– इन्द्रेश मैखुरी
30 अक्टूबर को जब देहरादून में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार आदि पुलिस द्वारा आयोजित दौड़-रन फॉर यूनिटी की तैयारी कर रहे थे, उसी वक्त एक और दौड़ चल रही थी. अंकिता भण्डारी हत्याकांड के लिए कुख्यात ऋृषिकेश के पास स्थित गंगा भोगपुर रिजॉर्ट की ओर अचानक फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को दौड़ लगानी पड़ी क्यूंकि इसी रिजॉर्ट के परिसर में स्थित कैंडी फैक्ट्री में आग लग गयी.
हैरत की बात है कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, पुलिस महानिदेशक, उत्तराखंड पुलिस, पौड़ी पुलिस के ट्विटर अकाउंट में देहरादून में हुई दौड़ की तो खूब चर्चा है, लेकिन जो दौड़ वनंतरा रिजॉर्ट की तरफ लगी और जो आग वहां लगी उसका कोई जिक्र ही नहीं है. इन ट्विटर हैंडल्स को देखेंगे तो ऐसा लगेगा कि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं.
लेकिन वनंतरा रिजॉर्ट के प्रांगण में स्थित कैंडी फैक्ट्री में आग लगने से कुछ गंभीर सवाल खड़े होते हैं, जिसे ऊपर वर्णित बड़े लोगों की सोशल मीडिया खामोशी से नहीं ढका जा सकता बल्कि उनकी खामोशी मामले को और गंभीर बना देती है.
अंकित भंडारी हत्याकांड के खुलासे और तत्पश्चात हुए बुलडोजर पराक्रम के प्रदर्शन के बाद वनंतरा रिजॉर्ट को सील किए जाने की खबर थी. सील किए जाने के बाद आग लगने की ये दूसरी घटना है.
सवाल यह है कि एक ऐसा रिजॉर्ट, जिसे एक जघन्य हत्याकांड के बाद सील किया गया, उसमें दूसरी बार आग कैसे लग सकती है? पहली बार आग क्यूं लगी, इसका तो कोई कारण बताना भी किसी ने जरूरी नहीं समझा. इस बार जब आग लगी तो मौके पर मौजूद इंस्पेक्टर और बिजली विभाग के अवर अभियंता, उसका जो जवाब दे रहे थे, वह हास्यास्पद ही नहीं था, वह तंत्र की पक्षधरता पर भी गंभीर सवाल खड़े करने वाला था.
इस रिजॉर्ट को सील करने के बाद, इस परिसर की बिजली भी काट दी गयी थी. जिस दिन आग लगी, उस दिन बिजली कटे हुए लगभग 40 दिन हो चुके थे. सफाई दी गयी कि वहां इंवर्टर से शॉर्ट सर्किट हो गया और उसी के चलते आग लग गयी.
पुष्कर सिंह धामी जी और उनकी पुलिस को बताना चाहिए कि 40 दिन तक बिना बिजली के भी चार्ज रहने वाले इंवर्टर का निर्माता कौन है, किस फैक्ट्री से बना है, किस मॉडल का है, इसका सप्लायर कौन है? उत्तराखंड प्रदेश में ऐसा चमत्कारिक इंवर्टर क्या सिर्फ पुलकित आर्य, विनोद आर्य एंड फेमिली के पास ही है या ऐसे चमत्कारिक इंवर्टर के धारक और भी हैं इस प्रदेश में? सवाल यह भी है कि यह इंवर्टर केवल ऐसे आपराधिक वारदातों के स्थलों पर शॉर्ट सर्किट कराने के काम आता है या इसके और भी उपयोग होते हैं?
और यह शॉर्ट सर्किट कथा भी बहुत पुरानी हो चली है. आम तौर पर जिन भी दुकानों या व्यावसायिक संस्थानों में आग लगने के बाद शॉर्ट सर्किट से आग लगने की कथा सुनाई जाती है, वह झूठी होती है. आग लगती किसी और वजह से या अपनी लापरवाही से लगती है. लेकिन अपनी लापरवाही से आग लगने में तो बीमा का क्लेम मिलेगा नहीं, इसलिए शॉर्ट सर्किट का बहाना किया जाता है. यह जगह तो सत्ता संरक्षण में फलने-फूलने वाले षड्यंत्रीकारियों की जगह है. यहां की इस शॉर्ट सर्किट मासूमियत के पीछे निश्चित ही कुछ गहरे षड्यंत्रा के तार हैं.
प्रसिद्ध व्यंग्यकार संपत सरल ने मीडिया पर टिप्पणी करते हुए कहा – ‘यह दिखता दीये के साथ है, लेकिन है हवा के साथ.’ अंकित भंडारी हत्याकांड में भी ऐसा ही प्रतीत होता है कि पूरा सत्ता प्रतिष्ठान दिख तो न्याय की मांग के साथ है, लेकिन दिल उसका अभी भी अपने पुराने प्रिय रहे अपराधियों के साथ ही धड़क रहा है.