ऑर्डनेंस श्रमिकों की सफल हड़ताल ने आन्दोलन की राह दिखाई

मोदी-शाह सरकार अपनी दूसरी पारी की पहली तिमाही पूरी कर रही है, और उसने पंजे मारने शुरू कर दिए हैं. यह सरकार तीन तलाक और कश्मीर मुद्दे पर अपने कदमों से लोगों को चाहे जितना भी खुश करने और उनके दिमाग से अन्य बातों को निकाल देने की कोशिश क्यों न करे, पूरे भारत के लोग अब आर्थिक मंदी के विनाशकारी असर के बारे में खुलकर चर्चा करने लगे हैं. वित्त मंत्री की देर से आई स्वीकारोक्ति और रिजर्व बैंक के अधिशेष से 176000 करोड़ रुपये केंद्र सरकार के कोष में डाल देने की घटना ने चरम आर्थिक संकट के बारे में आम जन की बढ़ती समझ को ही संपुष्ट किया है.

स्वाधीनता दिवस पर मोदी का भाषण : “देशभक्ति” की आड़ में साम्प्रदायिक, गरीब-विरोधी एवं कारपोरेट-परस्त राजनीति

स्वाधीनता दिवस पर नरेन्द्र मोदी के भाषण ने भाजपा सरकार की दूसरी पारी के लिये संघ के साम्प्रदायिक फासीवादी एजेन्डा का इशारा दे दिया है. इनमें सबसे उल्लेखनीय है छोटे परिवारों को ‘देशभक्त’ बताते हुए ‘जनसंख्या नियंत्राण’ अभियान. प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक क्षेत्र की परिसम्पत्तियों के निजीकरण को जनता को सरकारी हस्तक्षेप से “मुक्त” कराने के एक कदम के बतौर, और श्रम एवं पर्यावरण रक्षा कानूनों को “गैर-जरूरी” बताने की भी कोशिश की.

15 अगस्त 2019 : मोदी सरकार की फासीवादी साजिशों को नाकाम करने के लिये स्वाधीनता आंदोलन की भावना को सशक्त करें

इस साल 15 अगस्त को भारत अपनी आजादी की 72वीं सालगिरह मनायेगा. दो साल बाद उपनिवेशोत्तर भारत की प्लैटिनम जयंती (75 वर्ष) मनाने का वर्ष शुरू हो जायेगा. मगर इतिहास की यह निष्ठुर विडम्बना है कि जो शक्तियां ब्रिटिश उपनिवेशवाद से स्वतंत्रता हासिल करने की लड़ाई के बिल्कुल विपरीत खड़ी थीं, वही शक्तियां आज भारत पर राज कर रही हैं.

जम्मू और कश्मीर का संवैधानिक दर्जा बहाल करो! भारत की संघीय लोकतांत्रिक नीव खोदना बंद करो!

कई दिनों तक अटकलबाजी में उलझाने और साजिशाना इशारे देने के बाद, मोदी सरकार ने अचानक 5 अगस्त को जम्मू और कश्मीर के सम्बंध में अपनी योजना का खुलासा कर दिया. यह किसी संवैधानिक तख्तपलट से कत्तई कम नहीं है, जिसे बहुत ही धूर्ततापूर्ण और साजिशाना तरीके से अंजाम दिया गया है. संविधान की धारा 367 के तहत राष्ट्रपति का एक आदेश जारी करके सरकार ने धारा 370 की प्रमुख उपधाराओं के मायने ही बदल दिये हैं, और इस तरह कोई स्पष्ट रूप से संशोधन लाये बिना ही धारा 370 को वस्तुतः खत्म कर दिया है.

मुस्लिम आबादी और आप्रवासन सम्बंधी साम्प्रदायिक मिथकों का भंडाफोड़ करो

भारत की शासक पार्टी भाजपा के निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों एवं भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल के सदस्यों ने विगत 11 जुलाई 2019 को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ मनाते हुए, भारत में मुसलमानों की आबादी के बारे में खुद ही गढ़े हुए जहरीले साम्प्रदायिक मिथकों का प्रचार किया.

एक राष्ट्र, एक चुनाव: संघवाद और लोकतंत्र पर हमला

लगातार दूसरी बार जीतकर सत्ता में आने के बाद लगता है कि मोदी सरकार अपने कुछेक पसंदीदा खयालात को अमली जामा पहनाने में हड़बड़ी से जुट गई है. अगर आर्थिक एजेन्डा में उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है निजीकरण और श्रम-कानूनों में संशोधन, तो मौजूदा घड़ी पर उनको जो सर्वप्रमुख राजनीतिक सनक चढ़ी है वह है “एक राष्ट्र-एक चुनाव”. मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में भी इस विचार को थोपने की पूरी कोशिश की थी.

कोलकाता में डाक्टरों का आंदोलन : मुद्दे और सबक

एक सप्ताह तक आंदोलन चलाने के बाद कोलकाता के प्रतिवादकारी यूनियर डाक्टरों को आखिरकार 17 जून2019 को सीधे मुख्यमंत्री से समझौता वार्ता करने का अवसर मिला. प्रतिवादकारी डाक्टरों के प्रतिनिधियों और राज्य सरकार के बीच हुई चर्चा का टेलीविजन पर सीधा प्रसारण किया गया और उसका अंत एक सकारात्मक मुकाम पर हुआ. जिसके दौरान डाक्टरों ने अपनी फौरी मांगें पेश कीं और सरकार ने अपनी ओर है घोषणाएं की और आश्वासन दिये. जबकि प्रतिवादकारी डाक्टर काम पर वापस जा रहे हैं, वहीं सरकार पर यह नजर रहेगी कि वह अपनी बातों पर कितनी गंभीरता है अमल करती है.

बिहार में इंसेफ्लाइटिस महामारी : बिहार और केंद्र सरकारों के हाथ खून से रंगे हैं

बिहार में जापानी इंसेफ्लाइटिस को रोक-थाम और इलाज में आपराधिक लापरवाही के लिए बिहार और केंद्र की सरकारें दोषी हैं. ‘एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम’ (एईएस, जिसे बिहार में आम तौर पर ‘चमकी बुखार’ कहा जाता है) से बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के जिलों में 125 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है.

सत्ता में मोदी सरकार: शुरुआती संकेत और नई चुनौतियां

लोग व्यापक तौर पर जिस बात की उम्मीद लगाये थे, उसके उलट मोदी सरकार पहले से ज्यादा मजबूत आकार में वापस आई है. भाजपा ने अपने बूते पहले से बड़ा बहुमत हासिल किया और अपने वोट प्रतिशत को भी बढ़ा लिया है. पिछले पांच वर्षों के दौरान हमने देखा है कि कैसे मोदी सरकार ने 2014 में मिली विजय का इस्तेमाल न सिर्फ कॉरपोरेट लूट एवं आक्रामकता को बढ़ावा देने में, बल्कि संविधान के खिलाफ लगातार युद्ध छेड़ने में, शासन के विभिन्न संस्थानों की स्वायत्तता तथा नियंत्रण एवं संतुलन कायम रखने की पूरी प्रणाली को तबाह करने और आरएसएस के एजेन्डा को लागू करने में किया.