प्रमोशन में आरक्षण का खात्मा : उच्चतम न्यायालय के फैसले से उठते सवाल

प्रमोशन में आरक्षण के मसले पर उच्चतम न्यायालय ने जो फैसला दिया, वह सामाजिक न्याय के प्रति सत्ताधारियों और अदालत के रुख को लेकर नए सिरे से सवाल खड़े करता है. उच्चतम नयायालय के फैसले की जो पंक्तियां चर्चा में हैं, हेडलाइन बन रही हैं, वे हैं – प्रमोशन में आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है. लेकिन फैसले को देखें तो बात इतनी भर नहीं है, बल्कि इससे बढ़कर है. इस मामले में केंद्र और उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने जो रुख अपनाया है, वह अपने कृत्य पर झूठ का आवरण ओढ़ाने की कोशिश है.

गांधी और गोडसे

[यह लेख रवि भूषण ने 2 अक्टूबर 2019 को गांधी जयंती के अवसर पर लिखा था, मगर 30 जनवरी 2020 को गांधीजी की शहादत की वार्षिकी के अवसर पर भी प्रासंगिक व पठनीय है. – सं.]

गांधी की डेढ़ सौ वीं वर्षगांठ के अवसर पर गांधी और उनके हत्यारे नाथूराम विनायक गोडसे (19 मई 1910-15 नवंबर 1949) पर विचार इसलिए आवश्यक है कि गोडसे के प्रशंसकों, समर्थकों और पुजारियों की संख्या बढ़ रही है. 1980 के दशक के अंत से हिंदुत्ववादी विचारधारा के फैलाव और विकास के साथ-साथ केवल सावरकर की ही नहीं, गोडसे भक्तों की संख्या में भी वृद्धि हुई है.

स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रति अनंत हेगड़े की नफरत

कर्नाटक के उत्तर कन्नड से भाजपा के सांसद अनंत हेगड़े उन नेताओं में शामिल हैं जो समय-समय पर विवादास्पद बयान दे कर सुर्खियां बटोरते रहते हैं. उनका ताजातरीन बयान यह है कि गांधी के नेतृत्व में चला आजादी का आंदोलन ड्रामा था. गांधी से वैचारिक मतभिन्नता होना एक बात है, लेकिन उनके प्रति जो घृणा का भाव भाजपा और उसके वैचारिक सहोदरों के मन में है, हेगड़े का बयान उसकी एक और अभिव्यक्ति है. आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ गोली तो छोड़िए, कंकड़ भी उछाल सकने की हिम्मत न करने वाले गोडसे ने आजादी के बाद सबसे पहले गोली चलाने के लिए 79 साल के बूढ़े गांधी का चुनाव किया था.

एनआरआइसी और डिटेंशन कैंपों के बारे में गृह मंत्री संसद को गुमराह कर रहे हैं

संसद में आए एक प्रश्न के जवाब में हाल ही में गृह मंत्री ने बयान दिया है कि अखिल भारतीय स्तर पर एनआरसी की कोई योजना नहीं चल रही है. यह बयान नवंबर 2019 में संसद में दिए गए उनके वक्तव्य का विरोधी है, जब उन्होंने कहा था कि “असम में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर एनआरसी किया गया.

भारत में फेक न्यूज (झूठी खबर): प्रणालीगत है, अराजक नहीं !

भारत में फेक न्यूज की महामारी “सोशल मीडिया” की तथाकथित गैर-जवाबदेह प्रकृति के चलते नहीं है. यह “अराजकता” की वजह से भी नहीं है. फेक न्यूज प्रणालीबद्ध ढंग से ‘संघ’ के फेक न्यूज और फोटोशाॅप उद्योग में उत्पादित होता है और इसे उसी राजनीतिक तंत्र के द्वारा फैलाया जाता है जिसके जरिए मोदी प्रधानमंत्री चुने गए. इस तंत्र में खुद मोदी समेत राजनीतिक रहनुमा शामिल हैं और इनके साथ-साथ टेलिविजन चैनल तथा इनके एंकर और सोशल मीडिया पर सक्रिय भाजपा का आइटी सेल शामिल हैं.

खस्ताहाल बैंकिंग सेक्टर और मोदी सरकार

– सौरभ नरूका

भारतीय अर्थतंत्र दबाव में है और मोदी सरकार के अंतर्गत यह मंद पड़ता जा रहा है – चालू खाता घाटा चढ़ रहा है, मुद्रास्फीति बढ़ रही है, बेरोजगारी आठ वर्षों में सबसे ऊंची दर पर पहुंच चुकी है और डाॅलर के मुकाबले रुपया रिकाॅर्ड निम्न स्तर पर चला गया है. उपर से, अमेरिका में ब्याज दर बढ़ने की प्रवृत्ति दिख रही है और विदेशी निवेशों में कमतर होने का रुझान दिख रहा है जिसके बूते भारतीय सरकारें चालू खाता घाटे से किसी तरह निपटती रही हैं. कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि मुश्किलों को और बढ़ा ही देगी.

भागवत का भाषण और आरएसएस विचारधारा: एक करीबी नजर

– कविता कृष्णन

पिछले साल की शुरूआत में आरएसएस के राष्ट्रीय सम्मेलन में मोहन भागवत के भाषण दोहरी-जुबान बोलने के ही थोड़े जटिल प्रयास थे, जिसमें उन्होंने संघी विचारधारा के तत्वों पर ‘उदार’ रंग चढ़ाने की कोशिश की थी.

करीब से देखें, तो भागवत संघी विचारधारा से तनिक भी नहीं हिले हैं. यह तो भारतीय मीडिया (अथवा इसका अधिकांश हिस्सा) है जो उनके भाषणों को ठीक से जांच-परख का अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर सका और आलोचनात्मक ढंग से देखने के बजाय उनके जुमलों को बस, यूं ही दुहराता रहा.

भाकपा(माले) सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन की अगली कतार में है

चंपारण में ‘संविधान बचाओ’ आंदोलन

पश्चिम चंपाररण जिला जो गुलाम भारत में महात्मा गांधी के नेतृत्व में ब्रिटिश शासकों द्वारा नील की खेती करने को बाध्य किए जानेवाले किसानों के सत्याग्रह आंदोलन की वजह से देश की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, आज देश में उठ खड़े हुए सीएए, एनआरसी व एनपीआर विरोधी आंदोलन में भी कूद पड़ा है.

शाहीन बाग अब किसी जगह का नाम भर नहीं

[लोगों की बातचीत और सोशल मीडिया में ‘शाहीन बाग’ की चर्चा आम है. हमें उसे करीब से देखने का मौका मिला –  आसपास भी और सुदूर राज्यों में भी. पिछले साल के15 दिसंबर से लेकर इन पंक्तियों के लिखे जाने तक दिल्ली का शाहीन बाग जाग रहा है. प्रस्तुत है इन शाहीन बागों पर एक रिपोर्ट.]
saheen