वर्ष - 29
अंक - 10
29-02-2020

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 24 और 25 फरवरी 2020 को भारत का दौरा किया. गोदी मीडिया ने पहले से ही ट्रम्प के दौरे का तमाशा रचना शुरू कर दिया था, क्योंकि इससे शासक भाजपा सरकार एवं उसके प्रवक्ताओं को भारतीय अर्थतंत्र की आपदा, आसमान छूती बेरोजगारी और समूचे देश में साम्प्रदायिक बंटवारे की कोशिश से जनता का ध्यान परे खींचने की एक और भटकाऊ तरकीब गढ़ने का मौका मिल जाता है. लेकिन आइये हम ट्रम्प के दौरे के दृश्यमान नजारे के पार वास्तविकताओं को समझें.

मीडिया का तमाशा रचने के लिये करोड़ों रुपये की बर्बादी

डोनाल्ड ट्रम्प ने बारम्बार इस बात पर जोर दिया है कि उसके भारत दौरे का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह होगा कि एयरपोर्ट से लेकर समारोह स्थल के बीच के रास्ते में सत्तर-अस्सी लाख लोग उनकी अगवानी में खड़े रहें (जबकि वास्तविकता यह है कि अहमदाबाद की कुल आबादी ही 55 लाख है) और इसमें होने वाले 80-85 करोड़ रुपये के खर्च को करदाताओं को अदा करना होगा! दूसरी ओर, अहमदाबाद के गरीब लोगों को एक दीवार के पीछे छिपाये रखे जाने का अपमान और निर्ममता झेलनी होगी. ट्रम्प के अहमदाबाद दौरे की अवधि में गरीबों को अदृश्य बना देने के गुजरात माॅडल को बड़े जोर-शोर से प्रदर्शित किया जायेगा.

“पहले ट्रम्प”, भारत नहीं

जब ट्रम्प चिल्लाते हैं “पहले अमरीका”, तो मोदी सरकार के लिये वह होता है “पहले ट्रम्प”, भारत नहीं. भारत को अमरीकी हथियार खरीदने पड़े, जबकि भारतीय निर्यातों के लिये वरीयता के प्रावधानों को हटा दिया गया और उनके लिये सीमा शुल्क को बढ़ा दिया गया.

ट्रम्प के भारत दौरे के बारे में जिस बात का सबसे कम प्रचार किया गया, जबकि वही इस दौरे का मुख्य बिंदु था, वह है हथियार खरीदने का समझौता जिसके तहत भारत को अमरीका से 3 अरब डाॅलर मूल्य के हथियार खरीदने पड़े. इस प्रकार, जहां ट्रम्प हमारे खजाने पर डाका डाल रहे हैं, और भारतीय बाजार में अपना रास्ता बनाते जा रहे हैं, वहीं मोदी सरकार अमरीकी बाजारों में भारतीय निर्यातों एवं पहुंच को रोकने के लिये अमरीका जो कदम उठा रहा है, उनके खिलाफ लड़ने का कोई दम नहीं दिखा पा रही. 2016 में राष्ट्रपति बनने के बाद से ट्रम्प ने भारतीय इस्पात एवं एल्युमिनियम उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ा दिया और भारतीय मालों के लिये वरीयता की सामान्य प्रणाली (जनरल सिस्टम ऑफ प्रेफरेन्स) जिसके चलते 23 भारतीय मालों को अमरीकी बाजारों में प्रवेश करने पर सीमा शुल्क से माफी मिल जाया करती थी, को हटा दिया.

कोई राजनयिक सहूलियत नहीं – अमरीकी फरमानों के सामने घुटनाटेक आत्मसमर्पण

मोदी सरकार ने अमरीकी दबाव के आगेे घुटने टेक दिये हैं और ईरान से तेल का आयात करना बंद कर दिया है. यह कदम न सिर्फ अमरीका के सामने आत्मसमर्पण था बल्कि इसका अर्थ कम से कम दो मामलों में गंभीर आर्थिक असुविधाओं को मोल लेना था: (क) हमने ईरान को डाॅलर के बजाय रुपयों में कीमत अदा करना शुरू कर दिया था, और (ख) ईरानी कच्चे तेल के शोधन में कम कीमत लगती थी क्योंकि हमारे तेल शोध्नागारों को ईरान से आये कच्चे तेल के शोधन के लिये डिजाइन कर लिया गया था.

मोदी, उनके समर्थकों और गोदी मीडिया जैसा प्रचार करते हैं, उसके ठीक विपरीत अमरीका ने हमेशा भारत को इस अंचल में अपने ही हितों की पूर्ति में इस्तेमाल किया है.

भारत को “विकसित” राष्ट्र का दर्जा देने के पीछे छिपी सच्चाई और मोदी ब्रिगेड की झूठी वाहवाही

अमरीकी सरकार द्वारा हाल में भारत को “विकासशील” राष्ट्र के दर्जे से उठाकर विकसित राष्ट्र की श्रेणी में रखने को मोदी सरकार की भारी उपलब्धि बताकर प्रचारित किया जा रहा है! ढेरोें भाजपाई मंत्रियों एवं समर्थकों ने इसके बारे में खूब शेखी बघारी है. मगर असलियत क्या है? भारत को विकसित राष्ट्र करार देकर अमरीका मुख्यतः अमरीकी बाजारों में भारतीय उत्पादों की पहुंच को सीमा शुल्क से मुक्त करने से इन्कार कर रहा है. इसके परिणामस्वरूप अमरीका में भारतीय उत्पादों की कीमत बढ़ जायेगी और इससे हमारे निर्यातों को नुकसान उठाना पड़ेगा. (दूसरी ओर, ट्रम्प ने भारत सफर के दौरान पत्रकारों को खुद बताया है कि उनके शासन में आने के बाद से भारत को अमरीकी उत्पादों के निर्यात में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि उच्च गुणवत्ता के अमरीकी ऊर्जा उत्पादों का निर्यात 500 प्रतिशत बढ़ा है).

हमें यह नोट करना चाहिये कि भारत को विकासशील के दर्जे से विकसित राष्ट्र की कोटि में डालने का आधार उसका यह मनमाना मानदंड है कि विश्व बाजार में भारत का हिस्सा अमरीका द्वारा निर्धारित 0.5 प्रतिशत की न्यूनतम सीमा को पार कर गया है! इसके विपरीत, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किसी देश को “विकसित” अर्थतंत्र मानने के लिये दी गई परिभाषा यह है कि उसकी प्रति व्यक्ति वार्षिक आय कम से कम 12,375 अमरीकी डाॅलर होनी चाहिये, और भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक आमदनी अभी 2,000 अमरीकी डाॅलर है, जो किसी विकसित अर्थतंत्र के वैश्विक मानदंड से बहुत नीचे है.

साफ जाहिर है कि भारत पर “विकसित” अर्थतंत्र का ठप्पा लगाने के अमरीकी कदम का भारत की वास्तविक आर्थिक शक्ति और रहन-सहन के स्तर से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह अमरीका के इस निजी हित से प्रेरित है कि भारतीय उत्पादों की अमरीकी बाजारों में प्रतियोगिता क्षमता को घटा दिया जाये और अमरीका में भारत की व्यापारिक सुविधाओं को उससे छीन लिया जाये.

ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारतीयों के खिलाफ बारम्बार उठाये गये कदम और एच-1 बी वीजा में कटौती

ट्रम्प प्रशासन भारतीय पेशेवरों के लिये अमरीका में काम करना लगातार ज्यादा से ज्यादा कठिन करता जा रहा है. यह चीज एन-1 बी वीजा के लिये नियमों में लाये गये बदलाव से बिल्कुल स्पष्ट है जो अत्यंत उच्च मान के कुशल पेशेवरों को अमरीका में काम करने की अनुमति देता है. 2017 में ट्रम्प सरकार ने ‘अमरीकी माल खरीदो, अमरीकियों को रोजगार दो’ की एक नीति बनाई जिसने भारतीय पेशेवरों के लिये अमरीका में रोजगार हासिल करना और कठिन बना दिया, इस निषेधात्मक कदम के परिणामस्वरूप एच-1 बी वीजा देने से इन्कार किये जाने की दर 2015 में 4 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 15 प्रतिशत हो गई. एच-1 बी वीजा प्राप्त करने वाली भारतीय आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी) कम्पनियों का हिस्सा 2016 में 51 प्रतिशत से घटकर 2019 में 24 प्रतिशत रह गया. जो लोग पहले से अमरीका में काम कर रहे हैं, उनके लिये एच-1 बी वीजा की अवधि बढ़ाने से इन्कार किये जाने की दर 2016 में 4 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 18 प्रतिशत हो गई.

ये आंकड़े चीख-चीखकर इस तथ्य को बता रहे हैं कि ट्रम्प ने भारतीय नागरिकों के लिये अमरीका में काम करना और मुश्किल बना दिया है. ट्रम्प ने अमरीका में जिस किस्म की नफरत और अन्य लोगों के प्रति विद्वेष के उन्माद को भड़काया है, उसकी लपट के शिकार भारतीय भी हुए हैं. इसके बावजूद मोदी सरकार और उसके समर्थक इस मामले में एक लफरज तक जबान से नहीं निकालते.

ट्रम्प ने बारम्बार कहा है कि वे भारत से खुश नहीं हैं लेकिन मोदी उनके दोस्त हैं. भारत और आम भारतीयों के लिये इसका अर्थ क्या है? अंततः जो बात इन दोनों नेताओं को एकताबद्ध करती है वह है उनके द्वारा अपने-अपने देश में नफरत भड़काना, विभाजनकारी नीति पर चलना और अन्य लोगों के खिलाफ उन्माद फैलाना. और इस सब की विडम्बना तो देखिये – जो कभी अपने-आपको अति राष्ट्रवादी घोषित करते नहीं अघाते, और दूसरों की हर आवाज को “राष्ट्र-विरोधी” कहकर तिरस्कृत करते हैं, वे ही ट्रम्प के फरमानों के सामने आश्चर्यजनक रूप से विनयपूर्वक घुटने टेक रहे हैं.

हमें महज मीडिया का तमाशा रचने के लिये ट्रम्प के भारत सफर के दौरान करदाताओं के पैसों की सम्पूर्ण फालतू बरबादी का अवश्य ही पर्दाफाश करना होगा. हमें ट्रम्प प्रशासन की सनक और मन की मौज के आगे मोदी सरकार के कायरतापूर्ण आत्मसमर्पण को भी खारिज करना होगा और उसका पर्दाफाश करना होगा.