वर्ष - 33
अंक - 34
17-08-2024

शाहनवाज अख्तर

मार्क्सवादी समन्वय समिति (एमसीसी) के भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) में विलय की औपचारिक घोषणा 10 अगस्त को रांची में की गईं. ये भी बताया गया की 9 सितम्बर को धनबाद में एकता रैली होगी.

संयुक्त बिहार की सबसे पुरानी पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति (एमसीसी) अब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के नाम से जानी जायेगी. 1971 में धनबाद से तीन बार सांसद, विधायक और ट्रेड यूनियन नेता एके रॉय द्वारा स्थापित एमसीसी का धनबाद, बोकारो और रामगढ़ जिलों में कामकाजी वर्ग के लोगों के बीच एक मजबूत आधार है, जबकि भाकपा(माले) की गिरिडीह और कोडरमा में मजबूत उपस्थिति है, राजनीतिक वैज्ञानिकों का मानना है कि विलय के बाद पार्टी छोटानागपुर क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण ताकत बन जाएगी.

इतिहास और वर्तमान स्थिति

हालांकि एमसीसी का वर्तमान में झारखंड विधानसभा में कोई विधायक नहीं है, लेकिन उसने धनबाद के निरसा और सिंदरी विधानसभा क्षेत्रों में हाल के दिनों में या तो जीत हासिल की है या दूसरा स्थान हासिल किया है. इसी तरह, भाकपा(माले) ने बगोदर से लगातार छह बार जीत हासिल की है और पिछले दो चुनावों में धनवार से या तो जीत हासिल की या उपविजेता रही. हाल ही में, भाकपा(माले) बिहार में एक ताकत बन गई है, जिसने 2020 के विधानसभा चुनावों में 12 विधानसभा सीटें और 2024 के लोकसभा चुनावों में दो संसदीय सीटें जीती हैं.

उनके औपचारिक विलय के बाद शनिवार को एमसीसी केंद्रीय समिति के महासचिव हलधर महतो और भाकपा(माले) सांसद राजा राम सिंह ने 9 सितंबर को धनबाद में एकता रैली करने की घोषणा की.

‘विलय हमारी पार्टी के संस्थापक एके रॉय के दृष्टिकोण के अनुरूप हुआ. उनका मानना था कि न केवल श्रमिक वर्ग को एकजुट रहना चाहिए, बल्कि वामपंथी दलों के बीच भी एकता होनी चाहिए. यह विलय झारखंड में कम से कम 20 विधानसभा क्षेत्रों में भाकपा(माले) को प्रभावशाली बनाएगा.’ – एमसीसी के पूर्व विधायक अरूप चटर्जी ने ई न्यूजरूम को बताया.

उन्होंने कहा, ‘जब से झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय हुआ है, वाम दलों को एकजुट होने और मजबूत लड़ाई की पेश करने की जरूरत थी.’

मजदूर वर्ग की एकता

यह पूछे जाने पर कि क्या यह विलय झारखंड में इंडिया ब्लॉक को मजबूत करेगा, भाकपा(माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने ईन्यूजरूम से कहा, ‘अगर यह एमएल या वामपंथ को मजबूत करता है, तो यह स्वाभाविक रूप से इंडिया ब्लॉक को मजबूत करेगा. लोकसभा नतीजों से यह साफ हो गया कि झारखंड के गैर-आदिवासी इलाकों में अभी भी बीजेपी (एनडीए) को बढ़त हासिल है. कोयला बेल्ट पर स्वाभाविक रूप से विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है. कोयला राष्ट्रीयकरण का संघर्ष भी झारखंड आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था.’

भाकपा(माले) महासचिव ने विलय में श्रमिक वर्ग के संदर्भ का भी उल्लेख किया, उन्होंने कहा, ‘एके रॉय के नेतृत्व में, कोयला उत्पादन क्षेत्रों में एक मजबूत श्रमिक वर्ग एकता बनाई गई थी, जो आदिवासियों, अन्य स्थानीय (मूलवासी) लोगों और कोयला श्रमिकों को जोड़ती थी. अत्याधिक निजीकरण और कॉर्पारेट लूट के खिलाफ लड़ाई के आज के संदर्भ में उस एकता और संघर्ष की भावना को फिर से जगाने की जरूरत है. इससे समग्र रूप से झारखंड आंदोलन की भावना फिर से मजबूत होगी. उम्मीद है कि भाकपा(माले) के साथ एमसीसी का विलय इस प्रक्रिया को सरल बनाएगा.’

एके रॉय के सपनों को साकार करने जैसा

भाकपा(माले) के राज्य सचिव मनोज भक्त ने आगे बताया, ‘यह फासीवाद के खिलाफ एक कदम है. भाजपा की जनविरोधी नीतियों के कारण लोग कम्युनिस्ट पार्टियों की ओर देख रहे हैं. एके रॉय ने समान विचारधारा वाली पार्टियों के बीच समन्वय के लिए एमसीसी का गठन किया था और उन्होंने इसे कोई पार्टी नहीं बनाया था. तो यह सही दिशा में एक कदम है. कामरेड रॉय दक्षिण बिहार (उत्तर छोटानागपुर) में दलितों, आदिवासियों और मूलवासियों को जोड़ने के लिए जिस तरह का काम कर रहे थे, उसी तरह का काम भाकपा(माले) उत्तरी बिहार में कर रही थी. एमसीसी के संस्थापक के सपनों को पूरा करने में अब और तेजी आएगी.’

मनोज भक्त ने आगे कहा, ‘इसे फासीवादी भाजपा के खिलाफ एकजुट वामपंथी ताकतों के रूप में भी देखा जाना चाहिए, क्योंकि हमने फासीवाद-विरोधी ताकतों के एकीकरण की शुरुआत की थी, जिन्हें बाद में लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया ब्लॉक का नाम दिया गया था.’

अब माले छोटानागपुर में बड़ी राजनीतिक ताकत होगी

‘विलय का छोटानागपुर क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा. एकता रैली के बाद, झारखंड के लोग इस पर ध्यान देंगे,’ भाकपा(माले) विधायक विनोद सिंह ने दावा किया.

एके रॉय सहित एमसीसी और भाकपा(माले) दोनों के नेताओं को करीब से देखने वाले राजनीतिक विश्लेषक अमित राजा ने विलय को ऐतिहासिक बताया. ‘विलय के साथ, एके रॉय अब भाकपा(माले) के संस्थापकों में से एक होंगे. इस विलय का बड़ा असर होगा क्योंकि यह दो समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों का मिलन है. झाविमो का भाजपा में विलय राजनीतिक अवसरवादिता है. जेवीएम बीजेपी विरोधी थी और जब तक अस्तित्व में थी, उसने बीजेपी की राजनीतिक शैली का विरोध किया, इसलिए बीजेपी इससे मजबूत नहीं हुई.’

‘यह सिर्फ राजनीतिक नतीजों के लिए नहीं बल्कि झारखंड के औद्योगिक क्षेत्र में श्रमिक वर्ग और ट्रेड यूनियनों को मजबूत करने वाला एक विलय साबित होगा.’ – राजा ने आगे जोड़ा.

– ईन्यूजरूम से साभार