वर्ष - 33
अंक - 36
31-08-2024

- मनमोहन कुमार

साइमन बोलिवर और ह्यूगो शावेज की विरासतों से हौसला-अफजाई करती बोलिवेरियन क्रांति, एक दुर्जेय शक्ति के रूप में खड़ी है, जिसने अमेरिकी साम्राज्यवाद के घातक प्रभाव के खिलाफ गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों को सशक्त बनाने का काम किया है. बोलिवेरियन क्रांति ने लैटिन अमेरिका की जनता की आजादी के लिए लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, एक ऐसा संघर्ष जो अमेरिका समर्थित शासनों और हस्तक्षेपों जिसके परिणामस्वरूप शीत युद्ध के दौर में अनगिनत लोगों की जान चली गई, के इतिहास से प्रभावित रहा है. पूंजीवाद और साम्राज्यवाद का विरोध करने वाले इस आंदोलन का उद्देश्य अमेरिकी नियंत्रण से मुक्त होना, देश के संसाधनों पर नियंत्रण हासिल करना, पड़ोसी देशों के बीच एकता को बढ़ावा देना और समाजवादी नीतियों के माध्यम से गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों का उत्थान करना है. बोलिवेरियन क्रांति सीधे तौर पर अमेरिका के हस्तक्षेप, तख्तापलट और इलाके में तानाशाही शासन के समर्थन के इतिहास को चुनौती देती है. वेनेजुएला के प्रचुर तेल भंडार और उद्योगों के राष्ट्रीयकरण के सरकारी प्रयासों के कारण, यह अमेरिकी हितों के लिए एक प्रमुख निशाना रहा है, जिसकी वजह से प्रतिबंध, देश को अस्थिर करने के प्रयास, और चुनाव  में धोखाधड़ी के आरोप लगते रहे हैं. इन बाधाओं के बावजूद, बोलिवेरियन क्रांति लोगों को सशक्त् बनाने, सामाजिक न्याय प्राप्त करने और साम्राज्यवादी एजेंडों का विरोध करने की अपनी प्रतिबद्धता में अडिग बनी हुई है.

क्यूबा और वेनेजुएला ने साम्राज्यवादी नियंत्रण से मुक्त होने और क्षेत्रीय एकीकरण और समाजवाद का मार्ग प्रशस्त करने की खोज में लैटिन अमेरिका में महत्वपूर्ण आंदोलनों  की अगुआई की है. ह्यूगो शावेज ने अपने समाजवादी नजरिया को साइमन बोलिवर के ऐतिहासिक आदर्शों के साथ मिलाकर बोलिवेरियन क्रांति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने साम्राज्यवाद का विरोध करने के लिए जमीनी स्तर पर भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया. 1998 का चुनाव जीतने के बाद शावेज का उद्देश्य राष्ट्रीयकृत तेल राजस्व द्वारा वित्तपोषित सामाजिक कार्यक्रमों को लागू करके वेनेजुएला में हाशिए पर पड़े और वंचित समूहों को सशक्त बनाना था. उनके नजरिए में लोकतंत्र में सबकी सहभागिता को बढ़ावा देना और नवउदारवाद की खिलाफत करना शामिल था, जिसकी मंजिल एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था कायम करना था जो स्थानीय समुदायों के लिए सत्ता का विकेंद्रीकरण करे. यह नजरिया 1999 के संविधान में सन्निहित था, जिसने वेनेजुएला को बोलिवेरियन गणराज्य में बदल दिया, जिससे राष्ट्रीय संप्रभुता और सामाजिक न्याय दोनों को बल मिला.

चुनावी धांधली विवाद और वेनेजुएला के चुनाव नतीजों की सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुष्टि

28 जुलाई, 2024 को हुए हालिया राष्ट्रपति चुनावों में ‘यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी’ के निकोलस मादुरो को 51.2% वोटों के साथ विजेता घोषित किया गया. उन्होंने धुर-दक्षिणपंथी उम्मीदवार एडमंडो गोंजालेज को हराया, जिन्हें 44.2% वोट मिले. हालांकि चुनावी प्रक्रिया में सत्यापन के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग और पेपर ट्रेल्स दोनों शामिल थे, लेकिन साइबर हमले के कारण इसमें देरी हुई. आंशिक परिणामों की घोषणा के बाद, मारिया कोरिना मचाडो जैसे फासिस्ट लोगों के नेतृत्व में विपक्षी समूहों ने हिंसक विरोध को भड़काया और चुनाव की वैधता की अवहेलना करते हुए झूठा दावा किया कि गोंजालेज वास्तव में जीत गए हैं. देश में अराजकता फैलाने के प्रयास में प्रदर्शनकारियों में 24 लोग मारे गए और 1000 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया. संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों ने आनन-फानन चुनाव परिणामों को धोखाधड़ी बताया और चुनाव की वैधता को खारिज कर दिया, जो 2019 में पिछले तख्तापलट के प्रयासों को दोहराए जाने को प्रतिध्वनित करता है.

मादुरो के राष्ट्रपति होने पर धांधली का आरोप कोई नया नहीं है. इसकी शुरुआत 2013 में ह्यूगो शावेज के उत्तराधिकारी के बतौर उनके चुनाव जीतने से हुई थी. जैसा कि अनुमान था, संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा समर्थित विपक्ष ने उनकी जीत के नवीनतम दावे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. जवाब में, मादुरो और उनके समर्थकों ने कड़ी निंदा करते हुए इसे वेनेजुएला के लोकतंत्र पर खतरा और तख्तापलट की कोशिश कहा. मादुरो को दुनिया भर के कई वामपंथी दलों का समर्थन भी मिला है, जो साम्राज्यवादी और फासीवादी खतरे के खिलाफ खड़ी एक क्रांतिकारी सरकार में उनके विश्वास को साझा करते हैं. इस विश्वास को वेनेजुएला के हाल के इतिहास से बल मिलता है, जहां विपक्ष ने लगातार चुनावी हार को स्वीकार करने की बजाय लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नेताओं को उखाड़ फेंकने के लिए अमरीका समर्थित हिंसक कार्रवाइयों का सहारा लिया है.

हालांकि, इस बार के चुनाव परिणामों की सावधानीपूर्वक जांच करने पर कुछ कमियां नजर आती है. वेनेजुएला सरकार द्वारा चुनावों की निगरानी के लिए पर्यवेक्षक के बतौर आमंत्रित कार्टर सेंटर और संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के एक समूह ने भी चुनाव परिणामों को सार्वजनिक न करने के लिए राष्ट्रीय चुनाव परिषद (सीएनई) की कड़ी आलोचना की है, और कई अन्य अनियमितताओं की ओर इशारा किया है. इस बार राष्ट्रीय चुनाव परिषद ने विस्तृत परिणाम प्रकाशित करने की अपनी सामान्य परंपराओं से हटकर काम किया है. सीएनई का दावा है कि एक बड़े पैमाने पर हैकिंग हमले ने उसे ऐसा करने से रोका. इसके अलावा, विपक्ष द्वारा अपने स्वयं के आंकड़ों के टैली, जिसमें कथित तौर पर गोंजालेज को विजेता के रूप में दिखाया गया है, की भी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं की गई है. लेकिन, अब वेनेजुएला के सुप्रीम कोर्ट ने 23 अगस्त को फैसला सुनाते हुए 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में राष्ट्रपति निकोलस मादुरो की जीत की वैधता की पुष्टि कर दी  है और राष्ट्रीय चुनाव परिषद द्वारा घोषित परिणामों को बरकरार रखा है.

सुप्रीम कोर्ट से पुष्टि के बाबजूद दक्षिणपंथी विपक्ष और अमेरिकी सरकार और उसके सहयोगियों द्वारा मादुरो की सरकार को कमजोर करने के लिए कोर्ट के निर्णय को भी अमान्य बताया जा रहा है. साइबर हमले सहित वेनेजुएला की संस्थाओं को बदनाम करने के लिए पश्चिमी मीडिया का अभियान भी इस मुहिम में शामिल है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने मादुरो की जीत को और पुख्ता किया है और लोकतंत्र के लिए बोलिवेरियन क्रांति की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है. लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों में सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के गठबंधन एएलबीए आंदोलन ने कहा है कि इससे वेनेजुएला में चुनावी प्रक्रिया की वैधता और पारदर्शिता को मजबूती मिली है.

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और लोकतंत्र बहाली का साम्राज्यवादी पाखंड

वेनेजुएला के चुनाव पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया बहुत विभाजित रही है. वेनेजुएला की शीर्ष अदालत के फैसले पर सवाल उठाते हुए एक संयुक्त बयान में अर्जेंटीना, कोस्टा रिका, चिली, इक्वाडोर, ग्वाटेमाला, पनामा, पैराग्वे, पेरू, डोमिनिकन गणराज्य, उरुग्वे और अमेरिका की सरकारों ने मतदान की ‘निष्पक्ष और स्वतंत्रा ऑडिट’ का आह्वान किया है. यहां तक कि ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ वेनेजुएला’ सहित राष्ट्रपति मादुरो के वेनेजुएला का समर्थन करने वाले ब्राजील की वामपंथी लूला सरकार, कोलंबिया के पहले वामपंथी राष्ट्रपति और मैक्सिको जैसे देश ने भी गंभीर चिंता जाहिर करते हुए शांतिपूर्ण समाधान की मांग की है. आश्चर्य की बात यह है कि इस बयान का समर्थन न केवल प्रतिक्रियावादी सरकारों द्वारा किया गया है, जो लंबे समय से मादुरो के विरोधी रहे हैं, बल्कि चिली के प्रगतिशील राष्ट्रपति गैब्रियल बोरिक जो अब वेनेजुएला के सबसे मुखर वामपंथी आलोचकों में से एक हैं और ग्वाटेमाला के वामपंथी नेता बर्नार्डा एरेवालो के प्रशासन द्वारा भी किया गया है.

चीन, रूस और ईरान ने मादुरो की जीत को स्वीकार किया है, जबकि साम्राज्यवादी अमेरिका और उसके सहयोगी कई उपनिवेशवादी यूरोपीय देशों ने धुर-दक्षिणपंथी विपक्ष का समर्थन किया है. यह विभाजन व्यापक भू-राजनीतिक तनावों को भी दर्शाता है, खासकर से यूक्रेन में अमेरिका और रूस के बीच चल रहे युद्ध को. यूक्रेन में, अमेरिका एक ऐसे सरकार को महत्वपूर्ण सैन्य सहायता दे रही है जिसने फासीवादियों  से सांठ गांठ कर चुनावों में देरी की है और मार्शल लॉ लागू किया है. साथ ही, अमेरिका ने दुनिया की सबसे बड़ी अदालत से युद्ध अपराधों के लिए गिरफ्तारी के वारंट का इंतजार कर रहे इजरायल के नेतन्याहू की सरकार को गाजा में जनसंहार जारी रखने के लिए पर्याप्त सैन्य सहायता देना जारी रखा है.

लैटिन अमेरिका में अमेरिकी हस्तक्षेप की विरासत, हिंसा और शोषण के कुकृत्यों का इतिहास रहा है. अनगिनत ऐसे उदाहरण हैं जहां स्थानीय आबादी की लोकतांत्रिक इच्छाओं का सम्मान करने के बजाय अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाने के लिए लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंका गया और क्रूर तानाशाही का समर्थन किया गया. एक सदी से भी अधिक समय से, लैटिन अमेरिका पर आधिपत्य के लिए अमेरिका द्वारा अपनाए गए तरीकों की खासियत आक्रामकता और हस्तक्षेप की रही है. इसमें सैन्य आक्रमण, तख्तापलट और तानाशाही शासन की स्थापना शामिल है. कुख्यात मोनरो सिद्धांत, जो पश्चिमी गोलार्ध पर अमेरिकी साम्राज्यवाद को सही ठहराता है, ने विदेशी शक्तियों द्वारा अमेरिका महाद्वीप के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप को शत्रुतापूर्ण कार्य माना है, जो एक औपनिवेशिक नजरिया है. यह सिद्धांत आज फिर भी प्रासंगिक हो गया है, क्योंकि पेंटागन का उद्देश्य लैटिन अमेरिका को वैश्विक सैन्य गतिविधियों का रणनीतिक केंद्र बनाना है. इस क्षेत्र में लिथियम, सोना और तेल जैसे मूल्यवान संसाधन हैं, जो इसे अमेरिकी साम्राज्यवादी मंसूबों के लिए एक वांछनीय बनाते हैं. पूरे इतिहास में, इस सिद्धांत का उपयोग हस्तक्षेपवादी कदमों को जायज ठहराने के लिए किया गया है, जिसका उद्देश्य लैटिन अमेरिकी देशों की आजादी  की कीमत पर अमेरिकी आर्थिक और रणनीतिक उद्देश्यों को प्राथमिकता देना है. ऐतिहासिक रूप से, इस सिद्धांत ने न केवल अमेरिकी विदेश नीति को प्रेरित किया है, बल्कि नाजी जर्मनी सहित दमनकारी शासनों की विचारधाराओं को भी प्रतिध्वनित किया है.

लैटिन अमेरिका में तख्तापलट की साजिश रचने का अमेरिका का लंबा इतिहास रहा है, जैसे कि 1954 में ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति जैकोबो अर्बेनज को सीआईए द्वारा समर्थित तरीके से उखाड़ फेंकना और 1960 और 1970 के दशक में ब्राज़ील, चिली और अर्जेंटीना में सैन्य तानाशाही का समर्थन करना. इन कार्रवाइयों को अक्सर लोकतंत्र की रक्षा की आड़ में उचित ठहराया जाता था, फिर भी इनके परिणामस्वरूप व्यापक पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन और जनआंदोलनों का दमन किया गया. हाल के वर्षों में भी अमेरिका ने लैटिन अमेरिकी देशों के मामलों में हस्तक्षेप करना जारी रखा है, होंडुरास (2009), बोलीविया (2019) और पेरू (2022) में दक्षिणपंथी तख्तापलट का समर्थन किया है. वेनेजुएला की मौजूदा स्थिति इसी पैटर्न की निरंतरता है, जहां अमेरिका निकोलस मादुरो की सरकार पर तानाशाह होने का आरोप लगा, और चुनावों को  धोखाधड़ी करार दे तख्तापलट करना चाहता है. इन सबसे अमेरिकी विदेश नीति का पाखंड स्पष्ट हो जाता है. वे पूरी दुनिया में तानाशाहों, फासिस्टों, दमनकारी शासनों और नरसंहार का समर्थन करते हैं, फिर भी खुद को वेनेजुएला में लोकतंत्र के चौंपियन के बतौर पेश करते हैं.

कामगार वर्ग : असंतोष और संघर्ष के बीच

29 जुलाई को चुनाव के ठीक एक दिन बाद, मजदूर वर्ग के इलाकों में अनियोजित विरोध प्रदर्शन की घटना शुरू हो गई थी, क्योंकि वे मादुरो द्वारा आर्थिक कठिनाईयों से निजात पाने लागू की जा रही नवउदारवादी नीतियों का विरोध करते रहे हैं. ये विरोध प्रदर्शन, जिसमें हजारों, संभवतः दसियों हजार लोगों ने भाग लिया, और अमरीका समर्थित धुर दक्षिणपंथी विपक्ष ने इसे हवा देते हुए यह कहना शुरू कर दिया कि इस बार के चुनाव में जनता ने मादुरो को नकार दिया है. यह उल्लेखनीय है, क्योंकि यह प्रदर्शन करने वाले विपक्ष के मुख्य आधार मध्यम और उच्च वर्ग से अलग मजदूरों का आधार है. इन सब वजहों से चिली के ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ वेनेजुएला’ ने कहा है कि मौजूदा राष्ट्रपति ने वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था को गति देने के गलत प्रयास में तेजी से नवउदारवादी और यहां तक कि दक्षिणपंथी नीतियों को लागू किया है, और बड़े पैमाने पर गरीबों, विशेष रूप से नस्ल के आधार पर पुरुषों को असंगत रूप से निशाना बनाते हुए दमन किया है.

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों और मादुरो सरकार द्वारा नवउदारवादी नीतियों के लागू करने, खासकर निजीकरण की वजह से वेनेजुएला में आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है. विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने वेनेजुएला के महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र को निशाना बनाया है, जिससे घरेलू जरूरतों के लिए विदेशी मुद्रा और आवश्यक वस्तुओं के आयात की क्षमता पर गंभीर प्रभाव पड़ा है. इन प्रतिबंधों का वेनेजुएला की आबादी पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक गरीबी, खाद्यान्न की कमी और मानवीय संकट पैदा हो गया है. चिकित्सा आपूर्ति और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में कटौती के कारण लगभग 100,000 लोगों की जान चली गई है. साथ ही, मौजूदा आर्थिक कुप्रबंधन और नवउदारवाद ने भ्रष्टाचार को और अधिक बढ़ा दिया है, जिसके परिणामस्वरूप अति मुद्रास्फीति और आवश्यक वस्तुओं की व्यापक कमी हो गई है. लगभग 95% आबादी गरीबी में जी रही है, और स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा का हाल काफी बुरा है. गरीब/मजदूर तबका बुनियादी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने  के लिए संघर्ष कर रहा है, जबकि अर्थव्यवस्था निवेश, बुनियादी ढांचे की कमी और मुद्रास्फीति से जूझ रही है.

चुनौतियों का सामना

जैसे-जैसे आर्थिक संकट गहराता जा रहा है, वेनेजुएला का कामगार वर्ग मादुरो सरकार की नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ संघर्ष कर रहा है. मादुरो सरकार की नवउदारवादी नीतियों, जो सामाजिक कल्याण पर आवंटन में कटौती कर मितव्ययिता को प्राथमिकता देती हैं, से नागरिक निराश हैं. शुरूआती दौर में शावेज के साथ बोलिवेरियन क्रांति में अहम भूमिका निभाए कई लोग समाजवादी सिद्धांतों को त्यागने के कारण धोखा महसूस कर रहे हैं. सरकार द्वारा अपनाए गए मितव्ययिता उपायों ने गरीबों को और अधिक हाशिए पर धकेल दिया है, जिससे विरोध और असहमति की भावना बढ़ी है. श्रमिकों और आम जनता के बीच बढ़ती निराशा एक अधिक न्यायसंगत आर्थिक प्रणाली की आवश्यकता को दर्शाती है, जो अभिजात वर्ग के हितों के बजाय उनकी वास्तविक जरूरतों को पूरा करती हो.

वामपंथियों के एक धड़े की आलोचना का सामना करने के बावजूद, वेनेजुएला में मादुरो सरकार वर्तमान में एक कठिन परिस्थिति से निपट रही है. शावेज की तुलना में मादुरो की अपनी कमियां हो सकती हैं लेकिन वे वैध रूप से चुने गए नेता हैं और हमेशा से फासीवादियों और कट्टरपंथी दक्षिणपंथियों के निशाने पर रहे हैं. वामपंथी, निजीकरण, कैम्पेसिनो के विरोध, श्रमिकों का संघर्ष और पुलिस की बर्बरता जैसे मुद्दों पर मादुरो सरकार द्वारा किए गए समझौतों से असहमति जताने के बावजूद, वाशिंगटन द्वारा समर्थित तख्तापलट के एजेंडे के विकल्प के कारण उनकी खुलकर आलोचना करने में परहेज करते हैं. वेनेजुएला में आर्थिक संकट के लिए सिर्फ मादुरो को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि तेल की कीमतों में गिरावट और अमेरिकी प्रतिबंधों का इस पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है. वेनेजुएला के लोग अपनी पीड़ा में अमेरिका की भूमिका से अवगत हैं.

वेनेजुएला पर नए वित्तीय प्रतिबंध लगाने की अमेरिकी साम्राज्यवाद की धमकियों की कड़ी निंदा  की जानी चाहिए, साथ ही मादुरो सरकार के खिलाफ आगे की कार्रवाई के लिए तख्तापलट समर्थक और साम्राज्यवाद समर्थक दक्षिणपंथी विपक्ष के आह्वान की भी भरपूर निंदा होनी चाहिए.

वेनेजुएला का भविष्य साम्राज्यवादी तकतों के हस्तक्षेप से मुक्त, उसके अपने लोगों द्वारा तय किया जाना चाहिए. अमेरिकी प्रतिबंधों और तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों के साथ-साथ विभिन्न तरीकों से बोलिवेरियन क्रांति को अस्थिर करने के चल रहे प्रयासों ने मादुरो के लिए एक कठिन स्थिति पैदा कर दी है. वेनेजुएला में कम्यून्स को मजबूत करना बेहद महत्वपूर्ण है, जिन्होंने बोलिवेरियन क्रांति में महती भूमिका निभाई है. ये कम्यून्स, उत्पादन पर सामूहिक नियंत्रण के साथ-साथ राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के हथियार हैं, जिससे 2018-2020 से जारी प्रतिबंधों के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट को दूर करने में जनता को मदद मिली है. ये कम्यून मजबूत समाजवादी और लोकतांत्रिक वेनेजुएला के निर्माण के लिए जरूरी है. मौजूदा दौर, जनता के अधिकारों के संघर्ष को तेज करने, और शावेज की नीतियों पर जो सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और जनता के राजनीतिक दावेदारी पर आधारित है, लौटने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है.