मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की मजदूर वर्ग पर हमलों की पृष्ठभूमि में ऑल इंडिया कंस्ट्रक्शन वर्कर्स फेडरेशन (एआइसीडब्ल्यूएफ) ने अपनी पहली राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन 9-10 नवम्बर 2022 को रांची में किया. कार्यशाला में लेबर कोड सहित कल्याण बोर्डों को भंग करने और इसकी स्थापना के बाद से इसके अनुभवों का जायजा लिया जाना शामिल रहा.
ऐक्टू के महासचिव कामरेड राजीव डिमरी ने कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए कहा कि मोदी सरकार द्वारा थोपा जा रहा कोड कानून, जल्द ही ‘भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (रोजगार विनिमय और सेवा शर्तें) अधिनियम 1996’ की जगह ले लेगा. इस अधिनियम को खत्म कर दिए जाने से सभी 36 राज्यों के ‘भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (सीओबीडब्ल्यू) कल्याण बोर्ड’ बंद हो जायेंगे. सामाजिक सुरक्षा कोड वास्तव में निर्माण मजदूरों पर सीधा हमला है. उन्होंने कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वे मोदी सरकार और उसकी मजदूर विरोधी नीतियों से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में निर्माण मजदूरों को संगठित करें.
कार्यशाला में बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, पुडुचेरी, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और झारखंड के करीब 65 कार्यकर्ताओं ने भाग लिया. इसकी शुरूआत करते हुए का. आरएन ठाकुर ने कार्यशाला के विषयों की जानकारी दी.
कार्यशाला में (1). निर्माण मजदूर आंदोलन की बदलती संरचना व चुनौतियां, (2). बदलते कानून व नए मुद्दे और (3). निर्माण मजदूर आंदोलन का राजनीतिकरण, तीन प्रमुख विषय थे. क्रमशः एआईसीडब्ल्यूएफ के राष्ट्रीय महासचिव का. एसके शर्मा, राष्ट्रीय अध्यक्ष का. बालासुब्रह्मण्यम और ऐक्टू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का. वी शंकर ने इन विषयों पर वक्तव्य रखे.
निर्माण मजदूरों की बदलती संरचना और चुनौतियां
निर्माण मजदूरों की बदलती संरचना व चुनौतियां आदि से सम्बंधित पेपर को प्रस्तुत करते हुए का. एसके शर्मा ने कहा कि कृषि मजदूरों के बाद निर्माण मजदूर देश में कार्यबल का सबसे बड़ा हिस्सा हैं. लेकिन, वे बिना किसी सही कानूनी संरक्षण के सबसे अधिक उपेक्षित हैं. वे बिना किसी कार्य सुरक्षा, पारिश्रमिक सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा के काम करते हैं. बिना किसी ओवरटाइम भुगतान के लंबे समय तक काम करना, रोज़गार की अनियमित प्रकृति आदि, उन्हें बहुत बुरी तरह प्रभावित करते हैं. वे प्रायः पेशागत बीमारियों से ग्रसित हो जाया करते हैं. किसी भी सुरक्षा सावधानियों के अभाव में कार्य के दौरान अपनी जान गंवाने वाले मजदूरों की संख्या अनगिनत है. दुर्भाग्य से ऐसे मामलों में न तो भवन मालिक और न ही बिल्डर-ठेकेदारों को उनके जीवन के लिए जिम्मेदार बनाया जाता है. मजदूर अपने-आप को खुद ही संभालने के लिए विवश हैं.
निर्माण मजदूरों की अनन्त पेशागत श्रेणियां हैं. वे आम तौर पर मजदूर चौक या स्थानीयता के आधार पर संगठित होते हैं. उनकी दुर्दशा को समझने के लिए उनके काम और कार्यस्थल के आधार पर भी उन्हें संगठित करने की रणनीति बनायी जानी चाहिए. सरकार के स्वामित्व वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, जैसे – बांधों, सड़कों आदि के निर्माण में काम करने वाले मजदूर, निजी स्वामित्व वाली बड़ी परियोजनाओं में कार्यरत मजदूर, खदानों और ईंट-भट्ट्ठों में लगे मजदूर, रेडीमिक्स कंक्रीट निर्माण जैसे उभरते उद्योगों में लगे मजदूर, प्रवासी मजदूर, छोटे उद्योगों में काम करने वाले मजदूर और मजदूरी पाने वाले जैसे – इलेक्ट्रीशियन, पलम्बर आदि को निर्माण कार्यबल के प्रमुख वर्गों के रूप में पहचाना गया. ऐसे ही निर्माण मजदूरों की कई अन्य श्रेणियां भी हैं.
उक्त पेपर पर परिचर्चा का अंत ग्रुप डिस्कशन के साथ हुआ. ग्रुप डिस्कशन चार बिंदुवार प्रश्नों – (1). जिले या राज्य में निर्माण मजदूरों के बीच आपके वर्तमान कामकाज के बारे में आत्म मूल्यांकन? (2). लेबर कोड के लागू होते जाने के बाद क्या बदलाव आ रहे हैं एवं आपकी क्या राय है? (3). निर्माण मजदूरों के बीच हमें अपने काम-काज में क्या बदलाव लाने की जरूरत है? और (4). निर्माण मजदूर व निर्माण मजदूर आंदोलन का राजनीतिकरण कैसे हो? – पर केंद्रित किया गया था. इसके लिए कार्यशाला में (1). कामुकेश मुक्त, (2). का. सौरभ नरूका, (3). का. महेंद्र परिदा, (4). का. आरएन ठाकुर, (5). का. वीकेएस गौतम और (6). कापीपी अपन्ना के नेतृत्व में क्रमशः छह ग्रुप बनाया गया. ग्रुप डिस्कशन जीवंत रहा और ग्रुप में शामिल प्रतिभागियों ने विमर्श में उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया. प्रत्येक ग्रुप के नेतृत्वकारियों ने सम्बंधित ग्रुप में किए गए डिस्कशन की बिन्दुवार रिपोर्ट रखी. दूसरे, तीसरे व छठे ग्रुप के क्रमशः का. राम सिंह, का. मंजूलता व काॅ. इरानीअप्पन ने भी अपने ग्रुप की ओर से बातें रखी.
कानूनों में कुछ प्रमुख परिवर्तन
का. बालासुब्रह्मण्यम द्वारा मौजूदा कानून, लेबर कोड और निर्माण मजदूरों के लिए इसके निहितार्थ पर पेपर प्रस्तुत किया गया था. सामाजिक सुरक्षा कोड वर्तमान में मौजूद कई बोर्डों को खत्म कर असंगठित मजदूरों की सभी श्रेणियों के लिए राज्य स्तर पर केवल एक कल्याण बोर्ड के गठन पर विचार करता है. इसके कल्याणकारी कार्यों को निचले स्तर तक सीमित किया जा रहा है. अनिवार्य तौर पर दी जाने वाली बुनियादी सुविधाएं और विश्राम कक्ष का प्रावधान पूरी तरह से शिथिल है और करीब-करीब इसे मालिकों या नियोक्ताओं की सनक और पसंद पर छोड़ दिया गया है.
निर्माण मजदूर को मूल रुप से उनके काम की प्रकृति से परिभाषित किया गया था. अब 50 लाख से कम की निर्माण गतिविधियों को ‘भवन और निर्माण कार्य’ की परिभाषा में छूट दे दी गई है और इस प्रकार ऐसी परियोजनाओं में कार्यरत मजदूरों को प्रासंगिक कानूनों से वंचित कर दिया गया है. इसके अलावा, श्रम कानूनों को लागू होने के लिए 10 और 20 संख्या की एक सीमाबद्धता चालू किया गया है. उदाहरण के लिए, सिर्फ 10 से अधिक मजदूरों के नियोजित होने पर ही वे ईएसआई और 20 से अधिक मजदूरों के नियोजित होने पर ही पीएफ के हकदार हो सकेंगे. इन बदले हुए परिभाषा के कारण, निर्माण मजदूरों का एक बहुत बड़ा हिस्सा श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो गया है. लेबर कोड के अनुसार, पिछले 12 महीनों में 10 से अधिक मजदूरों को नियोजित करने वाली किसी परियोजना में लगे कर्मी को ही निर्माण मजदूर माना जाएगा. परिभाषा में यह बदलाव मजदूरों के लिए एक बहुत बड़ा झटका है.
निर्माण मजदूरों के यूनियनीकरण के कुछ पहलू
का. शंकर ने कल्याणकारी लाभों के विस्तार के लिए संघर्ष करने; रियल इस्टेट माफिया, नौकरशाहों, बिल्डरों और ठेकेदारों की सांठगांठ के खिलाफ संगठित होने; कार्य के दौरान हुई मजदूरों की मौत या विकलांगता और कल्याण के लिए भी निर्माण काम करवाने वाले मालिक, बिल्डर और ठेकेदार को जिम्मेदार ठहराने और उचित वेतन, जीवन स्तर में सुधार, काम की बेहतर स्थिति, निश्चित आवास व सम्मान के लिए केंद्र-राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ निर्माण मजदूरों के संघर्षों को संगठित करने की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने प्रवासी सहित शहरी इलाके के अन्य सभी मजदूरों के संघर्षों के साथ निर्माण मजदूर आंदोलन को अधिक से अधिक एकीकृत किए जाने की जरूरत की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया. उन्होंने भगवा फासीवाद और निर्माण मजदूरों के सभी अधिकारों को छीनने वाली मोदी सरकार के खिलाफ 2024 के आम चुनाव में भाजपा को हराने के लिए एक गहन और व्यापक अभियान चलाने का आह्वान किया.
कार्यशाला को झारखंड ऐक्टू के महासचिव कामरेड शुभेंदु सेन ने भी संबोधित किया.
– मुकेश मुक्त