आइसा का 10 वां राष्ट्रीय सम्मेलन 9-11 अगस्त 2023 को कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में युवा भारत को सांप्रदायिक नफरत नहीं; शिक्षा, सम्मान और रोजगार चाहिए! शिक्षा के निजीकरण, केंद्रीयकरण और भगवाकरण पर रोक लगाओ! के नारे के साथ संपन्न हुआ.
सम्मेलन की शुरुआत 9 अगस्त को कोलकाता के मशहूर काॅलेज स्ट्रीट में खुले सत्र एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हुई. खुले सत्र को जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मानस घोष, भाकपा(माले) के पश्चिम बंगाल राज्य सचिव अभिजीत मजूमदार, आइसा और जेएनयू की पूर्व अध्यक्ष सुचिता डे और बिहार में भाकपा(माले) के विधायक संदीप सौरभ ने संबोधित किया. खुले सत्र को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने देश की मौजूदा स्थिति एवं केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा शिक्षण संस्थानों पर हो रहे हमले पर बात रखी. वक्ताओं ने कहा कि देश की नई शिक्षा नीति, 2020 कैंपसों पर एक हमला है. इसके माध्यम से शिक्षण संस्थानों का निजीकरण, भगवाकरण एवं पाठ्यक्रमों का सांप्रदायीकरण किया जा रहा है. देश भर के विश्वविद्यालयों में फीस वृद्धि हो रही है. इसके खिलाफ आइसा संघर्ष कर रहा है एवं आइसा की यह जिम्मेदारी भी है कि इस फासीवादी हमले के खिलाफ संघर्ष तेज करे.
संस्कृतिकर्मी राजू रंजन (जसम, बिहार) ने ‘नहीं अलग है संघर्षों से, जीवन की सुंदरता’ और ‘आव हो भइया पकौडा बनावे’, सहित कई अन्य क्रांतिकारी गीतों की प्रस्तुति दी. आइसा के कई अन्य साथियों द्वारा भी जनगीतों की प्रस्तुति दी गई.
10 अगस्त को उद्घाटन सत्र की शुरुआत रोहित वेमुला, पायल तड़वी, शहीद का. चंद्रशेखर, प्रशांता और हाल में दिवगंत दलित चिंतक, बाबा साहेब अंबेडकर तथा महात्मा ज्योतिबा फूले के रचनाओं के संकलनकर्ता हरि नरके सहित अन्य दिवंगत नेताओं, क्रांतिकारी साथियों और शहीदों को श्रद्धांजलि देने के साथ हुई.
उद्घाटन सत्र में दोस्ताना वामपंथी संगठन एआईएसएफ के राष्ट्रीय महासचिव शुभम बनर्जी, एसएफआई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रतिकुर रहमान, पीएसयू के महासचिव नौफुल सैफुल्ला, डीएसओ के बंगाल राज्य अध्यक्ष मणिशंकर मौजूद रहे. वामपंथी संगठनों के प्रतिनिधियों ने आइसा के 10 वें राष्ट्रीय सम्मेलन के लिए शुभकामनाएं देते हुए वामपंथी एकता पर जोर देते हुए कहा कि वामपंथी छात्र संगठनों को मोदी-भाजपा सरकार के खिलाफ जिसने देश के आम लोगों के खिलाफ खुला हमला शुरू कर दिया है, की जनविरोधी और छात्र विरोधी नीतियों से लड़ने के लिए एक साथ आना चाहिए. कहा कि मोदी राज में खुलेआम मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाया जा रहा है, आदिवासियों से उनके जल-जंगल-जमीन छीनकर पूंजीपतियों के हवाले किया जा रहा है और पाठ्यक्रमों का भगवाकरण किया जा रहा है.
सत्र को संबोधित करते हुए आरवाइए के महासचिव नीरज कुमार ने आइसा के 10वें सम्मेलन के शानदार आयोजन के लिए बधाई देते हुए कहा कि आज यह सम्मलेन ऐसे दौर में हो रहा है, जब मोदी सरकार देश की जनता द्वारा संघर्ष और शहादत के दम पर हासिल की गई तमाम उपलब्धियों चाहे देश का लोकतंत्र हो, संस्थाएं हो, रोजगार के अवसर, नागरिकों के अधिकार और शैक्षणिक संस्थाएं हो, सभी को छीन लेने के अभियान में लगी है. युवाओं के भीतर नफरत भरा जा रहा है. मणिपुर जल रहा है और केंद्र सरकार चुप्पी साधे हुई है. प्रधानमंत्री मोदी ने वहां का दौरा तक नहीं किया. रोजगार मांग रहे नौजवानों के हाथ में तलवार थमा कर मुसलमानों का मुहल्ला दिखा दिया जा रहा है. हमें पूरी सावधानी और बहादुरी के साथ भाजपा-आरएसएस के नफरत के कारोबार पर ताला भी लगाना होगा और शिक्षा-रोजगार के सवाल गोलबंदी बढ़ाना होगा.
उद्घाटन सत्र को शिक्षविद् कुमार राणा एवं ऑल बंगाल स्टूडेंट्स एसोसिएशन के संस्थापक नीलकंठ आचार्य ने भी संबोधित किया और सम्मेलन को शुभकामनाएं दीं.
साउथ एशियन साॅलिडेरिटी ग्रुप की का. कल्पना विल्सन ने आइसा को बधाई व शुभकामनाएं देते हुए कहा कि दुनिया भर के छात्र भी लगभग वही मार झेल रहे हैं, जो भारत के छात्र झेल रहे हैं. कोर्स की फीस में लगातार वृद्धि कर शिक्षा को महंगा करने के साथ ही, शैक्षणिक संस्थानों को निजी हाथों में बेचा जा रहा है. भारत में इसके खिलाफ आइसा लगातार लड़ रहा है. यह एक संतोषजनक बात है.
उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि ऐसे समय में जब आइसा अपना ऐतिहासिक सम्मेलन कर रहा है, उमर खालिद, गुलफिशा फातिमा जैसे कई स्टूडेंट एक्टिविस्टों को, जिन्होंने लोकतांत्रिक कैंपस और नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया, झूठे मुकदमे में जेलों में बंद कर दिया गया है. भीमा कोरेगांव की तरह, सीएए विरोधी प्रदर्शनों को आपराधिक बनाने की साजिश अंबेडकर के भारत को नष्ट करने की बड़ी योजना का हिस्सा है. कैंपसों पर लगातार हमले किए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि छात्रों पर यह उजागर करने की बड़ी जिम्मेदारी है कि कैसे सरकार मुसलमानों और अन्य उत्पीड़ित समुदायों के खिलाफ अपनी नफरत की राजनीति को अंजाम देने के लिए युवा भारत को भीड़ में बदल रही है.
उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि आइसा इस अवसर पर आगे आए और नफरत की राजनीति के लिए युवाओं का इस्तेमाल किए जाने की इस प्रथा को रोके और एक मजबूत छात्र आंदोलन का निर्माण करे जो बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह के सपनों के भारत का निर्माण करे. बस्तियों में, झुगियों में, मजदूरों, किसानों के बीच जा कर उनको संगठित करने एवं शिक्षित करने का काम आइसा को करना है. आइसा को व्यापक से व्यापक छात्र समुदाय के बीच जाना है. ‘नए भारत के वास्ते, भगत सिंह-अंबेडकर के रास्ते’ का जो नारा हमने दिया था उसको और आगे ले करे जाना है. भगत सिंह और अंबेडकर को एक साथ आने पर ही बदलाव संभव है. उन्होंने आइसा के तीन दशक से अधिक समय के छात्र आंदोलन सहित अन्य आंदोलनों के इतिहास का भी जिक्र किया इस सत्र को संबोधित करनेवालों में ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वूमेंस एसोसिएशन (ऐपवा) की बंगाल राज्य सचिव का. इंद्राणी गुप्ता और भाकपा(माले) के पोलित ब्यूरो सदस्य रवि राय भी शामिल रहे.
उद्घाटन सत्र में ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों के वामपंथी रुझान रखने वाले छात्र संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए. कुछ ने सम्मेलन को वीडियो संदेश भेजकर एकजुटता प्रकट की.
सम्मेलन के तीसरे व अंतिम दिन मसविदा दस्तावेज पर चर्चा हुई. जिसमें देश के 21 राज्यों से आए प्रतिनिधियों ने संगठन की गतिविधियों के संबंध में अपनी रिपोर्ट रखी एवं मसविदा दस्तावेज पर चर्चा की.
संगठन के अंदर किसी तरह की यौन उत्पीड़न के सवाल को निपटने के लिए एवं जेंडर के सवालों पर जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से जेंडर सेंसटिविटी कमिटी अगेंस्ट सेक्सुअल हरासमेंट (जीएस-कैश) के संविधान में कुछ महत्वपूर्ण बदलावों पर चर्चा के लिए एक अलग सत्र भी चलाया गया.
सम्मेलन से 171 सदस्यों की राष्ट्रीय परिषद, 63 सदस्यों की कार्यकारिणी एवं 15 सदस्यीय पदाधिकारियों का चुनाव हुआ. प्रसेनजीत कुमार राष्ट्रीय महासचिव व निलासिस बोस राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये. सबीर कुमार, लेखा अडावी, वकार, नेहा, सुब्रत और अंकित राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वं मधुरिमा, चंदा यादव, सुंदर राजन, त्रिलोकी नाथ, क्लेंग डोंग व शिवम राष्ट्रीय सचिव चुने गये.
– कुमार दिव्यम