अरवल (बिहार) में 25-26 अगस्त को ऐपवा की राज्यस्तरीय कार्यशाला आयोजित हुई. कार्यशाला के विषय थे –
1. महिला उत्पीड़न के मामलों में हमारा (ऐपवा का) नजरिया क्या होगा, हम इसे कैसे हल करेंगे, हमारी क्या पहलकदमी होगी?
2. तीन आपराधिक कानूनों से न्याय प्रक्रिया में क्या बदलाव आयेंगे? और
3. महिलाओं की आजादी के सवाल को किस संदर्भ में देखा जाना चाहिए?
उपरोक्त तीनो विषयों पर क्रमशः का. मंजू प्रकाश (बिहार महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष और ऐपवा नेता), एडवोकेट का. मंजू शर्मा (आइलाज की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) और का. मीना तिवारी (महासचिव, ऐपवा) ने अपने विचा साझा किए. कार्यशाला के अंत में ऐपवा के सांगठनिक मुद्दों पर भी बातचीत हुई. इस कार्यक्रम में 19 जिलों से 67 महिला साथियों ने हिस्सा लिया.
महिलाएं इज्जत के दबाव में रहेंगी तो लड़ना मुश्किल होगा – मंजू प्रकाश
पहले सत्र का विषय प्रवेश करते हुए का. मंजू प्रकाश ने कहा कि शुरूआती दौर में समाज में समानता थी, लेकिन जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ा और निजी सम्पति का विकास हुआ, वैसे-वैसे समाज में पुरुष की प्रधानता हावी होती चली गई और समाज में गैर बराबरी कायम हो गई.
महिला उत्पीड़न की विभिन्न तरह के सवाल संगठन के पास आते हैं. यह हमारे लिए चुनौती है कि महिला उत्पीड़न के सवाल पर क्या पहलकदमी होनी चाहिए.
सबसे पहले तो महिला उत्पीड़न की हर घटना की सूचना पाते ही ऐपवा की टीम को उत्पीड़ित महिला के पास जाना चाहिए. घरेलू हिंसा के मामलों में महिला और घरवालों से बातचीत करके हल निकालना चाहिए और महिला का उत्साह बढ़ाना चाहिए.
ऐपवा को महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनने के लिए प्रेरित करना चाहिए. महिला का मायके में भी संपति का अधिकार है और उसके लिए भी उसे आगे बढ़ना होगा, यह बात ऐपवा को स्थापित करनी चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘इस धरती पर आधी आबादी हम औरतों की है, इसलिए समाज में हर जगह हमें बराबरी की लड़ाई लड़नी पड़ेगी. हर जगह जहां महिलाएं काम करती हैं, वहां उनके इस अधिकार की गारंटी दिलाने के लिए एक कमिटी अवश्य ही होनी चाहिए.’
महिला उत्पीड़न के खिलाफ बहुत सारे कानून बने हैं लेकिन इन कानूनों के बारे में अधिकांश महिलाओं को पता नहीं है. अगर कोई महिलाओं को दो मिनट तक घूरता है या गाली देता है तो उसके खिलाफ भी कानून की धारा है. हमें इसके बारे में उन्हें जानकारी देना होगा और उनको जागरूक करना होगा.
ऐपवा या पार्टी के पास अगर महिला उत्पीड़न का कोई मामला आता है तो यह धारणा नही बनानी चाहिए कि महिला या लड़की ही गलत है. इससे उसकी परेशानी को नहीं समझा जा सकता है. कई मामलों में हमारे साथियों में चाहे वे पुरुष हों या महिला, पुरुष मानसिकता हावी रहती है या उनके अंदर जानकारी का अभाव रहता है जिसके कारण महिला उत्पीड़न के सवाल पर उनका नजरिया ठीक नही रहता है.
कुछ मामलों में उत्पीड़ित महिला से उस गांव की महिलाएं भी द्वेष रखती हैं. वे उस महिला के खिलाफ हो जाती हैं. इस स्थिति में ऐपवा के साथियों को मजबूती के साथ उत्पीड़ित महिला के पक्ष में खड़ा होना चाहिए. गांव की महिलाओं और पुरुषों को समझाना चाहिए कि उस महिला का दोष नहीं है. दोष उस पुरुष का है जिसने उत्पीड़न किया है और सजा उसे मिलनी चाहिए. महिलाओं को प्रतिष्ठा के बोझ तले दबा दिया गया है. प्रतिष्ठा कोई ऐसी चीज नहीं है जो महिलाओं के भीतर चस्पां है. जो बलात्कारी है, उत्पीड़क है ईज्जत उसकी जाती है. महिलाएं इज्जत के दबाव में रहेंगी तो लड़ना मुश्किल होगा.
महिला सशक्तीकरण को सरकारी परिभाषा से बाहर ले जाना होगा – मीना तिवारी
कोलकता में महिला डाक्टर की बलात्कार करके हत्या कर दी जाती है और कॉलेज का प्रिंसिपल का कहना है कि रात में सेमिनार हॉल में डॉक्टर क्या कर रही थी? इस सवाल पर बिहार, दिल्ली, कोलकता समेत पूरे देश में आंदोलन हुआ.
मुजफ्फरपुर के पारू में एक बच्ची के साथ बलात्कार होता है और उसकी हत्या कर दी जाती है. ऐपवा की टीम लड़की के परिवार वालों से मिली. लड़की की मां ने कहा कि आधी रात को चार पांच लोग घर में घुस गए, लड़की जो मां और बहन के बीच में सोई हुई थी, उसे उठाकर ले गए और बलात्कार करके हत्या कर दी. उसकी लाश सुबह एक पोखर में मिली. पुलिस का कहना है कि लड़की वहां अपनी मर्जी से गई थी. कुछ लोग इसको ऑनरकिलिंग का मामला बता रहे हैं. इसके खिलाफ पटना से लेकर पूरे बिहार में आंदोलन होने के बाद ही प्रशासन की सक्रियता बढ़ी. सवाल यह उठता है कि क्या लड़कियों को रात में कहीं जाने का अधिकार नहीं है?
महिलाओं के प्रति पुरुषों और महिलाओं दोनों का नजरिया सही होना चाहिए. लोगों के डर से लड़कियों का कपड़ा पहनने की आजादी, बाहर जाने की आजादी और शादी करने की आजादी को खत्म नहीं किया जा सकता है.
महिला आजादी के कई रूप है. आजादी का मतलब है हर चीज में पुरुषों से बराबरी हो, चाहे वह कामकाज का क्षेत्र हो, घर हो या बाहर का समाज. घर हो या बाहर हर जगह महिलाओं को अभी भी फैसला लेने की आजादी नहीं है.
हमें भी अपनी बेटियों से महिला आजादी पर बात करनी चाहिए, हमें नयी पीढ़ी को भी समझना चाहिए, उनके विचारो को भी जानना चाहिए. स्कूलों में भी इन चीजों को पढ़ाना चाहिए, लेकिन भाजपा की सरकार ऐसा नहीं कर रही है.
औरतों को ‘कंट्रोल’ में रखने के लिए ये सारी परम्परायें बनाई गईं. औरतें मार खाकर भी पति के साथ रहती हैं क्योंकि वे आर्थिक रूप से मजबूत नही हैं. हमलोग जिस समाज की कल्पना करते हैं उस समाज में किसी को दबाया नहीं जाएगा.
औरत अच्छी या बुरी नही होती. सब बराबर होती है. लोग इस तरह की बात फैलाते हैं कि बलात्कार होने पर इज्जत चली जाती है, यह समाज का नजरिया है और यह इसलिए पैदा हुआ कि परम्परागत रूप में महिला को किसी मर्द के सम्पत्ति माना गया. बलात्कार इस सम्पत्ति पर डाका डालना है.
2012 में निर्भया कांड के बाद बलात्कार को रोकने के लिए ‘वर्मा कमीशन’ बना था. बलात्कार के खिलाफ फांसी की सजा नही होनी चाहिए क्योंकि इससे बलात्कार के बाद हत्या वाले मामले बढ़ गये हैं. बलात्कारी को लगता है कि वह अगर बलत्कृत को जीवित छोड़ देगा तो उसको फांसी हो जाएगी.
बलात्कार के मामले में 100 में मात्र 27 प्रतिशत ही दोष सिद्ध हो पाता है और सजा मात्र 9 को ही हो पाती है.
महिलाओं के पास पूंजी भी कम है और उनको मजदूरी भी कम मिलती है. सरकारें ऐसी नीतियां बना रही हैं जिसमें पूंजीपतियों को फायदा होता है, आम लोगों को नहीं.
‘सशक्तीकरण’ सरकारी भाषा है. सरकार कहती है कि वह महिलाओं का सशक्तीकरण कर रही है. लेकिन अगर सरकार के बजट में महिलाओं के लिए योजना या लाभ नहीं है तो महिलाओं का सशक्तीकरण कैसे होगा?
महिलाओं या लड़कियों की चौकीदारी दूसरा क्यों करेगा? यह उनकी आजादी है कि वे क्या खायेंगी, क्या पहनेंगी, कहां जाएंगी?
महिलाओं के लिए न्याय को कमजोर बनाते हैं नए आपराधिक कानून – मंजू शर्मा
स्वतंत्रता दिवस के दिन बिलकिस बानो के बलात्कारियों को बरी करके सम्मानित किया गया था. छोटी बच्चियों से लेकर हर उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनायें हो रही है और इसका जिम्मेवार बच्चियों और महिलाओं को ही ठहराया जा रहा है. भाजपा के 40% सांसदों का आपराधिक रिकार्ड है और उसके समर्थन से चुनाव लड़नेवाला एक प्रत्याशी तो 2500 से ज्यादा महिलाओं का यौन उत्पीड़क था जिसके लिए प्रधानमंत्री मोदी भी वोट मांग रहे थे.
घरेलु हिंसा के मामले में धारा 498 लगाई जाती है लेकिन मानसिक हिंसा भी होती है. अब इस धारा को कमजोर किया जा रहा है. महिला उत्पीड़न के मामले में एक नई बहस शुरू हुई है कि इसके लिए महिलाएं ही जिम्मेवार हैं और गलत भी हैं. यह बहस चल रही है कि एससी/एसटी कानून और घरेलू हिंसा कानून का दुरुपयोग हो रहा है.
भाजपा सरकार किसी भी कानून को बनाने में किसी से विमर्श नही करती है. अब मादी सरकार ने भारतीय दंड संहिता को बदलकर न्याय संहिता, भारतीय अपराधिक प्रक्रिया संहिता को बदलकर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलकर भारतीय साक्ष्य संहिता का नाम दे दिया गया है.
शैक्षणिक और आर्थिक रूप से ऊपर उठाने के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया है. उसके तहत सरकार की जिम्मेवारी होती है कि वह वंचित समुदाय के लिए शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य की गारंटी करे.
अब आप धरना-प्रदर्शन करेंगी तो प्रशासन आरोप लगा सकता है कि आप उसके कामकाज में बाधा डाल रही हैं. भूख हड़ताल करना भी अब अपराध होगा.
पुलिस मजिस्ट्रेट के आदेश पर 14 दिन का रिमांड पर लेती थी लेकिन अब यह अवधि बढ़ाकर 90 दिन तक की कर दी गई है. इसमें अगर पुलिस प्रताड़ित करके मार भी देगी तो पुलिस पर कोई कार्रवाई नही होगी.
बलात्कार के मामले में 24 घंटे के भीतर जांच करने की बाध्यता अब नहीं रही. मॉब लिंचिंग के लिए सजा का प्रावधान है अगर भीड़ के द्वारा हत्या होती है, लेकिन अगर धर्म के नाम पर हत्या होती है तो उसकी कोई सजा नहीं होगी. शादी के नाम पर अगर कोई यौन संबंध बनाता है लेकिन शादी नहीं करता है तो इसमें भी सजा का प्रावधान है. जेल के अंदर अगर बलात्कार होता है तो उसमें जज न्यायिक जांच करते थे. लेकिन अब इसकी जांच मजिस्ट्रेट करेंगे जिसमें लीपापोती की संभावना ही ज्यादा है.
शादी के सात साल के अंदर अगर हत्या होती है वह दहेज हत्या के दायरे में आती है .हर मामले का जुड़ाव सत्ता और सम्पति के लिए होता है. घरेलू हिंसा में परिवार के सभी सदस्य को बेल दे दिया जाता है यहां तक कि पति को भी 498. धारा खत्म न हो इसके लिए महिला संगठनों को सड़कों पर आना चाहिए और इस कानून को सख्ती से लागू करने की मांग करनी चाहिए. ‘समान नागरिक संहिता’ का विरोध इसलिए भी होना चाहिए कि समान में ही समानता नहीं हैं. पहले सभी की स्थिति को समान करो तब समान कानून लागू करो – यह मांग अनुचित नहीं है.
सत्रों की शुरुआत महिला साथियो द्वारा जनवादी गीतों की प्रस्तुति से व सत्रों का अंत सवाल-जवाब से हुआ.