पूरे देश में जो मौजूदा निजाम है, सांप्रदायिक विभाजन और घृणा उसका एक अनिवार्य तत्व है. निरंतर ऐसे प्रयास किए जाते हैं, जिससे सांप्रदायिक घृणा का फैलाव निरंतर होता रहे. उसका स्थायी राग है कि बहुसंख्यक खतरे में हैं! कोई पलट कर पूछे तो कि देश और अधिकांश प्रदेशों में भी तुम, बहुसंख्यक धर्म के स्वयंभू ठेकेदार सत्ता में हो तो उसके बावजूद उस धर्म पर यह तथाकथित खतरा क्यूं मंडरा रहा है? तुम्हारे सत्ता में रहने से यदि उस धर्म पर खतरा बढ़ रहा है, जिसके तुम स्वयंभू ठेकेदार हो तो इस खतरे से उबरने का उपाय तो तुम्हारी सत्ता से बेदखली ही है!