उत्तर प्रदेश में गांव के गरीबों तक राहत पहुंचाने की सरकारी घोषणाएं हवा-हवाई

भाकपा(माले) ने उत्तर प्रदेश में लाॅकडाउन लागू होने के बाद विभिन्न जिलों की जमीनी स्थिति का जायजा लेकर बताया कि गांव के गरीबों तक राहत पहुंचाने की सरकारी घोषणाएं हवा-हवाई साबित हो रही हैं। पार्टी ने आजमगढ़ में गरीब और मुसहर बस्तियों में रहने वाले परिवारों से संपर्क साध कर बताया है कि उनके बीच राशन, भोजन के पैकेट, दवा, साबुन, सेनेटाइजर आदि अत्यावश्यक सामग्री से लेकर जीवन निर्वाह के लिए धनराशि भी नहीं पहुंच रही है. काम-धाम बंद होने से कई गांवों में भुखमरी जैसी स्थिति है.

रोजगार वर्ष में रोजगार कैसे-कैसे !

उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2019-20 को रोजगार वर्ष घोषित किया था. रोजगार वर्ष की अवधि मार्च 2019 से शुरू हुई. इस तरह इस मार्च के महीने के समाप्त होने के साथ रोजगार वर्ष भी निपट जाएगा. कितने नेक इरादे थे सरकार के! एक पूरे साल को कह दिया – जा तू रोजगार का साल है. पड़ोसी राज्य वाले यदि शहरों का नाम बदल कर सुर्खियां बटोर रहे हैं तो उन्नीस हमारे वाले भी नहीं हैं. वे शहरों के नाम बदलने वालों से चार हाथ आगे बढ़ गए और एक पूरे साल का ही नामकरण कर डाला – रोजगार वर्ष.

योगी राज की निर्लज्जता की कोई इंतिहा नही

सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों से वसूली

लखनऊ प्रशासन ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान को रिकवरी के लिए 13 लोगों को रिकवरी सर्टिफिकेट और डिमांड नोटिस जारी किए हैं. सभी लोगों को एक सप्ताह के भीतर अतिरिक्त जुर्माना भरने को कहा गया है.

क्या आखिरी किला भी ढह गया?

जब भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भाजपा सरकार द्वारा राज्य सभा की सदस्यता के रूप में दिये गये उपहार को खुशी-खुशी ग्रहण कर लिया, तो उनके सहयोगी रह चुके सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी. लोकुर ने उस पर सही टिप्पणी करते हुए कहा, “कुछ समय से अटकलें लगाई जा रही थीं कि जस्टिस गोगोई को क्या सम्मान मिलेगा. ऐसे में उनका मनोनयन आश्चर्यजनक नहीं है, लेकिन जो आश्चर्य की बात है, वह यह है कि फैसला इतनी जल्दी आ गया. यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता को नये सिरे से परिभाषित करता है. क्या आखिरी किला भी ढह गया है?”

भारत में कोरोनावायरस से निपटने के लिए सरकार से की जाने वाली 13 जरूरी मांगे

30 जनवरी, जब कोरोनावायरस का पहला मामला सामने आया, से लेकर 15 मार्च तक भारत में संपुष्ट मामलों की संख्या 110 हो गई है, और दो लोगों की मौत हुई है. भारत सरकार ने इस महामारी पर त्वरित प्रतिक्रिया करते हुए अंतरराष्ट्रीय यात्राओं में कटौतियां की, विदेशों से आनेवालों और उनसे संपर्कित व्यक्तियों की जांच करवाई, और उनमें वायरस पाया गया तो उन्हें अलग (आइसोलेशन) किया गया और अगर लक्षण संपुष्ट नहीं हुए तो उन्हें क्वारंटाइन में रखा गया. बेशक, इससे महामारी के फैसले की रफ्तार धीमी हुई. लेकिन जैसा कि सरकार जानती है, बदतरीन स्थिति आना अभी बाकी हैै.

आंकड़ा ‘संरक्षण’ विधेयक की खाल में छिपी आंकड़ों की तानाशाही

– राधिका कृष्णन

नागरिकता संशोधन कानून, जिसे दिसम्बर 2019 में संसद के दोनों सदनों में पारित कर दिया गया, के खिलाफ बिल्कुल वाजिब प्रतिवादों के उफान में, एक अन्य विधेयक पर लोगों का उतना ध्यान नहीं गया, जितना जाना चाहिये था. दिसम्बर 2019 में ही इलेक्ट्रॅनिक्स एंड इन्पफार्मेशन टेक्नालाजी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) ने सदन में निजी आंकड़ा संरक्षण विधेयक (डीपीबी) पेश कर दिया, और इस विधेयक पर अभी एक संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जांच की जा रही है.

हमें बांटने की कोशिश करने वाली हर साजिश को नाकाम करो

[एआईसीसीटीयू के 10वें अखिल भारतीय सम्मेलन में भाकपा(माले) महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य का भाषण]

यह मेरे लिये बड़े हर्ष और सम्मान की बात है कि आज मैं एआईसीसीटीयू के दसवें अखिल भारतीय सम्मेलन में आप सभी का अभिनन्दन कर रहा हूं. इस सम्मेलन के जरिये हम भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के एक सौ वर्षोें तथा एआईसीसीटीयू के तीस वर्षों के गौरवमय इतिहास का भी समारोह मना रहे हैं.

सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ देशव्यापी उभार : हमने क्या हासिल किया और क्या सामने है

– अरिंदम सेन

2019-20 के उस जाड़े में, जब मौसम का पारा गिरने का रिकार्ड दर्ज करा रहा था, सर्दी सामान्य से अधिक पीड़ादायक थी. राजनीतिक वातावरण भी कापफी अवसादग्रस्त था, जिसमें नागरिकता संशोधन विधेयक राज्य सभा में भी, भाजपा की वफादार विपक्षी पार्टियों के सहयोग से, पारित हो चुका था और सर्वोच्च न्यायालय भी बिल्कुल स्पष्टतः इस किस्म के सम्पूर्णतः गैर-संवैधानिक कानून को रोकने की अपनी संवैधानिक जिम्मेवारी को पूरा करने को अनिच्छुक दिख रहा था.

मोदी और ट्रम्प: करोड़ों का फालतू खर्च उड़ाकर मिले दो तानाशाह, मगर इससे भारत और भारतवासियों का क्या फायदा?

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 24 और 25 फरवरी 2020 को भारत का दौरा किया. गोदी मीडिया ने पहले से ही ट्रम्प के दौरे का तमाशा रचना शुरू कर दिया था, क्योंकि इससे शासक भाजपा सरकार एवं उसके प्रवक्ताओं को भारतीय अर्थतंत्र की आपदा, आसमान छूती बेरोजगारी और समूचे देश में साम्प्रदायिक बंटवारे की कोशिश से जनता का ध्यान परे खींचने की एक और भटकाऊ तरकीब गढ़ने का मौका मिल जाता है. लेकिन आइये हम ट्रम्प के दौरे के दृश्यमान नजारे के पार वास्तविकताओं को समझें.