वर्ष - 30
अंक - 2
09-01-2021

 

प्रतिवादकारी किसानों और मोदी सरकार के बीच सातवें दौर की वार्ता बेनतीजा रही. दिल्ली की सीमाओं पर झंझावातों और बारिश का मुकाबला करते भीषण ठंड में डटे किसानों ने कहा है कि तीनों किसान-विरोधी कानूनों की सीधेसीधी वापसी से कम कुछ भी उन्हें स्वीकार्य नहीं है. लेकिन मोदी सरकार इन कानूनों को वापस न करने पर अड़ी हुई है.

अपनी इस मनगढ़ंत कहानी को चलाने में सरकार की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं कि केवल पंजाब के धनी किसान विपक्षी पार्टियों के उकसावे पर यह प्रतिवाद कर रहे हैं. दिल्ली की सीमाओं पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और तमिलनाडु के किसान भी पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ जा मिले हैं. बिहार में दसियों हजार छोटे व मंझोले किसान तथा खेत मजदूरों ने इन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर ‘राजभवन मार्च’ किया. यह भी स्पष्ट है कि इनके अलावा किसानों को आम भारतीयों का भी समर्थन और एकजुटता हासिल है.

नैतिक और राजनीतिक रूप से इन किसानों का ही हाथ ऊपर है. यह बात इस तथ्य से प्रमाणित होती है कि जो मंत्री किसान प्रतिनिधियों से मिले, उन्होंने भी इस किसान आन्दोलन में जान गंवाने वाले किसानों की स्मृति में किसान प्रतिनिधिमंडल के साथ दो मिनट का मौन पालन किया. इस प्रतीकात्मक कार्रवाई में उन मंत्रियों को शामिल कराकर किसानों ने भाजपा के इस प्रचार की हवा निकाल दी कि यह किसान आन्दोलन अवैध है और कि इसमें सिर्फ “राष्ट्र-विरोधी” और “खालिस्तानी आतंकवादी” शामिल हैं.

इस बीच एक प्रमुख समाचार पत्र के साथ इंटरव्यू में मोदी मंत्रीमंडल और भाजपा के वरिष्ठ सदस्य नितिन गडकरी ने ऐसी कई टिप्पणियां की हैं जिनसे इन कृषि कानूनों के पीछे छिपी सरकार की मंशा के बारे में किसानों की आशंकाओं की पुष्टि होती है.

गडकरी ने स्पष्ट किया कि ये नए कानून इन चीजों को दुरुस्त करने के लिए लागू किए गए हैं जो उनके शब्दों में कृषि समस्याओं की “असली वजह” हैं – यानी, “अतिरिक्त खाद्यान्न”; और यह तथ्य कि खाद्यान्नों के लिए सरकार द्वारा दिया जा रहा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) उनके घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार मूल्यों से कहीं ऊंचे हैं. गडकरी के शब्दों को सुनिये – “हमारा एमएसपी अंतरराष्ट्रीय और बाजार कीमतों से अधिक है, और यही समस्या है. मैं पिछले 12 वर्षों से इथनाॅल की चर्चा कर रहा हूं. लेकिन खाद्यान्नों को (इंधन में) बदलने की अनुमति नहीं मिल सकी. अतिरिक्त खाद्यान्न और बाजार कीमतों से एमएसपी का ऊंचा होना ही असली समस्या है.”

गडकरी के इंटरव्यू से स्पष्ट है कि सरकार के ये दावे झूठे हैं कि नए कानूनों से न केवल एमएसपी सुरक्षित रहेगा, बल्कि वास्तव में इनसे किसानों को खुले बाजार में कंपनियों को एमएसपी से ज्यादा कीमतों पर अपनी फसलों को बेचने की ‘आजादी’ मिलेगी. जाहिर है कि किसान एमएसपी की मांग कर रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि बाजार मूल्य इससे काफी कम रहेंगे; और यह भी कि एमएसपी के अभाव में वे विपदा (डिस्ट्रेस्ड) कीमतों पर फसल बेचने के लिए बाध्य हो जाएंगे. लेकिन सरकार एमएसपी को ही समस्या मान बैठी है, और उसने ये नए कानून इसी वजह से लागू किए हैं कि कि किसानों के पास घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजारों में काफी कम कीमतों पर फसल बेचने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है.

गडकरी के इंटरव्यू से यह भी स्पष्ट है कि सरकार ने ये नए कृषि कानून इसलिए भी लाए हैं ताकि इस तथाकथित ‘अतिरिक्त’ खद्यान्न को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और गरीबों के कोटे के राशन से परे हटाया जा सके. सच तो यह है कि भारत का यह ‘अतिरिक्त’ खाद्यान्न गोदामों में सड़ जाता है; जबकि ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ में शामिल 107 देशों में भारत 94वें स्थान पर खड़ा है – अपने पड़ोसियों बंगलादेश, पाकिस्तान और नेपाल से भी काफी पीछे! यह ‘अतिरिक्त’ इसलिए है, क्योंकि सरकार ने सार्विक पीडीएस के बजाय “लक्षित” पीडीएस लागू कर रखा है, जिससे भारत के जरूरतमंद लोगों की बड़ी जमात अभिवंचित और भूख से पीड़ित है. अब, मुख्य समस्या के बतौर भूख पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय मोदी शासन यह दावा कर रहा है कि ठसाठस भरे गोदामों में पड़ा यह ‘अतिरिक्त’ (खाद्यान्न) ही मूल समस्या है; और इसीलिए वह खाद्यान्न के जैव इंधन में रूपांतरण का नुस्खा पेश कर रहा है. इन नए कानूनों से कंट्रैक्ट फार्मिंग को सार्विक बना दिया जाएगा जिससे, अन्य बातों के अलावा, इस रूपंतरण का रास्ता साफ होगा तथा हमें खद्यान्नों के मामले में विदेशों पर निर्भरता और नतीजतन, गरीबों के लिए और बड़ी खाद्य असुरक्षा की ओर धकेल दिया जाएगा.

गडकरी जो बात नहीं बोल रहे हैं, वो यह है कि मोदी शासन एमएसपी से छुटकारा पाना चाहता है, घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजारों द्वारा निर्धारित मूल्यों पर अपनी फसलें बेचने के लिए किसानों को मजबूर करना चाहता है तथा सरकारी खरीद व पीडीएस को खत्म करना चाहता है; क्योंकि वह भारतीय किसानों को मिल रही सरकारी मदद में कटौती करने के डब्लूटीओ (विश्व व्यापार संगठन) के फरमान का पालन करना चाहता है.

भारत के किसान सरकार के झूठ को साफ-साफ देख रहे हैं और वे इन तीनों नए कानूनों को मुकम्मल तौर पर रद्द करवाने के लिए दृढ़संकल्प खड़े हैं. उन्होंने एलान किया है कि 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर वे अपने ट्रैक्टरों पर सवार होकर राजधानी दिल्ली में प्रवेश करेंगेभारतीय गणतंत्र को बचाने के संघर्ष की अगली पांत में खड़े ये किसान न केवल अपने अधिकारों की दावेदारी जता रहे हैं, बल्कि वे प्रतिवाद करने के तमाम नागरिकों के अधिकार, खाद्य सुरक्षा व राशन के अधिकार और कंपनी राज से देश की आजादी की दावेदारी भी कर रहे हैं. इस महत्वपूर्ण लड़ाई में भारत की जनता किसानों के साथ खड़ी है !

 

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