कारपोरेट हमले के खिलाफ बृहत्तर किसान एकता के आह्वान के साथ अखिल भारतीय किसान महासभा ऊ,प्र, का तीसरा राज्य सम्मेलन संपन्न हुआ.
10 सितंबर, 2022 को भारत जन ज्ञान विज्ञान संस्थान, लखनऊ के सभागार में यह सम्मेलन गर्मजोशी भरे वातावरण में शुरू हुआ. सम्मेलन का पहला सत्र दिल्ली के ऐतिहासिक किसान आंदोलन के शहीदों के बलिदान की परंपरा को आगे बढ़ाने के साथ और वृहत्तर किसान एकता के निर्माण के सवालों को हल करने पर केंद्रित था.
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय महासचिव राजाराम सिंह ने कहा कि विगत आंदोलन को आगे बढ़ाने में किसान महासभा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. हम अपनी जिम्मेदारी को आने वाले समय में भी मजबूती से निभाते रहेंगें. इसी उद्देश्य के लिए इस राज्य सम्मेलन को ‘किसान एका सम्मेलन’ का नाम दिया गया है. इस लक्ष्य को और आगे बढ़ाने के लिए किसान महासभा के राष्ट्रीय सम्मेलन के मौके पर 23 सितंबर 2022 को विक्रमगंज (रोहतास, बिहार) में भी विशाल महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है जिसमें किसान आंदोलन के सभी नेताओं को आमंत्रित किया गया हैं.
उन्होंने कहा कि कारपोरेट-हिंदुत्व गठजोड़ के नेतृत्व में भारत की खेती-किसानी में कारपोरेट पूंजी के हितों के अनुकूल संरचनात्मक बदलाव का अभियान चल रहा है. इसके लिए संसद में कानून बनाने से लेकर न्यायपालिका तक का इस्तेमाल खुले तौर पर हो रहा है .जो भारतीय कृषि के भविष्य के लिए खतरनाक संदेश है.
उन्होंने कहा कि यह समय भारत में कृषि विकास की दो रणनीतियों के बीच सीधी लड़ाई का है. आज का किसान आंदोलन कृषि विकास की दो रणनीतियो के बीच अंतर्विरोध के तीव्र होने से पैदा हुए कृषि संकट के बीच से निकला हुआ ऐतिहासिक किसान आंदोलन है. भारत में राज्य द्वारा कृषि विकास की मूल दिशा बड़े जोतदारों के साथ वैश्विक और देसी वित्तीय पूंजी को केंद्र में रखकर निर्धारित की गई थी. इसी आधार पर हरित क्रांति शुरू हुई जो अब आवेग खोकर संतृप्त अवस्था में पहुंच गई है. इस कारण से भारतीय किसान कर्ज में डूबने के बाद जमीनों से भी हाथ खोते जा रहा है.
उन्होंने कहा कि आज के कृषि संकट का मूल कारण कृषि निवेश यानी ट्रैक्टर, सिंचाई के साध्नों, डीजल, पेट्रोल, खाद-बीज-कीटनाशक जैसे कृषि उपयोग के सामानों के मूल्य का आसमान छूना और किसानों के उत्पाद का वाजिब मूल्य न मिलना रहा है जिससे भारतीय किसान हताशा के गर्त में डूब गया और आत्महत्या के सबसे कठिन रास्ते को चुनने को मजबूर हो गया. कहा कि इसतरह से कृषि विकास की शासक वर्गीय रणनीति ने कृषि को कारपोरेट पूंजी पर आश्रित करके दरिद्रीकरण का मार्ग प्रशस्त किया. जिससे कर्जदारी और आत्महत्या जैसी दो सर्वथा नवीन परिघटनायें ग्रामीण जीवन में तेज गति से ऊभरी कहा कि शासक वर्ग इस संकट का फायदा उठाते हुए दूसरी हरित क्रांति के द्वारा खेती को उबारने के नाम पर कृषि के कारपोरेटीकरण की दिशा लेना चाहता है. तीन कृषि कानून इसी दिशा में बढ़ने का शासकवर्गीय रास्ता था. ऐतिहासिक किसान आंदोलन सरकार की इसी दिशा के खिलाफ केंद्रित है.
उद्घाटन सत्र में अखिल भारतीय किसान सभा उत्तर प्रदेश के महामंत्री का, मुकुट सिंह ने कृषि के कारपोरेटीकरण के सवाल को उठाते हुए आज के किसान आंदोलन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संयुक्त मोर्चे को और ज्यादा मजबूत बनाने की जरूरत है ताकि दूसरे दौर के किसान आंदोलन को गति दी जा सके.
उद्घाटन सत्रा में बोलते हैं लाल बहादुर सिंह ने 2024 में फासीवाद के खिलाफ संघर्षों के बदलते हुए परिदृश्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि किसान आंदोलन को राजनीतिक घटनाक्रमों में सीधे हस्तक्षेप करने के लिए मुद्दे सूत्रवद्ध करना चाहिए. इस समय घटनाएं राजनीतिक प्लेटफार्म पर संगठित हो रही है इसलिए किसान आंदोलन को इस सवाल पर अपनी ठोस रणनीति तैयार करनी चाहिए.
उद्घाटन सत्र में खेग्रामस के प्रदेश सचिव राजेश साहनी और किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा के नेता शिवाजी राय ने भी वक्तव्य रखते हुए सम्मेलन के सफलता की कामना की.
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय किसान महासभा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष जयप्रकाश नारायण ने कारपोरेट परस्त कानूनों को अस्वीकार कर देने को किसान आंदोलन बड़ी उपलब्धि और लोकतंत्र की रक्षा करने वाला आंदोलन बताया जिसने भारत के अन्य सामाजिक-आर्थिक वर्गों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष के मैदान में उतरने की प्रेरणा दी और सांप्रदायिक फूट ,घृणा, दहशत और भीड़ के आतंक को नाकाम करके राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाने में बड़ी भूमिका निभाई. उदघाटन सत्र का संचालन महासभा के राज्य सचिव का. ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा ने किया.
4 सदस्यीय अध्यक्ष मंडल के गठन के साथ कामरेड अफरोज आलम के संचालन में सम्मेलन का प्रतिनिधि सत्र शुरू हुआ. सर्वप्रथम विदाई कमेटी के महासचिव ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा द्वारा विगत वर्षों के कामकाज की रिपोर्ट पेश की गई. इस सत्र में सांगठनिक सवालों के साथ भविष्य के कार्यक्रमों को लेकर गंभीर व सार्थक बातचीत हुई. डेढ़ दर्जन से ज्यादा प्रतिनिधियों ने अपनी राय व सुझाव दिए और कुछ नए मुद्दों को रिपोर्ट में समाहित करने की मांग की. प्रतिनिधि सत्र में 4 घंटे तक चले गंभीर विचारोत्तेजक विचार विमर्श के बाद सदन ने सर्वसम्मति से रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया.
तीसरे सत्र का संचालन और अध्यक्षता सम्मेलन के पर्यवेक्षक महासभा के महासचिव राजाराम सिंह ने किया. उनके द्वारा विदाई कमेटी द्वारा प्रस्तावित 33 सदस्यों वाली राज्य कमेटी के निर्माण का प्रस्ताव सदन के सामने पेश किया गया. पर्यवेक्षक ने सदन से सुझाव मांगे कि इसमें नए नाम जोड़ने घटाने या कोई और सुझाव हो तो उसे निर्धारित समय में नियमानुसार प्रस्तुत किया जाए.
सदन से नया प्रस्ताव न आने पर ध्वनिमत से प्रस्ताव को पारित कर दिया. राज्य काउंसिल के चुनाव के बाद पर्यवेक्षक की देखरेख में काउंसिल ने 17 सदस्यीय कार्यकारिणी का चुनाव किया. कार्यकारिणीने सर्वसम्मति से जयप्रकाश नारायण को अध्यक्ष और कामरेड ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा को महासचिव चुना. इसके बाद 4 उपाध्यक्ष और दो सह सचिव भी चुने गए. पदाधिकारियों सहित कार्यकारिणी की घोषणा सदन में महासचिव राजाराम सिंह ने की जिसका सदन ने जोरदार तालियों के साथ स्वागत किया.
सदन में रखे गए प्रस्ताव में उत्तर प्रदेश को सूखाग्रस्त घोषित करने, किसानों के नलकूपों पर मीटर लगाना बंद करने, बिजली बिल माफ करने सहित चुनाव में की गई घोषणा के अनुसार300 युनिट बिजली फ्री देने, एमएसपी पर कानून बनाने के लिए आंदोलन चलाने, खाद्य सुरक्षा की गारंटी, बटाईदार किसानों को किसान के रूप में मान्यता देने तथा सरकारी सुविधाओं में बराबर की हिस्सेदारी की लड़ाई को तेज करने, आवारा पशुओं की समस्या का ठोस हल ढूंढने तथा गौ रक्षा कानून के दमनात्मक प्रावधानों को समाप्त करने, इस कानून के तहत बंद सभी बंदियों को रिहा करने सहित मनरेगा मजदूरों को 600 रूपये प्रतिदिन मजदूरी और किसानों को दी जाने वाली राशि को बढ़ाकर दस हजार रूपये प्रतिमाह करने का प्रस्ताव पारित किया.
अंत में नवनिर्वाचित अध्यक्ष जयप्रकाश नारायण ने सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों सहित सम्मेलन को सफल बनाने में लगे कार्यकर्ताओं के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया और सम्मेलन को व्यवस्थित करने वाले शुभचिंतकों को बधाई देते हुए इसके सफल होने की घोषणा की. अंत में गगनभेदी नारों के साथ सम्मेलन का समापन हुआ.