वर्ष - 31
अंक - 41
08-10-2022

-- इन्द्रेश मैखुरी

उत्तराखंड अक्सर आपदाओं से घिरा रहता है. ये आपदाएं प्रकृतिजन्य जितनी होती हैं, उतनी ही विकास के मॉडल की भूमिका इनको बढ़ाने में होती है. लेकिन इस समय उत्तराखंड जिन आपदाओं से गुजर रहा है, वे शुद्ध रूप से सत्ता-सरकार जनित और संरक्षित हैं. बीते दो-तीन महीनों से उत्तराखंड का जनमानस लगातार उद्वेलित है. जुलाई में जोशीमठ के पास हेलंग में घास लाती महिला से पुलिस और सीआईएसएफ द्वारा घास छीने जाने की घटना हुई. अगस्त के महीने में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूकेएसएसएससी) की नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर धांधलियों का खुलासा हुआ. इसमें मुख्य आरोपी के तौर पर भाजपा से जुड़े हुए जिला पंचायत सदस्य हाकम सिंह रावत का नाम सामने आया. उसके बाद विधानसभा में अध्यक्षों द्वारा विशेषाधिकार के नाम पर बड़े पैमाने पर मनमाने तरीके से की गयी नियुक्तियों का खुलासा हुआ. विधानसभा में नियुक्तियों में भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही विधानसभा अध्यक्षों का नाम सामने आया. इस मामले में 228 तदर्थ कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर दी गयी है, लेकिन जिन अध्यक्षों के कार्यकाल में नियुक्त्यिं में अनियमितता हुई, उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई. भाकपा(माले) ने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिख कर उन पूर्व विधानसभा अध्यक्षों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 तथा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज करने की मांग की, जिनके कार्यकाल में नियुक्तियों में अनियमितता हुई.

1 सितंबर को अल्मोड़ा जिले में दलित राजनीतिक कार्यकर्ता जगदीश चंद्र की इसलिए हत्या कर दी गयी क्यूंकि उन्होंने एक सवर्ण लड़की से विवाह किया था. इस मामले में जगदीश की पत्नी ने पहले ही प्रशासन और पुलिस को लिख कर दे दिया था कि उनकी सुरक्षा को खतरा है, लेकिन उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया.

17 सितंबर को ऐसी घटना हुई, जिसने पूरे उत्तराखंड को झकझोर दिया. पौड़ी जिले की रहने वाली 19 वर्षीय अंकिता भंडारी, द्दषिकेश के पास गंगा भोगपुर में वनंतरा नाम के रिजॉर्ट में नौकरी करने गयी और नौकरी का पहला महीना पूरा होने से पहले ही लापता हो गयी. अंकिता भंडारी के पिता उसकी खोज में तीन पुलिस थानों और एक चौकी में गए, परंतु पुलिस ने राजस्व क्षेत्र का मामला बता कर, उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया. गौरतलब है कि उत्तराखंड में ब्रिटिश काल से ही कतिपय ग्रामीण इलाकों में पुलिस का कार्य पटवारी देखते हैं, जिसका उत्तराखंड बनने के बाद नामकरण हुआ – राजस्व उपनिरीक्षक कर दिया गया. पुलिस के बाद अंकिता के पिता जब उस इलाके के पटवारी यानि राजस्व उपनिरीक्षक के पास पहुंचे तो उसने दो घंटे तक अंकिता के पिता को अपने ऑफिस में अंदर ही नहीं आने दिया, जबकि इस मामले का मुख्य आरोपी उसके साथ अंदर ही बैठा हुआ था. अंकिता के पिता की तरफ से गुमशुदगी की रिपोर्ट (missing complaint) लिखने के बजाय उसने रिजॉर्ट के मालिक पुलकित गुप्ता की तरफ से रिपोर्ट लिखी. 23 सितंबर को मामला राजस्व पुलिस से सिविल पुलिस को हस्तांतरित हुआ. 24 सितंबर को पुलकित आर्य समेत दो अन्य आरोपी पकड़े गए, जिन्होंने पुलिस के सामने कबूल किया कि अंकिता को उन्होंने चीला बैराज में फेंक दिया, जहां डूबने से उसकी मृत्यु हो गयी. पुलिस ने अंकिता का शव भी बरामद कर लिया. आनन-फानन में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उस रिजॉर्ट को तोड़े जाने की घोषणा की, जहां अंकिता काम करती थी. सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए किया गया यह स्टंट दरअसल अपराधियों के संरक्षण का ही उपाय प्रतीत होता है क्यूंकि जो रिजॉर्ट इस हत्या के केंद्र में है, उसे नष्ट करना मतलब सबूत नष्ट करना है. बुलडोजर न्याय की यही हकीकत है कि वह पीड़ित के पक्ष में भले ही दिखाया जाये, लेकिन हकीकत में अपराधियों के पक्ष में खड़ा होता है.

अंकिता हत्याकांड में तो अपराधी और उसका पूरा परिवार भाजपा से जुड़ा हुआ है. उसके पिता विनोद आर्य, पिछली भाजपा सरकार में उत्तराखंड माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष थे, जिसे राज्यमंत्री का दर्जा हासिल था. उसका भाई अंकित आर्य वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा ही ओबीसी आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था. स्वयं पुलकित आर्य 2012 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के तकनीकी शिक्षा प्रकोष्ठ का संयोजक रहा है. जितना लंबा सिलसिला पुलकित आर्य और उसके परिवार का भाजपा से जुड़ाव का है, उतना ही लंबा सिलसिला पुलकित आर्य के आपराधिक घटनाक्रमों का है. अतीत में उस पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज हो चुका है. 2016 में बीएएमएस की परीक्षा में अपनी जगह उसने दूसरे व्यक्ति से परीक्षा दिलवाई, कॉलेज से निलंबित भी हुआ पर पिता के राजनीतिक प्रभाव से बहाल हो गया. 2020 में लॉकडाउन में वह अपने घर हरिद्वार से सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने पिता की सरकारी गाड़ी लेकर पहुंच गया. तब भी राजनीतिक प्रभाव से वह छूट गया. जिस वनंतरा रिजॉर्ट के मामले में अंकिता भंडारी की हत्या हुई, उसके बारे में भी खुलासा हुआ है कि आयुर्वेदिक दवाइयों की फैक्ट्री की नाम पर अनुमति लेकर रिजॉर्ट खोल दिया गया. और अंकिता भंडारी की हत्या क्यूं हुई ? क्यूंकि पुलकित उसे रिजॉर्ट में ही देह व्यापार में धकेलना चाहता था और उसने इससे इंकार कर दिया.

पुलकित और उसका पूरा परिवार, उस भाजपा से जुड़ा हुआ है, जिसका नारा है – बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ. लेकिन वह एक लड़की की हत्या इसलिए कर देता है कि वह लड़की, उसके रिजॉर्ट में संचालित देह व्यापार का हिस्सा बनने से इंकार कर देती है. यही भाजपाई – चाल, चरित्र और चेहरा – है. भाजपाई संरक्षण में रिजॉर्ट और उसका ‘व्यापार’ फलता-फूलता रहा.

लेकिन देह व्यापार के लिए अंकिता भंडारी की हत्या होने से सवाल पैदा होता है कि क्या ऐसी भी लड़कियां थी, जो अंकिता की तरह पुलकित को मना नहीं कर पायी और उनकी मजबूरी का फायदा उठा कर उन्हें इस कारोबार में धकेल दिया गया? अगर हां तो वे लड़कियां कहां हैं? प्रश्न यह भी वे वीआईपी कौन थे, जिनके लिए देह व्यापार का यह घृणित कार्य, ‘स्पेशल सर्विस’ कह कर चलाया जा रहा था?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2017 के विधानसभा चुनावों के प्रचार के समय उत्तराखंड आए तो उन्होंने कहा कि डबल इंजन की सरकार बनाइये, देहरादून के इंजन को दिल्ली के इंजन से जोड़िए तो विकास की गति दो गुनी हो जाएगी. लोगों ने नरेंद्र मोदी की बात पर भरोसा करते हुए दो बार डबल इंजन की सरकार बना दी. नतीजा, उनके दुख, तकलीफें और पीड़ा डबल हो गयी. महिलाएं घास काटने गयी तो उनकी घास पुलिस और नरेंद्र मोदी की सीआईएसएफ ने छीन ली, वे सरकारी की नौकरी करने गयी तो उत्तराखंड की महिलाओं को मिलने वाला क्षैतिज (Horizontal) आरक्षण छिन गया और कोई अंकिता प्राइवेट नौकरी करने गयी तो उसका जीवन, मोदी जी की पार्टी के नेता परिवार के बिगड़ैल बेटे ने छीन लिया. बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के ब्रांड एम्बेसडर प्रधानमंत्री, जो क्रिकेटर की अंगुली चोटिल होने पर भी ट्वीट करते हैं, उनसे इस युवा बेटी की जघन्य हत्या पर एक शब्द न बोला गया. बल्कि जिस दिन उस बेटी का शव मोर्चुरी में रखा हुआ तो और लोग सड़क पर न्याय की मांग कर रहे थे, उस दिन प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ में नामीबिया से लाये गए चीतों के नाम का सुझाव मांग रहे थे!

प्रधानमंत्री और उनका डबल इंजन भले ही चुप्पी ओढ़ ले, लेकिन उत्तराखंड की सड़कों पर लोग निरंतर उस बहादुर बिटिया के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं. दो अक्टूबर को हुए बंद ने भी इस बात के संकेत दिये हैं कि न्याय की लड़ाई बंद नहीं होगी. संसाधनों की लूट, नौकरियों की लूट और जीवन की लूट के विरुद्ध लड़ना ही एकमात्र विकल्प है, लड़ कर ही न्याय हासिल होगा.

Uttarakhand victim