दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के नाॅर्थ कैम्पस के मौरिस नगर थाने और एबीवीपी के ऑफिस के बीच 200 मीटर की दूरी है. लेकिन दिल्ली पुलिस की सक्रियता का यह आलम है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में पिछले कुछ दिनों से लगातार जारी एबीवीपी की हिंसा के तांडव के बावजूद वह एबीवीपी के गुंडों को ढूंढ नहीं पा रही.
एबीवीपी के गुंडों ने आइसा दिल्ली राज्य के अध्यक्ष कामरेड अभिज्ञान देवयानी गांधी पर झुंड में आकर बर्बर और कायराना हमला किया. इस बर्बर हमले में उनके होंठ और आंख के ऊपर कई सारे टांके पड़े. अभिज्ञान ने अकेले एबीवीपी के दर्जनों गुंडों का साहस के साथ सामना किया.
अभिज्ञान पर हमले से पहले इन गुंडों ने दिल्ली विश्वविद्यालय, आइसा के नेताओं – सनातन और शील पर हमला किया और शील के दलित पृष्ठभूमि के होने के चलते उनको जाति सूचक गालियां भी दीं.
आइसा डीयू में एनईपी और एफवाइयूपी के खिलाफ व्यापक प्रचार अभियान चल रहा है जिसे आम छात्रों का अच्छा समर्थन मिल रहा है. जबकि एबीवीपी आइसा नेताओ पर हिंसक हमले का अभियान चला रहा है. पिछले एक हफ्ते में एबीवीपी द्वारा हिंसा की यह तीसरी घटना है.
विडम्बना है कि वैचारिक बहसों का जबाब हिंसा से देने वाले एबीवीपी के इन गुंडों को बचाने का काम दिल्ली पुलिस कर रही है क्योंकि दिल्ली पुलिस में अगर थोड़ी भी कानून और संविधान की मर्यादा बची होती तो उसने तत्काल एबीवीपी के इन गुंडों को गिरफ्तार किया होता.
इस घटना के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के अक्रोशित छात्रों और शिक्षकों र्ने मौरिस नगर थाने का घेराव किया और सबने मिलकर हिंसा की राजनीति करने वाले इस गिरोह के खिलाफ आवाज बुलंद की.