“यह एक व्यक्ति का शासन है, बाकी सब कठपुतलियां हैं. जनता और सरकार के ऊपर और नीचे के अफसर मूक और लकवाग्रस्त हो गए हैं.” इन पंक्तियों को पढ़ कर यह आज की जैसी बात मालूम पड़ती है. लेकिन यह उस आपातकाल की बात है, जो 1975 में 26 जून को इस देश पर थोप दी गयी थी. और यह इकलौता वाक्य नहीं है, जो आज के जैसा प्रतीत होता है. प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर की आपातकाल पर लिखी पुस्तक “द जजमेंट : इनसाइड स्टोरी ऑफ इमरजेंसी” को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि आज के हालात का ही ब्यौरा है, बस कुछ पात्र बदल दिये गए हैं. बदले हुए पात्रों को भी वर्तमान किरदारों से मिलता-जुलता पा सकते हैं.