नक्सलबाड़ी के जनक, भाकपा(माले) के संस्थापक, भारतीय क्रांति के महानायक कामरेड चारु मजुमदार की शहादत के 47 वर्ष पूरा होने पर 28 जुलाई 1919 को उन्हें क्रांतिकारी श्रद्धांजलि देते हुए यहां प्रस्तुत है उनके लेखों में से कुछेक प्रासंगिक उद्धरण:
कामरेड माओ त्सेतुंग के सुविख्यात तीन लेख (‘जनता की सेवा करो’, ‘मूर्ख बूढ़ा आदमी जिसने पहाड़ों को हटा दिया’ और ‘डा. नार्मन बेथ्यून की याद में’) की भूमिका में कामरेड चारु मजुमदार ने कम्युनिस्टों के आदर्श, कार्यप्रणाली और लक्ष्य के बारे में कहा था :
“पहली बात, कम्युनिस्ट का हर काम एक ही लक्ष्य की प्राप्ति के लिए होता है – वह है, जनता की भलाई करना कम्युनिस्ट क्रांतिकारी होता है, क्योंकि क्रांति के बिना जनता की भलाई नहीं की जा सकती. चूंकि जनता की भलाई के लिए क्रांति जरूरी है, इसीलिए क्रांति के हित में वह अंतरराष्ट्रवादी है. यह अंतरराष्ट्रवाद निःस्वार्थ है. कम्युनिस्ट जानता है कि उसका काम आसान नहीं है, इसतिलए उसे दृढ़ता के साथ एक ही काम में लगे रहना पड़ता है. यही बार-बार कोशिश करना कम्युनिस्ट की जिम्मेवारी है. ये सब गुण जिस कम्युनिस्ट में नहीं हैं, वह कम्युनिस्ट नहीं है. अतः ये सब गुण हासिल करना एक कम्युनिस्ट के लिए अत्यावश्यक है. शोषक वर्ग के खिलाफ संघर्ष कर पाना ही कम्युनिस्ट होने का एकमात्र मापदंड नहीं है. सच्चा कम्युनिस्ट कौन है? जो जनता के लिए आत्मत्याग कर सकता है और यह आत्मत्याग किसी विनिमय की आशां में नहीं. दो रास्ते हैं, या तो आत्मत्याग या फिर आत्मस्वार्थ. बीच का कोई रास्ता नहीं. ... जनता की सेवा किए बिना जनता से प्यार नहीं किया जा सकता. सिर्फ आत्मत्याग कर ही जनता की सेवा की जा सकती है. सच्चा कम्युनिस्ट होने के लिए इस आत्मत्याग को आत्मसात करना होगा. जनता की सेवा करने का मतलब है, जनता के स्वार्थ में, क्रांति के स्वार्थ में अवैतनिक काम करना.”
साथ ही का. चारु मजुमदार ने यह भी कहा था :
“मध्यमवर्गियों के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण सवाल है, वह यह है कि इस संघर्ष में मेरा क्या होगा? मैं क्या चाहता हूं? क्या मैं इसी क्षण जनता के स्वार्थ में मरने के लिए तैयार हूं? जनता के स्वार्थ में मरना इंसान की सबसे महान जिम्मेवारी है, चाहे यह मौत क्रांति के किसी भी काम में क्यों न हो? माओ त्सेतुंग ने कहा है – संघर्ष करने से मौत होती ही है, अतः मौत से डरने से काम नहीं चलेगा. जनता के स्वार्थ में जब काम कर रहे हो, तो दूसरों की आलोचना से उत्तेजित क्यों होते हो? कोई भी आदमी क्यों न हो, उससे सलाह लेने में कौन सी बाधा है? अगर कोई सचमुच अच्छी सलाह देता है, जिससे जनता की भलाई होगी, जो क्रांति के पक्ष में जाएगी, तब हम उस सलाह को क्यों नहीं लेंगे? उन्होंने यही कहा है कि अच्छी सलाह अगर पार्टी के बाहर से भी आती है तो उसे ग्रहण करना होगा.”
‘डा. नारमन बैथ्यून की स्मृति में’ शीर्षक माओ त्सेतुंग के लेख का हवाला देते हुए कामरेड चारु मजुमदार ने कहा :
“उन्होंने (कामरेड माओ ने) इस लेख में अंतरराष्ट्रवाद के बारे में बताया है. उन्होंने कहा है कि जो देश गुलाम है और जिस देश ने गुलाम बनाया है, उन दोनों देशों के मजदूर वर्ग के बीच कोई विरोध नहीं है और गुलाम देश की मुक्ति के बिना उन्नत देश की मुक्ति संभव नहीं है. इस बात को बैथ्यून ने समझा था, इसलिए समुद्र पार कर वे चीन के मुक्त इलाकों में आए थे. अपने बारे में उनकी क्या महत्वाकांक्षा थी? वे एक बड़े सर्जन थें. इस पूंजीवादी दुनिया में उन्हें क्या नहीं मिल सकता था? सब कुछ छोड़-छाड़कर वे क्यों आए थे? उनमें यह निःस्वार्थ त्याग इसी राजनैतिक चेतना से आया था. इसलिए राजनैतिक चेतना का महत्व यहां पर है. दूसरे, इस लेख में माओ ने दिखाया है कि कम्युनिस्ट किस प्रकार का काम करता है – स्वभावतः, सबसे कठिन काम, सबसे निःस्वार्थ भाव से. सिर्फ यही नहीं, तथाकथित तकनीकी काम, जिसे मध्यमवर्गीय बहुत ही घृणा की नजर से देखते हैं – इसी तरह का तकनीकी काम करते हुए डा. नारमन बैथ्यून जैसे मशहूर सर्जन ने अपनी जान दे दी. इसलिए नारमन बैथ्यून से यह शिक्षा मिलती है कि कोई भी काम छोटा नहीं है. जनता की भलाई के लिए किए गए सभी काम एक समान मूल्यवान है. अपने लेख में उन्होंने बताया है कि अच्छा कम्युनिस्ट वही है, जो सबसे कठिन काम की जिम्मेवारी लेता है और उसे पूरा करता है. जो कम्युनिस्ट जबानी जमाखर्च करता है, लेकिन काम के समय सबसे आसान काम की जिम्मेवारी लेता है, वह अच्छा कम्युनिस्ट नहीं है.”
मजदूर वर्ग के प्रति चारु मजुमदार का आह्नान था :
“आज आम मजदूरों को देश के उन करोड़ों भूमिहीन व गरीब किसानों के बारे में सोचना चाहिए, जो सदियों से शोषित और उत्पीड़ित होते रहे हैं तथा आज जिनकी दशा बर्दाश्त से बाहर हो गई है. इन भूमिहीन व गरीब किसानों पर लदे नाकाबिले बर्दाश्त शोषण को मिटाकर ही मजदूर वर्ग समाज में संपत्ति के स्रष्टा की हैसियत से अपनी मर्यादा प्रतिष्ठित कर सकता है. संपत्ति के स्रष्टा मजदूरों और किसानों के एकताबद्ध हो जाने से जिस विराट ताकत का जन्म होगा, उससे जनता की जनवादी क्रांति संपन्न करके शोषकों तथा शोषण प्रणाली को चकनाचूर किया जा सकता है और इस भारतवर्ष में समाजवादी व्यवस्था कायम करना संभव है. इस संभावना को असलियत में बदलने की जिम्मेवारी और नेतृत्व निश्चय ही मजदूर वर्ग को लेनी होगी. ...”
किसानों में मध्यमवर्गीय ढुलमुलपन व परिणामवादी सोच की अनदेखी न करने पर भी ‘अन्नदाता किसान, मुक्तिदाता किसान’ उनकी नजर से कभी ओझल नहीं हुए :
“एक किसान ने अपने जीवन के अनुभव से सीखा है कि एक ही काम को बार-बार दृढ़ता से करना पड़ता है. ज्यादातर सफलता नहीं मिलती है, लेकिन इस तरह से काम करने से ही एक दिन सफलता मिलती है”. “गांव-गांव में मजदूर-किसान राज”, मजदूर-किसानों के क्रांतिकारी वर्चस्व के वे हिमायती थे.
छात्र-नौजवानों की क्रांतिकारी भूमिका पर वे सदा मुखर थे :
“मनुष्य अपनी सारी जिंदगी के 18-24 साल की उम्र में सबसे ज्यादा मेहनती, उत्साही, निडर और आदर्शवान होता है. जबकि हमारी शिक्षा व्यवस्था में उसी उम्र में नौजवानों और विद्यार्थियों को इस जन-विरोधी लिखाई-पढ़ाई और परीक्षा में पास करने के लिए व्यस्त रखा जाता है. ... मैं सबसे ज्यादा खुश होउंगा, अगर तुम इस परीक्षा में पास करने के लिए अपने को बरबाद न कर आज ही क्रांतिकारी संघर्ष के काम में कूद पड़ो”. “छात्र-नौजवान मजदूर-किसानों के बीच क्रांतिकारी राजनीति का वाहक” ही नहीं, अच्छे संगठक की भूमिका भी निभा सकते हैं. इसके अलावा, छात्रा-नौजवानों से उनका आह्वान था : “फासिस्ट हमले को रोकने के लिए रेडगार्ड तैयार करो!”
चारु मजुमदार सशस्त्र क्रांति के हिमायती थे. साथ ही, परिस्थिति के अनुसार निरंकुश सत्ता के खिलाफ व्यापकतम संयुक्त मोर्चा के पक्षधर थे. इंदिरा तानाशाही के दौर में जून 1972 का उनका अंतिम लेख आज के आरएसएस-भाजपा राज के संदर्भ में भी मार्गदर्शक है :
“आज हमारा कर्तव्य है व्यापक बुनियादी जनता के बीच पार्टी निर्माण करने के काम को आगे ले जाना और संघर्ष के आधार पर जनता के व्यापकतम हिस्से के साथ संयुक्त मोर्चा कायम करना. कांग्रेसी राज के खिलाफ व्यापक संयुक्त मोर्चा कायम किया जा सकता है. आज ‘वामपंथी’ पार्टियां, आम जनता पर कांग्रेस जो जुल्म कर रही है, उसके खिलाफ संघर्ष में नेतृत्व नहीं दे रही हैं. इन सारी पार्टियों के मजदूरों, किसानों और मेहनतकश जनता के बीच अपने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ विक्षोभ है. एकताबद्ध संघर्ष के आधार पर हमें इनके साथ एकताबद्ध होने की कोशिश करनी होगी. यहां तक कि एक समय जो हमसे दुश्मनी करते थे, वे भी विशेष परिस्थिति में हमारे साथ एकताबद्ध होने के लिए आएंगे. इन सारी ताकतों के साथ एकताबद्ध होने के लिए हृदय की विशालता रखनी होगी . हृदय की विशालता कम्युनिस्टों का गुण है. जनता का स्वार्थ ही आज एकताबद्ध संघर्ष की मांग करता है. जनता का स्वार्थ ही पार्टी का स्वार्थ है.”
सर्वोपरि, एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण करने के लिये वे सदैव तत्पर रहे :
“एक क्रांतिकारी पार्टी के बिना क्रांति कभी सफल नहीं हो सकती. जो पार्टी दृढ़ रूप से माओ विचारधारा पर आधारित है, आत्म बलिदान से प्रेरित लाखों-लाख मजदूर-किसान व मध्यवर्गीय युवकों द्वारा गठित है, जिस पार्टी के अंदर आलोचना और आत्म-आलोचना का पूर्ण जनवादी अधिकार है, और जिस पार्टी के सदस्यों ने अपनी इच्छा से तथा स्वतंत्र रूप से अनुशासन को मान लिया है, जो पार्टी सिर्फ ऊपर का हुक्म मान कर ही नहीं चलती, स्वतंत्र रूप से हर एक निर्देश को जांचती-परखती है और क्रांति के हित में गलत निर्देश का खंडन करने से नहीं हिचकती, जिस पार्टी के हर एक सदस्य अपनी इच्छा से काम चुन लेते हैं और छोटे से लेकर बड़े तक सबको समान महत्व देते हैं, जिस पार्टी के सदस्य किसी भी हालत में हताश नहीं होते, किसी भी कठिन परिस्थिति से नहीं डरते, उसे हल करके दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ते हैं – ऐसी ही कोई पार्टी देश के विभिन्न वर्गों व मतों के लोगों के एकताबद्ध मोर्चे का गठन कर सकती है, ऐसी ही एक क्रांतिकारी पार्टी भारतवर्ष की क्रांति को सफल बना सकती है.”