काला धन के नये खुलासे

काला धन - छह साल पहले यह शब्द वर्तमान सत्ता के सिरमौर से लेकर निचले पायों तक, मंत्र की तरह जपा जाता था. देश के हर आदमी की जेब में इसी काले धन को सफेद करके डालने के बड़े-बड़े दावे और वादे भी किए गए थे. लेकिन बीतते वक्त के साथ ‘अच्छे दिनों’ के तमाम रंग-बिरंगे सपनों की तरह इस शब्द को भी जैसे सेंसर कर दिया गया है. अब यह भूल से भी सत्ताधीशों के मुंह से नहीं सुनाई देता.

एक हृदयहीन और निर्मम बहाना

इस बात की काफी चर्चा है कि संसद में मोदी सरकार ने कहा कि उसे लाॅकडाउन के चलते मरने वाले मजदूरों की संख्या की जानकारी नहीं है. मोदी सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय में स्वतंत्रा प्रभार राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने 14 सितंबर को लोकसभा में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में कहा कि लाॅकडाउन के दौरान मरने वाले मजदूरों का कोई डाटा उपलब्ध नहीं है. श्रम और रोजगार मंत्री ने यह भी कहा कि चूंकि मरने वाले मजदूरों का कोई डाटा नहीं रखा गया, इसलिए उनके मरने पर मुआवजा देने का प्रश्न ही नहीं उठता.

देश भर में आर्थिक संकट लाॅकडाउन के कारण ही पैदा हुआ: सुप्रीमकोर्ट

आजकल यूं भी जुडिशियल ऐक्टिविज्म यानि न्यायिक सक्रियता का जुमला पूरे परिदृश्य से गायब हो गया है, क्योंकि न्यायपालिका राष्ट्रवाद के नाम पर सरकार की हां में हां मिला रही है. लेकिन यह गुब्बारा वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट से न्यायिक निष्क्रियता का आरोप लगाकर फोड़ दिया है और देश भर में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है. यहां तक कि सोशल मीडिया से लेकर गली नुक्कड़ पर भी न्यायपालिका चर्चा में है.

जीएसटी के कारण कंगाल हुआ देश

जीएसटी कानून पफेल हो गया है और देश गहरे आर्थिक संकट में फंस गया है. देश के 12 राज्यों के सामने अपने कर्मचारियों के सैलरी भुगतान का अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया है. ये कोई छोटे मोटे राज्य नहीं हैं, बड़े बड़े राज्य हैं. महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक और त्रिपुरा कोरोना काल में भी स्वास्थ्यकर्मियों को समय पर वेतन नहीं दे पा रहे हैंऋ उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जो काॅलेजों और विश्वविद्यालयों के टीचर और स्टाप को समय पर सैलरी का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं.

नई शिक्षा नीति 2020 : गरीबों को शिक्षा से बाहर धकियाने के सारे दरवाजे खोले गये

अर्थतंत्र और पर्यावरण के बाद, अब मोदी सरकार ने लाॅकडाउन के दौर का इस्तेमाल एक और नई नीति की घोषणा करने के अवसर के बतौर किया है: नई शिक्षा नीति 2020. मोदी राज के दूसरे चरण की शुरूआत के तुरंत बाद ही 31 मई 2019 को 484 पन्नों का एक मसविदा दस्तावेज पेश किया गया था. इस 484 पन्नों के दस्तावेज को अब संकुचित करके 60 पन्नों के नीति सम्बंधी दस्तावेज में बदल दिया गया है जिसे 29 जुलाई 2020 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत कर लिया गया.

भारत के किसानों की गुलामी के दस्तावेज हैं मोदी सरकार के तीन अध्यादेश

भयानक दौर से गुजर रहे कोरोना संकट के बीच केंद्र की मोदी सरकार कृषि क्षेत्र के लिये तीन नये अध्यादेश लाई है, इन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल चुकी है. इन सुधाारों को ‘एक देश, एक कृषि बाजार’ नारे के तहत लाया जा रहा है, मगर इसका मकसद है किसानों को बड़ी-बड़ी कम्पनियों का गुलाम बना देना और राज्यों के अधिकारों को केन्द्र सरकार द्वारा छीन लिया जाना, खासकर पहले से ही बदहाली में चल रहे राज्यों से उनके कृषि उत्पाद की बिक्री पर कर वसूलने के अधिकार को छीन लेना. नए कृषि अध्यादेशों को लेकर देश के किसान संगठन लगातार आवाज उठा रहे हैं.

राजस्थान में राजनीतिक संकट: भारतीय लोकतंत्र के लिये संकेत

राजस्थान में राज्य सरकार के भविष्य के बारे में अस्थिरता बरकरार है. यह जानने के लिए कि क्या सरकार आने वाले तूफान का सामना करने में सक्षम है, हमें राजस्थान उच्च न्यायालय और राज्य विधानसभा के घटनाक्रमों पर नजर बनाये रखनी होगी. वर्तमान संकट का अंतिम परिणाम जो भी हो, इसके बावजूद जो वास्तव में अधिक चिंता का विषय होना चाहिए, वह यह है कि इस तरह अस्थिरता पैदा करने की कोशिश एक उफनती महामारी के बीच चल रही है, जब पूरा ध्यान राज्य और लोगों को कोविड-19 की विपत्ति से बचाने पर केन्द्रित होना चाहिए.

उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवा के निजीकरण की राह पर

8 जुलाई 2020 को उत्तराखंड में रामनगर का रामदत्त जोशी राजकीय संयुक्त चिकित्सालय, पी.पी.पी. (सार्वजनिक-निजी साझीदारी) मोड के नाम पर संचालन हेतु एक निजी कंपनी को सौंप दिया गया. अकेला सिर्फ रामनगर का ही अस्पताल निजी हाथों में नहीं सौंपा जा रहा है. बल्कि इसके साथ अल्मोड़ा जिले का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भिकियासैंण और पौड़ी जिले का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, बीरोंखाल भी पी.पी.पी. मोड के नाम पर संचालन हेतु निजी हाथों में दिया जा रहा है.

विकास दुबे परिघटना: अपराधी-पुलिस-राजनीतिज्ञ गठजोड़ और इन्काउंटर राज ने उत्तर प्रदेश में कानून के राज को खतरे में डाला

विकास दुबे प्रकरण उत्तर प्रदेश में ‘मुठभेड़ हत्याओं’ की लम्बी होती जा रही सूची में ताजातरीन दर्ज होने वाला एक और प्रकरण है. यह आज के भारत में राज-काज चलाने के प्रभावी माॅडल के प्रमुख उसूलों को दर्शाता है और चंद महत्वपूर्ण बुनियादी चीजों की व्याख्या करता है जिसे बोलचाल में अपराधी-पुलिस-राजनीतिज्ञ गठजोड़ कहा जाता है. यह राजनीति के अपराधीकरण के नये स्तर, तथा संवैधानिक शासन के संकट और पतन की ओर इशारा करता है.

पाठ्यपुस्तकों से सेकुलरिज्म समेत अन्य लोकतांत्रिक अवधारणाएं हटाने के साथ संघ का एक और एजेंडा पूरा

आखिरकार नरेंद्र मोदी सरकार ने टेक्स्ट बुक पर धावा बोल ही दिया. मीडिया की खबर के मुताबिक सीबीएससी की 11वीं कक्षा की पोलिटिकल साइंस की पाठ्य पुस्तक से “सेकुलरिज्म” (धर्मनिरपेक्षता) अध्याय को पूरी तरह से हटाया जा रहा है. यह फैसला राजनीति से प्रेरित मालूम होता है क्योंकि सेकुलरिज्म से संघ परिवार का बैर बड़ा पुराना रहा है. अक्सर संघी ताकतें विरोधियों को “सेक्युलर” कह कर गाली देती रही हैं और उनके “हिन्दू विरोधी” होने का दुष्प्रचार भी करती हैं.