संविधान, नागरिकता, लोकतंत्र की रक्षा करें एनपीआर, एनआरसी, सीएए का प्रतिरोध करें

(पिछले अंक से जारी)

सरकार दावा कर रही है कि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी का आपस में कोई रिश्ता नहीं है और एनआरसी का किसी भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. सच्चाई क्या है?

खुद अमित शाह ने नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के जुड़े होने की बात बार-बार कही है.

संविधान, नागरिकता, लोकतंत्र की रक्षा करें! एनपीआर, एनआरसी, सीएए का प्रतिरोध करें!

समूचे भारत में लोग नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रतिवाद कर रहे हैं, जिसे भाजपा सरकार ने दिसम्बर 2019 में संसद से पास करा लिया है.

लोगों ने इस बात को पहचान लिया है कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) साम्प्रदायिक और गैर-संवैधानिक है, और सीएए के साथ अखिल भारतीय राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को जोड़ देने से मुसलमान नागरिकों को घुसपैठिया करार देने तथा गैर-मुस्लिम नागरिकों को “शरणार्थी” में बदल देने का खतरा सामने खड़ा हो जाता है.

मौजूदा दौर में मजदूर वर्ग आंदोलन केे समक्ष चुनौतियां : बदलती संरचना, उभरती चुनौतियां और हमारा दृष्टिकोण

मजदूर वर्ग विखंडित हो रहा है. देश में कुल गैर-कृषि कार्यबल, मजदूरों की कुल संख्या का 45 प्रतिशत और देश में कुल गैर-कृषि अनौपचारिक कार्यबल का 54 प्रतिशत स्वयं-नियोजित, सूक्ष्म उद्यमी या मार्क्सवादी भाषा में निम्न पूंजीपति (पेट्टी बुर्जुआ) है. स्वरोजगार के बीच भी विभिन्न श्रेणियां हैं.

लोकतंत्र के दमन पर उतरी योगी सरकार के खिलाफ वाम-लोकतांत्रिक ताकतों का बढ़ता प्रतिरोध

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) व एनआरसी के विरुद्ध 19 व 20 दिसंबर को लखनऊ, बनारस, कानपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ आदि समेत उत्तर प्रदेश के कई शहरों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. जामिया मिल्लिया से लेकर अलीगढ़, बनारस व लखनऊ विश्वविद्यालयों के छात्र व युवा बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे और पुलिसिया दमन का मुकाबला किया. इन प्रदर्शनों पर पुलिस द्वारा चलाई गई लाठी-गोली से लगभग डेढ़ दर्जन प्रदर्शनकारी मारे गए. आधिकारिक तौर पर यूपी पुलिस के मुखिया ने कहीं भी ‘पुलिस द्वारा एक भी बुलेट नहीं चलाने’ की बात कही, लेकिन इन प्रदर्शनों के बाद उपलब्ध हुए वीडियो से उनका झूठ पकड़ा गया.

यह जन उभार ऐतिहासिक है

– रामजतन शर्मा

गोरे साहबों की हुकूमत से आजादी के संघर्ष में शहीद हुए तीन देशभक्त नायकों – रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्लाह खां और ठाकुर रोशन सिंह की साझी शहादत-साझी विरासत के अवसर पर 19 दिसंबर 2019 को भारत ने एक बार फिर अखिल भारतीय ऐतिहासिक जनउभार देखा. इस बार यह जनउभार भूरे साहबों – संघ-भाजपा, मोदी-शाह की स्वेच्छाचारी निरंकुश हुकूमत के खिलाफ था, उस हुकूमत के खिलाफ जो दश को टुकड़े-टुकड़े कर देने, देश में तबाही मचा देने, लोकतंत्र व संविधान को खत्म कर फासीवादी शासन लागू करने पर आमादा है.

समय के गीत

अब कहता है कि पूरा मकान उसका है

न घर बनाने में था न घर बसाने में था
अब कहता है कि पूरा मकान उसका है
न जंग लड़ी न एक कतरा ख़ून बहाया
आज कहता है सारा हिन्दुस्तान उसका है
गुलो-बुलबुल की अस्मत से खेलने वाला
कमबख्त कहता है गुलिस्तान उसका है
सारे टीवी अखबार खुशामद में लगे हैं
नीचे से ऊपर तक खानदान उसका है
हम अपने ही भाई को दुश्मन मान लें
कितना बेबुनियाद फरमान उसका है

जेएनयू पर जो आज हंस रहे हैं, कल ख़ुद पर रोएंगे

– दिलीप खान

जेएनयू प्रशासन के नए नियम-कायदों के खिलाफ वहां चल रहे प्रदर्शन की आवाज को परिसर तक महदूद रखने की कोशिश में सरकार ने जेएनयू के चारों तरफ पुलिस बल की भारी तैनाती कर रखी है. छात्र-छात्राओं का जत्था जब भी कैंपस से बाहर निकला, पुलिस ने उन पर लाठियां बरसाईं, वाटर कैनन छोड़े और कैंपस को सील कर दिया. इन सबके बीच जेएनयू को अलग-अलग विश्वविद्यालयों से समर्थन भी मिल रहा है और ‘विश्वगुरु’ बनने की चाहत रखने वाले इसी समाज से गालियां भी मिल रही हैं.

कश्मीर और एनआरसी : दुनिया भारत को देख रही है

(पिछले अंक से जारी)

भारत और दुनिया के लिए बड़ा सवाल

नरेंद्र मोदी नीत सरकार की इस भारी और इकतरफा कार्रवाई की कैसे व्याख्या की जाए ? जो लोग कश्मीर के बाहर हैं, उनके लिए इसका क्या महत्व है ?