- कुमार परवेज
बिहार के विश्वविद्यालयों में विगत 30 साल में सिर्फ 3 बार ही शैक्षणिक पदों पर बहाली हेतु विज्ञापन निकला है और इन्हें पूरा होने में काफी लंबा वक्त भी लगा है. 2014 में बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा निकली बहाली अभी तक पूर्ण नहीं हो पाई है. अभी भी कुछ बहालियां चल रही हैं. 2020 में एक बार फिर बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग द्वारा विज्ञापन निकाला गया है.
स्थायी बहालियों में देरी होने के मद्देनजर विभिन्न विश्वविद्यालयों में यूजीसी के मानदंडों के आधार पर अतिथि शिक्षकों की बहाली की गई. यह बहाली 11 महीने के कांट्रैक्ट के आधार पर की गई है. अतिथि शिक्षक शुरूआती दौर से ही अपने समायोजन की मांग उठाते रहे हैं. अब जब 2020 की बहाली की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है तब इन अतिथि शिक्षकों की नौकरी पर तलवार लटक रही है. बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग द्वारा जो नियुक्ति की प्रक्रिया अपनायी गई है उसपर काफी विवाद भी है. शिक्षक अभ्यर्थियों का कहना है कि शोधपत्र एवं शैक्षणिक अनुभव के अंक देने में आयोग मनमाना रवैया अपना रहा है. जो विज्ञापन निकाला गया, उससे अलग आधार पर शैक्षणिक अनुभव के अंक दिए जा रहे हैं. विदित हो कि शैक्षणिक अनुभव पर 10 अंक तक दिए जा सकते हैं. आयोग विज्ञापन के आधार पर शैक्षणिक अनुभव का अंक देने की बजाए सिर्फ कुलसचिव और प्राचार्य के हस्ताक्षर के आधार पर ही अनुभव का अंक दे रहा है, इससे शिक्षण अनुभव का फर्जी प्रमाण-पत्र देने वाले अभ्यर्थियों को भी अंक मिल जा रहा है. अतिथि शिक्षकों की मांग है कि आयोग शिक्षण अनुभव का अंक देने से पहले उसकी अच्छे से छानबीन करे. इसके लिए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के द्वारा अपनाये गए मापदंड को अपनाया जा सकता है.
उनका यह भी कहना है कि जब अतिथि शिक्षकों की बहाली के समय बहाली में पारदर्शिता अपनाई गई, तब स्थायी बहाली में यह पारदर्शिता क्यों नहीं? इसको लेकर शिक्षक अभ्यर्थी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मिले और उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में मुकदमा भी कर रखा है. उनका कहना है कि अपारदर्शी बहाली के कारण कई अतिथि शिक्षकों एवं योग्य अभ्यर्थियों को योग्यता के सारे मानदंड पूरे करने के बावजूद साक्षात्कार की प्रक्रिया से बाहर हो जाना पड़ेगा. ऐसी स्थिति में अतिथि शिक्षकों का भविष्य खतरे में पड़ गया है, जबकि अतिथि शिक्षकों ने बदहाल होती उच्च शिक्षा व्यवस्था को खासकर कोरोना काल में एक सहारा देने का कार्य किया था.
बिहार में दशकों से प्रोफेसर और एसोसिएट प्राफेसर के पद पर कोई बहाली नहीं हुई है, इस कारण सहायक शिक्षकों की बहाली के बावजूद कई हजार शैक्षणिक पद खाली ही रह जाते हैं. यह एक जगह है जहां अतिथि शिक्षकों का समायोजन हो सकता है. हाल ही में पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश इत्यादि राज्य की सरकारों ने अतिथि शिक्षकों का समायोजन किया है. वे इसे भी अपना आधार बना रहे हैं.
ठीक उसी प्रकार की समस्याएं सातवें चरण की स्कूली शिक्षक बहाली में भी है. 2019 के विज्ञापन के आधाार पर 2020 में आयोजित एसटेट व टेट उत्तीर्ण अभ्यर्थी लगभग दो सालों से शिक्षक बहाली की प्रतीक्षा कर रहे हैं. बिहार सरकार बारंबार उन्हें आश्वासन ही देती रही लेकिन अभी तक बहाली शुरू नहीं हो पाई है. इसके कारण सातवें चरण की शिक्षक बहाली के अभ्यर्थियों में गहरी निराशा है और आए दिन वे सड़कों पर आंदोलन करते रहते हैं. विगत दिनों डाकबंगला चौराहे पर पुलिस की बर्बर लाठियां चली थीं, जिसका वीडियो वायरल हुआ था. दुखद यह कि यह सबकुछ महागठबंधन सरकार में हो रहा है. बिहार के युवा नीतीश कुमार द्वारा 19 लाख और तेजस्वी यादव द्वारा 10 लाख रोजगार के वादे को भूले नहीं हैं. वे उपमुख्यमंत्री महोदय को बारबार उनका वादा याद दिला रहे हैं. लेकिन बेवजह होती देरी से उनका तनाव बढ़ता ही जा रहा है, सरकार को इस मसले पर तत्काल गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए और बहाली को नोटिफिकेशन निकालना चाहिए.
अभी हाल ही में मुख्यमंत्री महोदय ने शिक्षक समुदाय का आह्वान करते हुए कहा कि उन्हें पढ़ाना होगा. उन्होंने बिलकुल सही कहा. शिक्षकों का पहला काम पढ़ाना ही है, लेकिन यह भी सच है कि सबसे ज्यादा सरकार ही उन्हें गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगाए रहती है. सरकार की जितनी भी योजनाएं होती हैं, उसे लागू करने वाली मशीनरी शिक्षक समुदाय ही होते हैं. ऐसी स्थिति में सहज सवाल उठता है कि शिक्षक समुदाय शैक्षणिक प्रक्रियाओं को प्राथमिकता कैसे दें. इसके लिए तो जरूरी यह है कि सरकार उन्हें गैर-शैक्षणिक कार्यों से बिलकुल मुक्त करे, ताकि वे अपना पूरा फोकस शैक्षणिक कार्यों पर ही लगा सकें.
बिहार की साक्षरता दर 63 प्रतिशत है. इसका मतलब राज्य में औसतन 63 छात्रों पर केवल एक ही शिक्षक उपलब्ध है. जबकि शिक्षकों की उपलब्धता में राष्ट्रीय औसत दर 40 है यानी प्रत्येक 40 छात्र को पढ़ाने के लिए एक शिक्षक का होना अनिवार्य है. शिक्षकों की कमी से जहां एक तरफ छात्रों को मिलने वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रभावित हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ सारी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद भी राज्य के हजारों युवाओं को शिक्षकों की नौकरी नहीं मिल पा रही. खाली पदों को भरने के लिए भर्ती प्रक्रिया तो निकाली जाती है लेकिन सभी प्रक्रियाओं को पार करने के बाद भी उम्मीदवारों को नौकरी नहीं दी जाती.