग का सबसे ज्यादा फायदा भी भाजपा ने उठाया). ‘लाॅयर्स कलेक्टिव’ के संस्थापक – एडवोकेट आनंद ग्रोवर और इंदिरा जय सिंह – दशकों पूर्व से, मोदी शासन के काफी पहले से ही, भारत में मानवाधिकार तथा नागरिक स्वतंत्रता के अग्रणी कार्यकर्ता रहे हैं, और उन्होंने साहसपूर्वक मोदी शासन को चुनौती देना तथा इस शासन के अंतर्गत संविधान की रक्षा करना जारी रखा है.
इंदिरा जय सिंह दसियों वर्ष से मजदूरों, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं और महिलाओं के अधिकारों की खातिर लड़ती रही हैं. उन्होंने 1983 में बलात्कार कानून में प्रगतिशील बदलावों के लिए काम किया, ईसाई महिलाओं के उत्तराधिकार के अधिकार के लिए सफल संघर्ष में मैरी राॅय का प्रतिनिधित्व किया, अपने बच्चों के स्वाभाविक कानूनी अभिभावकत्व के माताओं के अधिकार की दावेदारी में गीता हरिहरण की नुमाइंदगी की, केपीएस गिल द्वारा यौन उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष में रूपन देवल बजाज की तरफ से सामने आईं, घरेलू हिंसा अधिनियम के निर्माण में सहयोग किया, और सवो चर्च न्यायालय में ‘तीन तलाक’ के खिलाफ लड़ रहे मुस्लिम महिला समूहों की तरफ से वकालत की. उन्होंने हमेशा ही महिला वकीलों, कानून के छात्रों और न्यायपालिका में यौन उत्पीड़न झेलने वाली न्यायाधीशों की तरफ से आवाज उठाई है तथा सवो चर्च न्यायालय के अंदर ‘क्रेच’ (शिशु केंद्र) बनाने की सफल लड़ाई लड़ी. इमर्जेंसी के दौरान उन्होंने हड़ताली रेल मजदूरों के लिए अपनी कानूनी मदद मुहैया कराई.
‘लाॅयर्स कलेक्टिव’ के खिलाफ सीबीआइ द्वारा एफआइआर दायर किए जाने के ठीक एक सप्ताह पहले सुश्री जयसिंह ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय से कारगिल युद्ध के वरिष्ठ सैनिक सनाउल्लाह को जमानत दिलवाई जिन्हें असम के विदेशी टिंब्यूनल ने “विदेशी नागरिक” घोषित कर दिया था.
उन्होंने गांधी जी के परपोते तुषार गांधी का मुकदमा भी लड़ा, जिन्होंने मुस्लिमों की माॅब लिंचिंग (भीड़ हिंसा) को रोकने के लिए कार्रवाई की मांग करते हुए सवो चर्च न्यायालय में याचिका दायर की थी. जयसिंह ने न्यायालय में जोर देकर यह कहा कि भारत में लिंचिंग की ये वारदातें अमेरिका में अफ्रीकी अमेरिकी लोगों की नस्लवादी लिंंचिंग से मेल खाती हैं.
आनंद ग्रोवर ने भी कई महत्वपूर्ण मुकदमे लड़े हैं, जिनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं रोगियों को जीवन-रक्षक दवाइयों की उपलब्धता के अधिकार से जुडे कई किस्म के मुकदमे, और धारा 377 के खिलाफ कई मुकदमे.
लाॅयर्स कलेक्टिव को फंसाने की कोशिश करके दरअसल मोदी सरकार भारतीय संविधान की रक्षा के लिए होने वाली विभिन्न किस्म की सक्रियता के खिलाफ एक तरह का युद्ध ही घोषित कर देना चाहती है.
हमें आशंका है कि हमें हर दिन मोदी सरकार द्वारा असहमति लोकतंत्र और हमारे संविधान के रक्षकों के खिलाफ नए-नए हमले देखने को मिलेंगे. हमें अपनी संपूर्ण दृढ़ता के साथ इन सबका मुकाबला करने के लिए कमर कस लेना होगा.