आजकल यूं भी जुडिशियल ऐक्टिविज्म यानि न्यायिक सक्रियता का जुमला पूरे परिदृश्य से गायब हो गया है, क्योंकि न्यायपालिका राष्ट्रवाद के नाम पर सरकार की हां में हां मिला रही है. लेकिन यह गुब्बारा वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट से न्यायिक निष्क्रियता का आरोप लगाकर फोड़ दिया है और देश भर में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है. यहां तक कि सोशल मीडिया से लेकर गली नुक्कड़ पर भी न्यायपालिका चर्चा में है.
ऐसे में उच्चतम न्यायालय के जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने लोन मोरेटोरियम अवधि में ईएमआई पर ब्याज में छूट देने के मामले केंद्र को पटकार लगाते हुए कहा कि आप रिजर्व बैंक ऑप इंडिया (आरबीआई) के पीछे नहीं छुप सकते और बस, व्यापार का हित नहीं देख सकते हैं; तो देश भर को सुखद आश्चर्य हुआ, क्योंकि उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार के संकटमोचक साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता पैरवी कर रहे थे.
लाॅकडाउन पीरियड में लोन मोरेटोरियम मामले में पीठ ने केंद्र सरकार को पटकार लगाते हुए सात दिन में हलपनामा देकर ब्याज माफी की गुंजाइश पर स्थिति साप करने को कहा है. बुधवार को हुई सुनवाई में पीठ ने केंद्र से इस मामले में 1 सितंबर तक अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है. पीठ ने केंद्र को पटकार लगाते हुए कहा कि आप रिजर्व बैंक ऑप इंडिया के पीछे नहीं छुप सकते और बस व्यापार का हित नहीं देख सकते.
पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि आप अपना रुख स्पष्ट करें, क्योंकि देश भर में आर्थिक संकट आपके द्वारा लगाए गए लाॅकडाउन के कारण ही पैदा हुआ है. दरअसल, उच्चतम न्यायालय बुधवार को कोविड-19 महामारी को देखते हुए लोन की ईएमआई को स्थगित किए जाने के फैसले के बीच इस पर ब्याज को माप करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार की कथित निष्क्रियता को संज्ञान में लेते हुए सुनवाई कर रही थी. पीठ ने कहा कि केंद्र ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है, जबकि आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत उसके पास पर्याप्त शक्तियां थीं और वो आरबीआई के पीछे छुप रही है. पीठ ने कहा कि ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि आपने पूरे देश को लाॅकडाउन में डाल दिया था. आप हमें दो चीजों पर अपना स्टैंड क्लियर करें, आपदा प्रबंधन कानून पर और क्या ईएमआई पर ब्याज लगेगा?
पीठ ने साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वे आपदा प्रबंधन अधिनियम पर रुख स्पष्ट करें और यह बताएं कि क्या मौजूदा ब्याज पर अतिरिक्त ब्याज लिया जा सकता है. इस पर साॅलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया है. मेहता ने कहा कि हम आरबीआई के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. मेहता ने तर्क दिया है कि सभी समस्याओं का एक सामान्य समाधान नहीं हो सकता.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि मोरेटोरियम अवधि 31 अगस्त को खत्म हो रही है और जब तक इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं आ जाता, इसे बढ़ा देना चाहिए. मामले की अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी.
इसके पहले हुई सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार अब खुद को असहाय नहीं बता सकती है. सरकार बैंकों पर सब कुछ नहीं छोड़ सकती, दखल पर विचार करना चाहिए. कोर्ट ने कहा था कि यदि आपने मोहलत की घोषणा की है, तो आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि लाभ ग्राहकों को उद्देश्यपूर्ण तरीके से मिले. ग्राहक मोहलत का लाभ नहीं ले रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा है. केंद्र ने रास्ता निकालने के लिए समय लिया, लेकिन कुछ नहीं हुआ. केंद्र अब इसे बैंकों पर नहीं छोड़ सकता.
पीठ ने कहा कि लोगों की परेशानियों की चिंता छोड़कर आप सिर्फ बिजनेस के बारे में नहीं सोच सकते. सरकार आरबीआई के फैसले की आड़ ले रही है, जबकि उसके पास खुद फैसला लेने का अधिकार है. डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत सरकार बैंकों को ब्याज पर ब्याज वसूलने से रोक सकती है.
कोरोना और लाॅकडाउन की वजह से आरबीआई ने मार्च में लोगों को मोरेटोरियम यानी लोन की ईएमआई तीन महीने के लिए टालने की सुविधा दी थी. बाद में इसे तीन महीने और बढ़ाकर 31 अगस्त तक के लिए कर दिया गया. आरबीआई ने कहा था कि लोन की किश्त छह महीने नहीं चुकाएंगे, तो इसे डिफाॅल्ट नहीं माना जाएगा. लेकिन, मोरेटोरियम के बाद बकाया पेमेंट पर पूरा ब्याज देना पड़ेगा. ब्याज की शर्त को कुछ ग्राहकों ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है. उनकी दलील है कि मोरेटोरियम में इंटरेस्ट पर छूट मिलनी चाहिए, क्योंकि ब्याज पर ब्याज वसूलना गलत है.
इस मामले में दो मुद्दे हैं. पहला, एक मोरेटोरियम अवधि के लिए मूल धन पर कोई ब्याज न लेना और दूसरा इस अवधि के बकाया ब्याज के लिए कोई ब्याज नहीं लेना. इस मामले में आरबीआई ने हलपनामा दायर कर छह महीने की मोराटोरियम अवधि के दौरान ब्याज माफी की मांग को गलत बताया है. लोगों को छह महीने का ईएमआई अभी न देकर बाद में देने की छूट दी गई है, लेकिन इस अवधि का ब्याज भी नहीं लिया गया तो बैंकों को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा.
मोदी सरकार के दौरान खराब चल रही देश की अर्थव्यवस्था के बीच पिछले चार वर्षों में ही आठ आर्थिक सलाहकारों ने समय से पूर्व अपना इस्तीफा दिया है. कुछ लोगों ने केंद्र सरकार से टकराव की वजह से पद छोड़ा है तो कुछ लोगों ने निजी करणों का हवाला देकर अपना पद छोड़ना उचित समझा. इनमें नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया, पीएम के आर्थिक सलाहकार सुरजीत भल्ला, भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन, आरबीआई गवर्नर ऊर्जित पटेल, विजयलक्ष्मी जोशी, पीसी मोहनन और जेवि मीनाक्षी शामिल हैं.
– जेपी सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनविद हैं)