लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने संयुक्त छात्र मोर्चा के नेतृत्व में बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली लागू करने के प्रशासन के निर्णय के खिलाफ अपना विरोध तेज कर दिया है. यद्यपि यह आंदोलन बायोमेट्रिक उपस्थिति की वजह से शुरू हुआ था, अब यह आंदोलन व्यापक मुद्दों को लेकर हो रहा है जिनसे शोधार्थी परिसर में जूझ रहे हैं. उनकी मुख्य मांगों में वे शोधार्थी जो जेआरएफ अनुदान के पात्र नहीं हैं, उनके लिए गैर-नेट फेलोशिप और गुणवत्तापूर्ण शोध के लिए अकादमिक ढांचे में सुधार शामिल है.
शोधार्थियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने बायोमेट्रिक उपस्थिति के मुद्दे पर विश्वविद्यालय के अधिकारियों से मुलाकात की. विश्वविद्यालय ने उन्हें आश्वासन दिया था कि सभी हितधारकों के साथ बातचीत करने और इन मुद्दों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एक समिति बनाई जाएगी. हालांकि, अब यह स्पष्ट हो गया है कि यह समिति केवल एक औपचारिकता है, जिसमें स्वयं शोधार्थियों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. समिति शोधार्थियों के समग्र शोध वातावरण से जुड़े मुद्दों की जांच करने के बजाय केवल बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली को लागू करने पर केंद्रित है, जिससे शोधार्थियों और प्रशासन के बीच विश्वास और टूट रहा है.
यह ध्यान देने योग्य है कि यूजीसी ने शोधार्थियों के लिए बायोमेट्रिक प्रणाली लागू करने के लिए कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किए हैं. इस प्रणाली को लागू करना न केवल अनुचित है बल्कि अवांछनीय भी है. इसके चलते शोधार्थी अपने अकादमिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अपनी उपस्थिति दर्ज कराने पर अधिक ध्यान दे रहे हैं. इसका असर उनके शोध उत्पादन पर पड़ा है और उन्होंने अनावश्यक तनाव का सामना किया है.
इसके अलावा, यह कदम शोधार्थियों की सीमित शैक्षणिक स्वतंत्रता पर सीधा आघात है. नियमित नौकरियों के विपरीत, शोध में लचीलापन आवश्यक होता है. अक्सर शोधार्थियों को पुस्तकालयों, अभिलेखागार में काम करने या फील्डवर्क करने की आवश्यकता होती है. बायोमेट्रिक उपस्थिति की यह कठोर मांग इस स्वतंत्रता को समाप्त करती है, जिससे शोधार्थियों को परिसर में शारीरिक रूप से उपस्थित होना पड़ता है, भले ही उनके शोध की आवश्यकताएं कुछ और हों. यह प्रणाली शोध में प्रगति को सक्षम करने के बजाय उसे नियंत्रित करने का उपकरण बन गई है.
बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली के विरोध के अलावा, शोधार्थी गैर-नेट फेलोशिप की भी मांग कर रहे हैं. नेट परीक्षा में बैठने वाले 1% से भी कम छात्रा जेआरएफ के लिए पात्र होते हैं, जिससे अधिकांश शोधार्थी बिना किसी वित्तीय सहायता के रह जाते हैं. यह समर्थन न मिलने के कारण उनके लिए अपने शोध को जारी रखना कठिन हो जाता है. गैर-नेट शोधार्थी शैक्षणिक समुदाय में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और उन्हें वित्तीय सहायता मिलनी चाहिए जिससे वे अपने काम को वित्तीय कठिनाइयों के बिना जारी रख सकें। इस अनुदान के बिना, कई शोध को छोड़ने के लिए मजबूर होते हैं, जिससे विश्वविद्यालय में शैक्षणिक कार्य की गुणवत्ता और उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
शोधार्थी लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन से लिखित आश्वासन की मांग कर रहे हैं कि वह इन मुद्दों पर कार्रवाई करेगा. मांगों में बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली को तुरंत वापस लेना, सभी शोधार्थियों के लिए गैर-नेट फेलोशिप की व्यवस्था करना और शोध ढांचे में सुधार शामिल है. शोधार्थियों ने विश्वसनीय वाई-फाई, विभागीय पुस्तकालयों तक पहुंच, स्वच्छ पेयजल और उचित कार्यक्षेत्र की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला है. इसके अतिरिक्त, वे वजीफे, हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए) और अन्य आवश्यक भत्तों के प्रोसेसिंग में होने वाली नौकरशाही देरी को दूर करने की मांग कर रहे हैं, जो उनके अकादमिक प्रगति में अनावश्यक बाधाएं उत्पन्न करती हैं.
यदि प्रशासन लिखित रूप में आश्वासन प्रदान करने में विफल रहता है, तो शोधार्थियों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू करके अपने विरोध को बढ़ाने के लिए तैयार हैं.