भारत की आजादी के 75 वर्ष : हिंदू वर्चस्ववादी बनाम भारत का स्वतंत्रता संग्राम: एक संक्षिप्त इतिहास


[आज हिंदू वर्चस्ववादियों के हाथ में भारत का शासन है, और वे भारत के स्वतंत्रता आन्दोनल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिशों में मशगूल हैं और साथ ही, वे इस आन्दोलन की मुख्य श्क्तियों की भूमिका को विकृत करने का भी प्रयास कर रहे हैं. इस आलेख में हम दो सर्वप्रमुख हिंदू वर्चस्ववादी संगठनों, हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्म से लेकर भारत की आजादी और इसके ठीक बाद तक उनके गतिपथ की जांच-पड़ताल करेंगे.

भारत की आजादी के 75 साल : स्वाधीनता संघर्ष और विभाजन


भारत को इन अनुभवों से क्या सीखना चाहिए

संघ-गिरोह और पूरा हिंदुत्ववादी राजनीतिक धड़ा न केवल भारत के स्वाधीनता संघर्ष से कटा रहा बल्कि इसने अंग्रेजों की ‘बांटो और राज करो’ की नीति का अनुसरण करते हुए हिन्दू-मुस्लिम आधार पर जनता की एकता को तोड़ने का काम किया.

‘बाँटो और राज करो’ की इस नीति की परिणति खूनी विभाजन तथा भारत और पाकिस्तान के निर्माण में हुई. बाद में पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश बना.

कन्हैया का दल-बदल


कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने से पहले दो बातों की बहुत चर्चा रही. उनके हवाले से कई दिनों से यह बात घूम रही थी कि वे अपनी पार्टी यानि भाकपा में घुटन महसूस कर रहे थे. दूसरी बात उनके कांग्रेस में शामिल होने के ऐन पहले चर्चा में रही कि वे पार्टी दफ्रतर में अपना लगाया एसी भी उखाड़ कर ले गए. ये दो बातें उनके राजनीतिक व्यक्तित्व को काफी हद तक परिभाषित कर देती हैं. कम्युनिस्ट पार्टी में जिसे निजी एसी चाहिए हो, उसे कम्युनिस्ट पार्टी में घुटन महसूस होना लाजमी है.

13 अप्रैल, जलियांवाला बाग की वर्षगांठ पर


–  तुहिन देब

13 अप्रैल 1919 में हुए जलियांवाला बाग नृशंस हत्याकाण्ड के 102 वर्ष गुजर गए हैं. असंख्य स्वतंत्रत संग्रामी क्रांतिकारियों के बलिदान से मिली औपचारिक आजादी को भी 74 वर्ष पूरे हो गए हैं. यह भारत के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में करीब 100 वर्ष पूर्व की घटना के विश्लेषण का एक विनम्र प्रयास है.