‘हमें कोई नही पढ़ाता है तो हम लोग कैसे आगे बढ़ेंगे? हमारे स्कूल में सिर्फ एक कमरा है जिसमें 6, 7, 8 तीन क्लास चलता है. जब हम पढ़ेंगे नहीं तो आगे कैसे बढ़ेंगे, हम पढ़ेंगे तब ही न आगे बढ़ेंगे! सिर्फ ट्यूशन से हो जाएगा? अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए चिंतित व सरकारी शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा करती 8वीं क्लास की छात्र सिमरन सड़क पर स्कूल आंदोलन में रोते हुए अपनी बातें रखती है. यह सवाल व चिंता केवल सिमरन की नहीं है बल्कि सरकारी विद्यालय में पढ़ने वाले उन हजारों छात्र-छात्राओं की है जो सरकार के नई शिक्षा नीति के कारण सरकारी विद्यालयों के बर्बाद व ठप होने के कगार पर जा पहुंचने की वजह से शिक्षा से वंचित हो रहे हैं.
शिक्षा के निजीकरण का असर आज देश में गांव-गरीबों के बच्चों पर सीधा दिखता है. देश के कारपोरेट परस्त हुक्मरानों ने शिक्षा का निजीकरण कर सचेत रूप से गांव के गरीब किसान-मजदूरों के बच्चों को शिक्षा से दूर रखने की गहरी चाल चली है. सरकार शिक्षा माफिया-कारपोरेटों से मिलीभगत कर सरकारी विद्यालय को बर्बाद कर रही है. एक तरफ सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों के लाखों पद खाली पड़े हैं (अभी भी बहुत कम शिक्षकों की बहाली हुई है और बार-बार की घोषणा के बावजूद शिक्षक नियुक्ति रूकी पड़ी है) और पाठ्य पुस्तकें नहीं मिल रही हैं तो दूसरी तरफ बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. स्कूलों के पास अपना भवन, प्रयोगशाला और खेल के मैदान नहीं के बराबर हैं. जिसका सीधा असर गरीब बच्चों पर पड़ता है.
भोजपुर के पवना कन्या मध्य विद्यालय उपरोक्त समस्याओं का ही शिकार है. पवना कन्या मध्य विद्यालय में पर्याप्त वर्ग भवन नहीं हैं. छठवींए सातवीं और आठवीं के बच्चे एक ही कमरे में; चौथी व पांचवी के बच्चे बरामदे में और पहली, दूसरी और तीसरी के बच्चे पेड़ के नीचे पढ़ते हैं. जब सारे बच्चे स्कूल आ जाते हैं तो मजबूरन शिक्षकों को आधे बच्चों को घर भेजना पड़ता है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई कैसे हो सकती है. कई बार स्कूल के नजदीक ठनका गिरने की आशंका महसूस की गई है.
पवना हाई स्कूल में दसवीं का क्लास नहीं चलता और नौवीं क्लास में मात्र एक से तीन घंटी तक पढ़ाई होती है. हाई स्कूल, पवना और मध्य विद्यालय, पवना में चारदीवारी, पीने के पानी, शौचालय और अन्य मूलभूत सुविधाओं की घोर कमी है. विद्यालय के खेल का मैदान गंदा. गलीज बना रहता है, खेलने-कूदने लायक नहीं रहता. इसमें स्टेडियम का निर्माण किया जाना चाहिए. उर्दू प्राथमिक विद्यालय, पवना में उर्दू के शिक्षक हैं हीं नहीं. यहां उर्दू शिक्षक के पदस्थापन की जरूरत है. अनुसूचित जाति विद्यालय, पवना और अनुसूचित जाति विद्यालय, अरैला में चारदीवारी, शौचालय, पीने के पानी और मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. इनके अलावे भी अगल-बगल के कई विद्यालयों में भी कमोवेश यही स्थिति है.
विद्यालयों की दुर्दशा के खिलाफ भाकपा(माले) के अगिआंव विधायक व आरवाईए के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोज मंजिल ने विधानसभा सहित शिक्षामंत्री, भोजपुर के जिलाधिकारी व जिला शिक्षा अधिकारी के समक्ष अपनी मांगें कई बार रखी. कन्या मध्य विद्यालय, पवना में पर्याप्त वर्ग भवन निर्माण, हाई स्कूल समेत सभी स्कूलों में 7 घंटी पढ़ाई व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के सवाल पर उन्होंने मार्च 2021 में ही विधानसभा में सवाल उठाया था. अपने लिखित जबाब में सरकार ने जल्द से जल्द कन्या मध्य विद्यालयए पवना के भवन निर्माण की बात कही थी लेकिन लगभग दो साल बीत जाने के बाद भी अभी तक निर्माण कार्य की नींव भी नहीं रखी जा सकी है.
आइसा-आरवाईए ने विगत 21 अक्टूबर 2022 को अगिआंव विधानसभा के पवना बाजार पर सड़क पर स्कूल आंदोलन शुरू किया. इस आंदोलन को बड़ी संख्या में महिलाओं और बच्चियों सहित समाज के विभिन्न वर्गों से उत्साहजनक समर्थन मिला. अभियान के समर्थन में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं भी सामने आईं. आंदोलन ने भाकपा(माले) को एक नई पहचान दी है कि वह गरीब और कमजोर वर्गों के लिए शिक्षा के अधिकार के लिए भी जबरदस्त आंदोलन छेड़ती है.
आंदोलन में गांवए जाति और पार्टी की सीमाओं को तोड़ते हुए जनता की व्यापक व जोशीली भागीदारी रही. इस आंदोलन में शामिल 1580 लोगों – महिलाओं, पुरुषों, छात्र-छात्राओं के उपस्थिति को दर्ज किया जा सका. उसका ब्यौरा इसप्रकार है – महिलायें–245, पुरुष–465, सीनियर छात्र–250, सीनियर छात्रायें–70, स्कूली छात्र–550 (सीनियर छात्रओं की भागीदारी मैट्रिक से स्नातक–250), वर्ग 1 से वर्ग 8 तक स्कूली स्टूडेंट्स–550.
इस आंदोलन ने पार्टी का सीमाओं को भी तोड दिया. विभिन्न पार्टयों के जनाधार से आरवाईए-आइसा के सड़क पर स्कूल में जनभागीदारी इस प्रकार रही रू –
आर्रवाईए के राष्ट्रीय अध्यक्ष व अगिआंव विधायक कामरेड मनोज मंजिल, युवा नेता अप्पू यादव और उपेंद्र कुशवाहा तथा अमित चंद्रवंशी व मनमोहन कुमार के नेतृत्व में आंदोलन को सफल बनाने के लिए दिन-रात सभी मुहल्लों में लगभग 20 से ज्यादा बैठकें की गईं. भाकपा(माले) के वरिष्ठ नेताओं – आगिआंव के अंचल सचिव कामरेड रघुवर पासवान, जिला कमिटी सदस्य भोला यादव, इनौस के राज्य सचिव शिव प्रकाश रंजन और आइसा के राज्य सचिव सबीर कुमार ने बच्चों के भविष्य के सवाल पर जनता को गोलबंद करने में अहम भूमिका निभाई. जदयू नेता रोहित कुशवाहा और पवना पंचायत के युवा अध्यक्ष भी इस आंदोलन को सफल बनाने में काफी सक्रिय रहे.
सड़क पर लगे टेंटनुमा स्कूल के आसपास भगत सिंह, डाक्टर आंबेडकर, सावत्री बाई फुलेए चद्रशेखर व रोहित वेमुला के की तस्वीरों के साथ लगे पोस्टर, नारे और संगठन का झंडे-बैनर बाजार में आने-जाने वाले लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बने रहे.
सुबह 10 बजते ही सड़क पर ही घंटी बजी और हजारों छात्र-छात्राएं और उनके अभिभावक पवना बाजार में आरा-सहार मुख्य मार्ग पर जुट गए. सड़क पर लगा यह स्कूल राष्ट्रगान और स्कूल की पार्थना के साथ शुरू हुआ. कक्षा की पहली घंटी बजी, फिर हर एक घंटे पर घंटी बजती रही और इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, अंग्रेजी, नैतिक शिक्षा आदि की पढ़ाई क्रमवार विधिवत रूप से होती रही.
इस दरमियान एक विशेष सांस्कृतिक सत्र का भी आयोजन हुआ जिसमें भोजपुर जिले के चर्चित जनकवि कृष्ण कुमार निर्माही ने क्रांतिकारी गीतों की प्रस्तुति दी जिसपर छात्र-छात्राएं झूम उठे.
आरवाईए नेताओं ने जिलाधिकारी, एसडीएम, जिला शिक्षा पदाधिकारी और आगिआंव के प्रखंड विकास पदाधिकारी को ज्ञापन देकर ‘सड़क पर स्कूल’ में उपस्थित होकर छात्रों, अभिभावकों व नागरिकों की मांगों को सुनने और पर्याप्त वर्ग भवन निर्माण समेत सभी मांगों को अविलंब पूरा करने का अनुरोध किया था. लेकिन 3 बजे तक अधिकारियों ने उनकी कोई खोज-खबर नहीं ली. 3 बजे के बाद वहां पहुंचे प्रखंड विकास पदाधिकारी सुनील कुमार सिंह और बीईओ मो. अहसान वहां पहुंचे लेकिन छात्र-छात्राएं और नागरिक जिलाधिकारी को बुलाने पर अडे रहे.
जिलाधिकारी के अवकाश पर रहने की वजह से उप जिलाधिकारी ज्योतिनाथ सहदेव शाम 6 बजे के करीब वहां पहुंचे. इसके बाद वार्ता शुरू हुई जो करीब दो घंटों तक चली. हर बिंदु पर विस्तारपूर्वक हुई वार्ता में एसडीएमए बीडीओ और डीईओ ने सारी बातें मान लीं और 5 नवंबर से कन्या मध्य विद्यालयए पवना में भवन निर्माण कार्य शुरू करने का वादा किया इसके लिए 17 लाख 68 हजार 5 सौ रुपये निर्गत किए गए. इसके बाद ही रात 8 बजे आंदोलन स्थगित करने की घोषणा की गई.
आंदोलन के नेतृत्वकारी छात्र-छात्राओं में सिमरन कुमारी, लक्ष्मीना कुमारी, प्रीति कुमारी, सीमा कुमारी, साक्षी कुमारी, दुर्गा कुमारी, रानी कुमारी, सीटू कुमार, भूपेश कुमार, मुन्ना कुमार, अरमान हासमी आदि प्रमुख रहे.
– चंदन कुमार