बिहार का गुमनाम रजवार विद्रोह इतिहास की किताबों में अब तक भले जगह हासिल नहीं कर सका हो, वह जन चेतना में ऐसा रचा-बसा और गहरे धंसा हुआ है कि उसकी ताकत का एहसास आज भी होता है. इसी कारण, जब आजादी के 75 साल : जन अभियान के तहत रजवार विद्रोह और उसके नायकों जवाहिर रजवार, ऐतवा रजवार, भोक्ता रजवार, कारू रजवार व अन्य शहीदों की स्मृति में एक कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया गया तो उसे आम लोगों ने हाथो-हाथ लिया और वह एक जन कार्यक्रम में तब्दील हो गया.
देश में आजादी की पहली जंग के दौरान नवादा (पुराने गया जिला) की पहाड़ियों में यह विद्रोह शुरू हुआ था, जहां रजवारों की बहुलता है. रजवार मूलतः कमिया थे जो कंपनी राज के साथ-साथ स्थानीय जमींदारों से भी टकरा रहे थे. कमिया प्रथा के खिलाफ उठ खड़े हुए इस बगावत में रजवारों के साथ-साथ अन्य दलित जातियां भी शामिल थीं. विद्रोह का विस्तार नवादा, नालंदा, कौवाकोल, हजारीबाग, गोविंदपुर की पहाड़ियों से लेकर भागलपुर तक था. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि 1857 का विद्रोह जहां पूरे देश में डेढ़-दो साल में ठहर गया या कुचल दिया गया, रजवार विद्रोह अगले दस सालों तक जारी रहा. अंग्रेजों को अंततः कमिया प्रथा के खिलाफ कानून बनाने पड़े. यह भी तथ्य है कि उसी समय अंग्रेजों ने क्रिमिनल ऐक्ट बनाकर ऐसी तमाम प्रतिरोधी दलित जातियों को अपराधी जातियों की श्रेणी में डालने का ऐतिहासिक गुनाह किया.
यह विद्रोह और इसके नायक अब तक इतिहास के फुटनोट से ऊपर नहीं उठ सके हैं. आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर इनके ऐतिहासिक संघर्ष को याद करने का जिम्मा आजादी 75 साल जन अभियान और भाकपा(माले) ने उठाया. तय हुआ कि नवादा के सीतामढ़ी में जहां रजवार शहीदों की मूर्तियां हैं, वहां 21 सितंबर को माल्यार्पण किया जाएगा. माल्यार्पण के बाद सीतामढ़ी से नवादा तक आजादी मार्च निकाला जाएगा और फिर रजौली में एक संकल्प सभा आयोजित की जाएगी.
कार्यक्रम तय होने के बाद उसकी तैयारी शुरू हुई. पर्चे व पोस्टर इलाके में बांटे गए. जैसे ही इस कार्यक्रम की सूचना इलाके में फैली रजवार समुदाय ने इसे हाथों-हाथ लिया. उन्होंने अपनी पहलकदमी पर इलाके के लगभग सभी गांवों में बैठकें कीं. रजवार समुदाय के सभी जनप्रतिनिध्जि विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में थे, वे भी कार्यक्रम को सफल बनाने में जुट गए. इससे भाजपा घबराई और वह कार्यक्रम को असफल बनाने में जुट गई. कार्यक्रम के दो दिन पहले आचार संहिता का हवाला देकर रजौली में कार्यक्रम करने पर रोक लगा दी गई. लेकिन लोग तनिक भी निराश नहीं हुए. रातो-रात उन्होंने अपना कार्यक्रम रजौली से सीतामढ़ी स्थानांतरित कर लिया. भाजपाइयों की साजिश बेनकाब व असफल हुई.
21 सितंबर को भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य के नेतृत्व में भाकपा(माले) नेताओं की एक टीम आजादी संकल्प मार्च में शामिल होने के लिए गया से सीतामढ़ी निकली. इसमें भाकपा(माले) राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो के सदस्य अमर, अरवल विधायक महानंद सिंह, घोषी विधायक रामबलि सिंह यादव, समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर, आजादी 75 साल अभियान के संयोजक कुमार परवेज व एआईपीएफ के कमलेश शर्मा शामिल थे. भाकपा(माले) महासचिव के आगमन से पूरा इलाके के लोग खासा उत्साहित थे और जगह-जगह उनके स्वागत की तैयारी कर रखे थे. सबसे पहले वजीरगंज में उनका स्वागत किया गया और फिर कारवां आगे बढ़ता गया. मंझवे, जहां से नवादा जिला शुरू होता है, सैकड़ां मोटरसाइकिल सवार आजादी मार्च में शामिल हुए. मंझवे से सीतामढ़ी की दूरी लगभग 10 किलोमीटर है. इस बीच जितने भी गांव थे, वहां के बच्चे-बुजुर्ग-महिलाएं सब के सब नेताओं के स्वागत में सड़क किनारे खड़े थे और जगह-जगह माला पहनाकर कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य का स्वागत कर रहे थे. सभी गांवों में कार्यक्रम के पोस्टर लगे हुए थे. तिरंगा व लाल झंडे लहरा रहे थे. कार्यक्रम को असफल कर देने की तमाम कोशिशों को नाकाम बनाते हुए हजारों की तादाद में महिलाएं-पुरुष व बच्चे, कामगार लोग सीतामढ़ी में जमा हुए. सभा में महिलाओं की तादाद देखने लायक थी. केवल संख्या बल में ही नहीं, बल्कि जोश-खरोश के मामले में भी वे पुरूषों पर भारी पड़ रही थीं.
सीतामढ़ी में सबसे पहले जवाहिर रजवार, कारू रजवार व भोक्ता रजवार की मूर्तियों पर माल्यार्पण किया गया. इन मूर्तियों को स्वयं रजवार समुदाय ने बनाया है. कार्यक्रम में दूसरे जिले के भी रजवार नेता जुटे और सबने मिलकर एक ही मांग रखी कि रजवार नेताओ व शहीदों को राष्ट्रीय सम्मान दिया जाए. उन्होंने भाकपा(माले) के इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि यह पहली पार्टी है जो उनके नेताओं और उनको सम्मान देने उन तक पहुंची है.
आजादी संकल्प सभा को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि शहीदों का सही सम्मान तभी होगा जब हम उनके विचारों को अपनाएंगे और उसे आगे बढ़ाएंगे. उन्होंने कहा कि भगत सिंह ने आजादी की लड़ाई के दौरान जो आशंका व्यक्त की थी कि कहीं गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेज तो देश में नहीं आ जाएंगे, आज सही साबित हो रही है. आज देश में जो ताकतें सत्ता पर काबिज हैं, उन्होंने देश में स्वतंत्रता की कोई लड़ाई नहीं लड़ी. इसीलिए आज वे स्वतंत्रता आंदोलन के तमाम मूल्यों – बराबरी, आजादी और भाईचारा को नष्ट करने में लगी हुई हैं. हमें उनके खिलाफ संघर्ष करना होगा. आजादी बराबरी और लड़ाई के संघर्ष को आगे बढ़ाना ही हम सब का दायित्व है. उन्होंने कहा कि रजवार विद्रोह के नायक हमारे लिए प्रेरणा स्रोत हैं. उन्हें राष्ट्रीय सम्मान मिलना ही चाहिए. हम ऐसे नायकों के संघर्ष को पाठ्यपुस्तकों में शामिल करने की आवाज उठायेंगे.
आजादी संकल्प मार्च को नवादा जिला परिषद अध्यक्षा पुष्पा राजवंशी, विजय राजवंशी, प्रदीप राजवंशी, छोटेलाल राजवंशी, सोहन राजवंशी, सुरेन्द्र राजवंशी आदि नेताओं ने संबोधित करते हुए कहा कि हम भाकपा(माले) और कॉ. दीपंकर भट्टाचार्य का रजवार विद्रोह की इस धरती पर स्वागत करते हैं. हम चाहते हैं कि हमारे नेताओं को सही सम्मान मिले. पुष्पा राजवंशी ने कहा कि हमारे नायकों को सही सम्मान तो मिलना ही चाहिए, इसके साथ-साथ आज की चुनौतियों से लड़ने के लिए हम सबको एक बार फिर से एकताबद्ध होना होगा. भाकपा(माले) विधायक महानंद सिंह और रामबलि सिंह यादव ने कहा कि रजवार नेताओं को सम्मान दिलाने के लिए वे विधानसभा में संघर्ष करेंगे और इसके पक्ष में मजबूत आवाज उठायेंगे. सभा को अभियान के संयाजेक कुमार परवेज व एआईपीएफ के कमलेश शर्मा ने भी संबोधित किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता भाकपा(माले) नेता व जिला पार्षद मेवालाल राजवंशी तथा संचालन भाकपा(माले) के जिला सचिव भोला राम ने किया.
सब ने मिलकर 1857 के इन वीर शहीदों की स्मृति को सुरक्षित करने के लिए सीतामढ़ी में एक राष्ट्रीय स्मारक का निर्माण करने, पाठ्यक्रमों में इन नायकों की जीवनी को शामिल करने, रजवार विद्रोह के बारे में लोगों को जानकारी देने और उनके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया. यह भी तय हुआ कि 28 सितंबर को जवाहिर रजवार की शहादत दिवस के मौके पर गांव-गांव में लोग संकल्प लेंगे.