ट्रंप का असफल तख्तपलट प्रयास और भारत के लिए सबक


अमेरिकी लोग (तत्कालीन) राष्ट्रपति ट्रंप के असफल तख्तपलट प्रयासों के बाद की घटनाओं से अभी तक निपट ही रहे हैं, और इसी के साथ समूची दुनिया के लिए चेतावनी की घंटी बज रही है कि वैश्विक पूंजीवाद के बढ़ते संकट के साथ-साथ संसदीय लोकतंत्र पर खतरा भी सर्वत्र मंडराने लगा है – खासकर तब, जबकि वैश्विक महामारी लगातार दूसरे वर्ष दुनिया को अपनी चपेट में लेने को तैयार है.

गडकरी ने मोदी निजाम के किसान-विरोधी गरीब-विरोधी मन की बात उजागर की

 

प्रतिवादकारी किसानों और मोदी सरकार के बीच सातवें दौर की वार्ता बेनतीजा रही. दिल्ली की सीमाओं पर झंझावातों और बारिश का मुकाबला करते भीषण ठंड में डटे किसानों ने कहा है कि तीनों किसान-विरोधी कानूनों की सीधेसीधी वापसी से कम कुछ भी उन्हें स्वीकार्य नहीं है. लेकिन मोदी सरकार इन कानूनों को वापस न करने पर अड़ी हुई है.

सड़कों पर लोकतंत्र का परचम बुलंद करें! जनविरोधी, दमनकारी कानूनों के विरुद्ध एकजुट हों!

मोदी सरकार द्वारा संसदीय लोकतंत्र को कैसे छलावे में तब्दील कर दिया गया है, हाल ही में संपन्न संसद का मानसून सत्र इसकी बानगी है. प्रश्न काल को मनमाने तरीके से रद्द कर दिया गया और इस तरह से उस औपचारिक धारणा से भी सरकार ने मुक्ति पा ली कि सरकार और कार्यपालिका, विधायिका के प्रति और प्रकारांतर से जनता के प्रति जवाबदेह हैं.

मोदी के कृषि विधेयक: भारतीय किसानों पर जानलेवा आघात

भारत के लोगों को नरेन्द्र मोदी के “अच्छे दिन” की बयानबाजी का असली अर्थ खोजने में काफी समय लगा था, लेकिन उनके ताजातरीन “आत्मनिर्भर भारत” के खोखले जुमले का भेद बहुत तेजी से खुलता जा रहा है. मोदी सरकार के लिये “आत्मनिर्भर भारत” का सिर्फ एक ही मतलब है – समूचे भारतीय अर्थतंत्र को अडानी-अंबानी इंटरप्राइज में बदल देना!

दिल्ली पुलिस की “दंगा जांच” समान नागरिकता के पक्षधर प्रतिवादकारियों के दमन के अलावा और कुछ नहीं

वामपंथी नेताओं को चार्जशीट में नामजद करने के बाद छात्र कार्यकर्ता उमर खालिद की गिरफ्तारी होते ही दिल्ली पुलिस की “दंगा जांच” की आलोचना तथा उसकी घोर निंदा और तेज हो गई है. छात्रों के साथ-साथ देश भर में बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने, जिनमें यहां तक कि भूतपूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी शामिल हैं, दिल्ली के पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही “जांच” के पक्षपातपूर्ण रवैये पर पीड़ा जाहिर की है.

कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों और गोता खाते जीडीपी के बीच अनवरत जारी विध्वंस का नाम है मोदी सरकार

वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही का सरकारी आर्थिक रिपोर्ट कार्ड अब हमारे सामने है. सकल घरेलू उत्पाद भहराकर 23.9 प्रतिशत गिर चुका है, जो भारत के साथ तुलनीय किसी भी देश की अपेक्षा दुनिया में सबसे खराब प्रदर्शन है. पिछले चार दशकों में इससे पहले कभी भी भारतीय अर्थतंत्र ने नकारात्मक वृद्धि दर नहीं रिकार्ड की थी. ये अनुमान शुरूआती हैं, और अर्थशास्त्रियों का ऐसा यकीन है कि वास्तविक अंतिम आंकड़े इससे कहीं ज्यादा खराब हो सकते हैं.

दो सख्त ट्वीटों और दुष्प्राप्य क्षमायाचना की तलाश में एक मनमाने फैसले की कहानी

बिना विचारे जो करै, सो पाछे पछिताय! जिस हड़बड़ी में सोचे-समझे बिना सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशांत भूषण द्वारा किये गये दो ट्वीटों को अदालत की अवमानना का दोषी ठहरा दिया, उससे यही कहावत याद आती है. अदालत में दो सुनवाइयों के बाद भी सर्वोच्च न्यायालय उन दो अपराधी ट्वीटों के लिये कोई उपयुक्त सजा नहीं ढूंढ पाया है!

आजादी के आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि लोकतंत्र है, जिसे हर कीमत पर बचाया जाना चाहिए

भारत ने अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस महामारी के प्रकोप के बीच मनाया. जहां बहुत सारे देश कोविड-19 महामारी के कहर से उबर रहे हैं, वहीं भारत में प्रति दिन नए 60000 मामलों के साथ ग्राफ लगातार तीखे उठान पर है. 25 लाख मामलों और लगभग 50 हजार मौतों के साथ 2020 के स्वतंत्रता दिवस के दिन माहौल बहुत उदासी भरा था. खराब तरह से थोपे गए और भयानक रूप से अनियोजित लाॅकडाउन ने इस उदासी को और भी गहरा दिया है क्यूंकि भारत की जनता का बड़ा हिस्सा भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है. यह आर्थिक संकट, सबसे कमजोर हिस्सों के लिए अस्तित्व के संकट में परिणत हो चुका है.