वर्ष - 31
अंक - 9
26-02-2022

बिहार विधान सभा का बजट सत्र

अध्यक्ष महोदय,

भाजपा-जदयू सरकार अपनी अंतिम सांसें गिन रही है. नीतीश सरकार के ‘सुशासन’ ‘न्याय के साथ विकास’ आदि सभी नैरेटिव जब ध्वस्त हो गए हैं, तब नीतीश कुमार जी समाज सुधार यात्रा का ढोंग करने चले हैं. शराबबंदी पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली यह सरकार शराब माफियाओं को बचाने का काम कर रही है और जहरीली शराब के जरिए राज्य में लगातार दलितों-गरीबों का जनसंहार रचाया जा रहा है. अधिकार, बराबरी, रोजगार आदि बुनियादी प्रश्नों को छोड़कर और फासीवादी-मनुवादी भाजपा के साथ रहकर ये कौन सा समाज सुधार कर रहे हैं? पूरा बिहार इस सरकार की हकीकत से रूबरू हो चुका है. अभी कुछ दिन पहले समस्तीपुर में आरएसएस के गुंडों ने जदयू के एक मुस्लिम नेता खलील रिजवी की माॅब लिंचिंग कर दी, क्या अब भी नीतीश कुमार यह कहेंगे कि बिहार में सुशासन की ही सरकार चल रही है?

पूरे राज्य के भाजपाकरण की कोशिश

भाजपा आज पूरे राज्य में संवैधानिक मूल्यों की हत्या कर रही है. तमाम प्रतीकों व संस्थाओं का भाजपाईकरण हो रहा है. यह बेहद शर्मनाक है कि बिहार विधानसभा में बन रहे स्तम्भ से बिहार शब्द को गायब कर दिया गया है, जो उर्दू में लिखा था और नीतीश कुमार ने भाजपा के एजेंडे के सामने पूरी तरह समर्पण कर दिया है. वे धर्मनिरपरेक्षता का ढोंग अब न करें. उन्हें अब बताना होगा कि वे किस ओर खड़े हैं. इस ओर या उस ओर? उनका यह दोहरा चरित्रा बिहार की जनता लंबे समय से देख व समझ रही है. बिहार की जनता जानना चाहती है कि आखिर क्यों अभी तक समस्तीपुर के आधारपुर के मुस्लिमों को न्याय नहीं मिला? हिजाब का मामला अब केवल कर्नाटक तक सीमित नहीं रह गया है. बिहार के बेगूसराय में एक मुस्लिम महिला को परेशान किया गया, उसे हिजाब उतारने को कहा गया. कहा गया कि जबतक हिजाब नहीं उतरेगा उसे बैंक में प्रवेश नहीं मिलेगा. यह कौन सी संस्कृति भाजपा पूरे देश और बिहार में स्थापित कर रही है और नीतीश कुमार चुप बैठकर तमाशा देख रहे हैं. इतना ही नहीं आरएसएस के लोगों को चुन-चुन कर कुलपतियों के पद पर बैठाया जा रहा है. संविधान के मूल्यों की खुली अवहेलना हो रही है.

नीति आयोग की रिपोर्ट और बिहार का सच

‘न्याय के साथ विकास’ के नीतीश जी के दावे की पोल तो नीति आयोग की रिपोर्ट ने खोल के रख दी. विकास के तमाम सूचकांकों में हमारा राज्य नीचे से टाॅप पर है. विकास के किसी एक मानदंड पर तो आप खड़े रहते? यह कैसा विकास है जो बिहार की जनता को कुछ समझ में नहीं आ रहा है.

स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर इन तीनों मानदंडों पर बिहार कहीं नहीं टिकता. 51.9 पफीसदी आबादी आज भी गरीबी रेखा के नीचे है.

बेरोजगारी, गरीबी, शिक्षा व स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था, बिजली, कुकिंग, स्कूलों में छात्रों की भागीदारी, महिला सुरक्षा आदि सभी मानदंडों पर नीतीश जी के शासन में बिहार रसातल में चला गया है. और न केवल नीति आयोग बल्कि देश-विदेश के जितने भी प्रतिष्ठित मानक संस्थानों की रिपोर्ट की चर्चा कर लें, हर जगह इसी प्रकार का आंकड़ा सामने आता है.

आखिर यह सरकार कब तक आंकड़ों की बाजीगरी दिखलाती रहेगी. यदि लोगों के जीवन स्तर में ही सुधार न हुआ तो पुल-पुलिया बनाकर आखिर कौन सा विकास का माॅडल यह सरकार पेश कर रही है? पुल-पुलिया के निर्माण में भी व्यापक पैमाने पर संस्थागत भ्रष्टाचार ही आज का सच है.

भूमि सुधार से विश्वासघात

अध्यक्ष महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि आखिर बिहार का यह हाल क्यों है? मैं कोई नई बात नहीं बोलने जा रहा हूं. फिर से पुरानी बात ही दुहरा रहा हूं.

सारे अर्थशास्त्रिायों व विद्वानों ने बारंबार कहा है कि राज्य में जब तक भूमि सुधार को लागू नहीं किया जाता, कृषि आधारित उद्योग-धंधे नहीं लगते, इस राज्य का कुछ नहीं होने वाला. हम बार-बार बोलेंगे कि यह सरकार भूस्वामियों-भूमिचोरों को बचा रही है. और यही वजह है कि बिहार आगे बढ़ने की बजाए पीछे जा रहा है. हम जब कहते हैं कि गरीबों-बटाईदारों में जमीन बांटो, नीतीश जी कहते हैं कि जमीन क्या आसमान से आएगी? आपने जो बंद्योपाध्याय आयोग का गठन किया था, उसने बताया था कि 21 लाख एकड़ सीलिंग की जमीन है, इसका वितरण गरीबों के बीच किया जाना चाहिए. यदि उत्पादकों को उत्पादन साधनों का मालिक नहीं बनायेंगे, तब विकास कैसे होगा?

सरकार बंदोपाध्याय कमिटी की रिपोर्ट पर कहती है कि यह पुराने सर्वे के आधार पर हुआ है. नीतीश कुमार ने कौन सा नया सर्वे करवाया कि वे अपनी ही रिपोर्ट को खारिज कर रहे हैं? बंद्योपाध्याय आयोग ने बेहद उदार किस्म की सिफारिशें की थीं,  विभिन्न किस्मों की सीलिंग खत्म करते हुए एक ही सीलिंग की सिफारिश की थी और उसका आधार 15 एकड़ बनाया था. सरकार इस सच से भाग रही है, तो हम आपसे कहना चाहते हैं कि सीलिंग का दायरा घटाकर 5 एकड़ करिए. आप बताइए कि भूदान में प्राप्त अभी तक अवितरित रह गई जमीन का क्या हुआ? कहां उसका बंदरबांट हुआ? उल्टे आज पूरे राज्य में गरीबों को जगह-जगह बेदखली का शिकार बनाया जा रहा है. जल जीवन हरियाली योजना के नाम पर उनके लिए वैकल्पिक आवास की व्यवस्था तो नहीं हुई, लेकिन उजाड़ जरूर दिया गया. चंपारण से दरभंगा तक एक बार फिर भूमाफियाओं की सक्रियता बढ़ गई है और वे गरीबों व पर्चाधारियों को उनकी जमीन से बेदखल करने पर अमादा हैं. हत्याएं कर रहे हैं और यहां तक कि जलाकर मार दे रहे हैं. ऐसा लगता है कि भाजपा-जदयू की सरकार ने इस प्रदेश को 1990 के पहले वाले सामंती दबंगई व भूस्वामियों के आतंक के दौर में ले जाने का मन बना लिया है.

कृषि का परंपरागत पिछड़ापन व उद्योग

बिहार में कृषि का परंपरागत पिछड़ापन जारी है. बाढ़-सुखाड़ की समस्या जस की तस पड़ी है. सोन नहर प्रणाली सहित सभी प्रमुख नहर प्रणालियां अस्त-व्यस्त हैं. नीतीश शासन में बचे-खुचे उद्योग भी समाप्त हो गए. चंपारण के चीनी मिलों का हाल हम सब लगातार देख रहे हैं. किसानों का बकाया बदस्तूर जारी है. अब इस सरकार ने फैसला किया है कि धान, गेहूं, जौ सहित 7 खाद्य पदार्थों से एथेनाॅल बनाया जाएगा. यह भूख से जूझते बिहार को भुखमरी के कगार पर धकेल देना है. हम खाद्य पदार्थों से अखाद्य पदार्थों के निर्माण को विनाशकारी कदम समझते हैं और इस पर अविलंब रोक लगनी चाहिए.

विशेष राज्य का दर्जा का सवाल

लंबे अर्से से बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग होती रही है. लेकिन डबल इंजन की सरकार के लिए यह राजनीति का खेल बन गया है. अब भाजपा व जदयू वाले आपस में ही नूराकुश्ती करते रहते हैं. आप दोनों यह बताइए कि आखिर 16 वर्षों में अभी तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिला?

बिहार में मंडी व्यवस्था बहाल करो

एक साल के लंबे आंदोलन के बाद अंततः मोदी सरकार को झुकना पड़ा और तीनों काले कृषि कानून वापस लेने पड़े. पंजाब और हरियाणा के किसानों का तो यही कहना था कि मंडी व्यवस्था की समाप्ति का दुष्परिणाम हम बिहार में देख चुके हैं. नीतीश जी ने मंडी व्यवस्था को खत्म करके बिहार के किसानों को कहीं का नहीं छोड़ा. एमएसपी पर धान व कुछेक अन्य फसलों की खरीद का रेट तय है, लेकिन शायद ही किसानों की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कहीं भी खरीदी जाती हो. किसान 1000-1200 रु. प्रति क्विंटल अपना अनाज बिचौलियों के हाथों बेचने को बाध्य हैं. क्या यह सरकार की नोटिस में नहीं है. इसलिए हम आज विधानसभा में कहने आए हैं – दिल्ली की बाजी जीती है, अब बिहार की बारी है.

बिहार में एपीएमसी ऐक्ट, जिसको आपकी सरकार ने 2006 में खत्म कर दिया था, पुनर्बहाली की मांग पर आंदोलन का विस्तार हो रहा है. यदि बिहार को आगे जाने है तो मंडी व्यवस्था आपको लागू करनी होगी.

गरीबों-भूमिहीनों के प्रति सरकार का रवैया

भूमिहीनों को जमीन उपलब्ध करवाने के मामले में यह सरकार फिसड्डी साबित हुई है. उदाहरणस्वरूप हम कहना चाहेंगे कि सीतामढ़ी जिले के अंचल बोखरा, पंचायत – खरखा वसंत उत्तरी व दक्षिणी, थाना नं.-215 के खाता नंबर 2996 व 2997 में बिहार सरकार की वास एवं खेती योग्य 30 एकड़ अवितरित जमीन उपलब्ध है? जमीन पड़ी हुई है, लोग आवेदन पर आवेदन कर रहे हैं लेकिन प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेंगता. लेकिन नीतीश कुमार कहेंगे कि उनके पास जमीन कहां है? हम आपको बता रहे हैं कि कहां-कहां जमीन अब भी राज्य में उपलब्ध है.

सीतामढ़ी जिले के ही अंचल नानपुर थाना क्षेत्र के नया टोला ग्राम के पर्चाधारियों को जनहित याचिका सं.- 12743/2003 में माननीय उच्च न्यायालय के आदेश दिनांक 05.07.2004 के द्वारा आवंटित भूमिखंड पर कब्जा करा देने का आदेश पारित किया गया. सरकार ने सीतामढ़ी को विभागीय पत्रांक - 233 (7) रा. दिनांक - 13.03.2012 द्वारा एक माह के अंदर बेदखल पर्चाधारियों को नियमानुसार दखल-कब्जा दिलाने का निर्देश दिया, लेकिन 9 साल बाद भी पर्चाधारियों को जमीन पर अधिकार नहीं मिल सका है. भूस्वामी पर्चाधारियों को भगाने में लगे रहते हैं. बेदखल पर्चाधारियों को सरकार कम से कम भूमिखंड पर दखल-कब्जा तो दिला देती. इस सरकार से इतना भी नहीं हुआ.

मधुबनी जिला के गंगा सागर स्थान, भौआरा के मठ तथा मठ की सारी संपत्ति की बंदोबस्ती एवं सुरक्षा हेतु कार्य करने हेतु अस्थायी रूप से धार्मिक न्याय परिषद् ने वहां के अनुमंडलाधिकारी को निर्देश दिया, जिसका पत्रांक संख्या 4105, दिनांक 08.12.21 है, लेकिन अभी तक यह आदेश लागू नहीं हो सका है. यह राज्य के प्रशासन का हाल है.

उसी जमीन पर 1989 में 24 परिवारों को वासगीत का पर्चा मिला था. महंथ डीएम के कोर्ट में चले गए और तब से वह मामला वहीं अटका पड़ा हुआ है. 33 वर्षों बाद भी मामले का निपटारा नहीं हो सका है, जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि 6 महीने से ज्यादा स्टे नहीं लगाया जा सकता है. नीतीश जी आपकी सरकार पूरे 16 साल में एक मामला तक हल नहीं कर सकी.

महादलितों के आवास के प्रश्न पर सरकार का झूठ

महादलितों को जमीन देने की बड़ी-बड़ी बातें की गईं. मुख्यमंत्री जी राज्य में घुमकर आइए, लाखों की आबादी नहरों, पईन, नदियों के किनारे ठौर लिए हुए है. सरकार ने विगत दिनों एक आंकड़ा जारी किया था जिसमें कहा गया था कि 90 हजार गरीबों को आवास की जमीन उपलब्ध करा दी गई है और अब मात्र 22 हजार लोग बचे हैं. इनके बीच जमीन कितनी वितरित की गई – महज 53 एकड़. यह आंकड़ा तो सचमुच अद्भुत है. मतलब झूठ की भी एक सीमा होती है. लेकिन इस सरकार ने मोदी जी से सीखते हुए झूठ की सारी सीमाओं को लांघ दिया है.

अब सरकार कह रही है कि सरकारी जमीन पर बसे लोगों की खैर नहीं, उन्हें जेल जाना होगा. हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि सरकारी जमीन को अपने अवैध कब्जे में कर रखे भूमाफियाओं पर कार्रवाई करिएगा या आवास विहीन गरीबों पर. आपकी मंशा साफ नहीं है. नीतीश जी आप में यदि हिम्मत है तो भूस्वामियों पर कार्रवाई करिए, उनके चंगुल से सरकारी जमीन को मुक्त कराइए, हम आपका साथ देंगे. लेकिन एक भी गरीब पर हमला हम बर्दाश्त नहीं करेंगे. जल-जीवन-हरियाली योजना के नाम पर हमने देखा है कि आपकी सरकार का कहर गरीबों पर ही टूटा और उन्हें ही बेदखली का शिकार होना पड़ा. आप बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के यदि गरीबों को विस्थापित करेंगे तो हम इसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे.

statement on the Governor's address

कानून व्यवस्था का खराब हाल

सुशासन का हाल यह है कि आज अपराध बिहार में लगातार बढ़ते ग्राफ में है. कहीं पुलिस का आतंक है, कहीं सामंती अपराधियों का. बिहार में कानून का राज नहीं बल्कि पुलिस व अपराधी राज है और आम लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों की हत्या खुलेआम जारी है. महिलाओं के सशक्तीकरण के दावे की पोल तो मुजफ्फरपुर शेल्टर होम ने खोल कर रख दिया था. इसके बाद हाल ही में गायघाट शेल्टर होम का मामला सामने आया है, जिसमें एक बच्ची ने बेहद संगीन आरोप वहां के अधिकारियों पर लगाया है. हाइकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उसकी जांच की बात सामने आई. वैशाली में एक दलित लड़की को अपराधियों ने दिनदहाड़े उठा लिया. जब इसकी शिकायत करने उसके पिता अपराधियों के गार्जियन के पास पहुंचे, तो गार्जियन ने कहा कि दो-तीन दिनों में लड़की आ जाएगी. मानो, बिहार में अब भी सामंतों का शासन चल रहा हो. तीन-चार दिनों के बाद उस लड़की की क्षत-विक्षत लाश मिली. औरंगाबाद में वोट न देने के शक में महादलितों को थूक चटवाया गया. पूरे राज्य में महिलाओं-अल्पसंख्यकों व गरीबों पर सामंती-सांप्रदायिक हमलों की बाढ़ आ गई है, लेकिन सरकार को ये सब कुछ नहीं दिखता.

बालू माफियाओं की चांदी

यदि नीतीश राज में किसी का कुछ भला हुआ है, तो वह शराब माफियाओं, बालू माफियाओं और ठेकेदारों का. विगत चुनाव में बिहार की जनता ने इस विश्वासघाती व विनाशकारी सरकार को लगभग पलट दिया था. ऐसी सरकार को बिहार और बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है. आप याद रखिए कि आपको महागठबंधन की तुलना में महज 12 हजार ज्यादा वेाट आए हैं. लेकिन आप विपक्ष की आवाज को लगातार दबा रहे हैं.

बेलागंज की घटना

गया पुलिस की चरम बर्बरता के शिकार बने गया जिले के बेलागंज प्रखंड के आढ़तपुर गांव की घटना सरकार द्वारा बालू माफिया गिरोहों को दिए जा रहे संरक्षण का सबसे बड़ा सबूत है.

यह घटना नीतीश सरकार की अव्वल दर्जे की दमनकारी व गरीब विरोधी नीतियों और पुलिस प्रशासन की बर्बरता का बर्बर उदाहरण है. सरकारी टेंडर की आड़ में स्थानीय ग्रामीणों की चिंता को दरकिनार कर बालू माफिया को लूट की खुली छूट देने के लिए पुलिस-प्रशासन और बालू माफिया के गठजोड़ ने इस जुल्म-ज्यादती को अंजाम दिया है. यह खेल पूरे बिहार में जारी है.

स्थानीय ग्रामीण बालू माफिया रामाश्रय शर्मा उर्फ पुण शर्मा, कौशल शर्मा, हरेंद्र शर्मा, रिंकू शर्मा, जितेंद्र शर्मा, सुबोध शर्मा, मनीष शर्मा उर्फ भीम शर्मा, सौरभ शर्मा का नाम लेकर आरोप लगा रहे थे. उनका कहना था कि पुलिस की इनसे मिलीभगत है व ग्रामीणों की कोई नहीं सुनता है.

पूरे राज्य में कहीं शराब माफियाओं का तो कहीं बालू माफियाओं का आतंक राज चल रहा है. आज के बिहार का यही सच है.

दरभंगा की घटना

दरभंगा के जीएम रोड में विगत 9 फरवरी को जमीनी विवाद में भूमाफिया गिरोह द्वारा विगत 40 वर्ष से बसे रीता झा के परिवार के सदस्यों पर की गई बर्बरता साबित करती है कि नीतीश कुमार की सरकार बिहार को पूरी तरह 1990 के पहले वाले दौर में धकेल देने पर अमादा है. प्रशासन की नाक के ठीक नीचे भूमाफियाओं ने 8 माह की गर्भवती पिंकी झा व उनके भाई संजय झा को जला कर मार दिया. पीएमसीएच में इलाज के दौरान 15 फरवरी को दोनों की मृत्यु हो गई.

9 फरवरी की शाम जमीन के विवाद में जिंदा जलाने की यह घटना नीतीश सरकार पर काला धब्बा है. जमीन विवाद का मामला 2017 से ही चल रहा है. दरभंगा महाराज की जमीन पर विगत 40 वर्षों से रीता झा का परिवार रह रहा है. दरभंगा महाराज के परिवार के सदस्यों के साथ पीड़ित परिवार के साथ एग्रीमेंट बना हुआ है. लेकिन भूमाफिया शिव कुमार झा द्वारा उक्त जमीन की गलत ढंग से रजिस्ट्री करा ली गई और फिलहाल यह मामला पटना उच्च न्यायालय में चल रहा है. भूमाफिया शिवकुमार झा द्वारा उक्त परिवार को 2017 से ही तबाह किया जा रहा है. यह पूरा मामला प्रशासन के संझान में है, लेकिन इस मामले को सुलझाने के बजाय जिला प्रशासन ने उलझाने का ही काम किया.

शिक्षा, रोजगार व स्वास्थ्य

नीतीश शासन में सबसे बुरी हालत शिक्षा व्यवस्था की हुई है. कुलपतियों की नियुक्ति में भारी भ्रष्टाचार की चर्चा हमने की. करोड़ों का कारोबार चल रहा है और कुलपति के पद को पूरी तरह से कलंकित कर दिया गया है. शिक्षक-शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के लाखों पद खाली पड़े हैं, लेकिन सरकार बहाली नहीं करना चाहती. कुलपतियों की नियुक्ति में भारी भ्रष्टाचार सहित संस्थागत शैक्षणिक अराजकता आज के बिहार के कैंपसों का सच है. 19 लाख रोजगार का झूठा वादा करके सत्ता में आई सरकार इस चौथे टर्म में भी युवाओं से केवल विश्वासघात ही कर रही है.

ठेका पर एक तरह से लोगों से बेगार करवाना इस सरकार की खासियत है. आशाकर्मियों, रसोइया, शिक्षक समुदाय, आंगनबाड़ी आदि तबकों के प्रति सरकार के तानाशाही रवैये से हम सभी वाकिफ हैं. इन तबकों को न्यूनतम मानदेय भी नहीं मिलता ताकि वे अपना जीवन बसर कर सकें. यदि वे अपने अधिकारों की मांग करते हैं, तो सरकार उनपर दमन अभियान ही चलाती है. अभी हाल में आशा कार्यकर्ताओं ने अपनी जायज मांगों को लेकर हड़ताल पर जाने का नोटिस जारी किया. हाइकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वे आशा कार्यकर्ताओं की सभी मांगों को गंभीरता से सुने. क्या यह अन्याय नहीं है कि जिन आशा कार्यकर्ताओं के उपर आज बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था का दारोमदार है, सरकार उन्हें वाॅलिंटियर कहके उनके अधिकारों का हनन कर रही है.

योजनाओं में भ्रष्टाचार

जनवितरण प्रणाली, मनरेगा, नल-जल योजना सरीखी योजनाओं का क्या हाल है? जनवितरण प्रणाली में भारी भ्रष्टाचार है. आपकी सरकार गरीबों को सड़े अनाज देती है. मुख्यमंत्री के गृह जिले में जब भूतपूर्व सैनिक सत्येन्द्र सिंह ने नल-जल योजना में भ्रष्टाचार का मामला उठाया, तो उलटे उन्हें ही जेल भेज दिया गया. दक्षिण के राज्यों में अनाज के साथ-साथ अन्य तमाम जरूरी सामान मिलते हैं. मनरेगा योजना को आपकी सरकार ने लगभग मार दिया है. न काम मिलता है, और न ही न्यूनतम मजदूरी. यदि लोगों को रोजगार ही नहीं मिलेगा, तो फिर लोगों का जीवन स्तर कैसे सुधरेगा?

स्वास्थ्य का बुरा हाल

कोविड की दूसरी लहर ने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की भी पोल खोल दी. पूरा स्वास्थ्य तंत्र लकवाग्रस्त है. डाॅक्टरों, नर्सों, अस्पतालों की भारी कमी है. हमने लोगों को ऑक्सीजन के अभाव में तड़प-तड़प कर मरते देखा है. लेकिन बेशर्म सरकार यही बोलते रही कि ऑक्सीजन के अभाव में एक भी मौत नहीं हुई है. नीचे की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है. डाॅक्टर, नर्स, कंपाउंडर सहित स्वास्थ्य सेवा के लाखों पद खाली पड़े हैं. बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे चल रही है.

प्रवासी मजदूरों की बेबसी

कोविड के दौरान हमने बिहार से पलायन पर सरकार को बेपर्द होते हुए देखा. यदि राज्य में विकास की ऐसी ही गंगा बह रही है, तो क्या भाजपा-जदयू सरकार यह बताएगी कि आखिर राज्य से लाखों मजदूरों का पलायन आज भी बदस्तूर जारी क्यों है? जम्मू-कश्मीर से लेकर उत्तराखंड तक में उनपर लगातार हमले हो रहे हैं, वे मारे जा रहे हैं, आखिर सरकार की नींद क्यों नहीं खुलती?

अभी हाल में महाराष्ट्र में कटिहार के पांच मजदूर मलवे के नीचे दबकर मर गए. फिर भी सरकार कहती है कि पलायन मजदूर शौक से कर रहे हैं. लंबे समय से प्रवासी मजदूरों के लिए कानून बनाने की मांग हो रही है, लेकिन केंद्र हो या राज्य सरकार, इस पर चुप्पी है. प्रवासी मजदूर पूरे देश में मारे जा रहे हैं.

शहरी गरीबों की बेदखली

15 सालों के विकास की डींग हांकने वाली यह सरकार यह भी बताए कि शहरी गरीबों के लिए इसने क्या किया है? बिहार में जो भी शहरी गरीबों के लिए काॅलोनियां बनीं वे 2005 के पहले की हैं. उसके बाद एक भी काॅलोनी नहीं बनी. जबकि दिल्ली जैसे अन्य राज्य की सरकारों ने अनधिकृत काॅलनियों को अधिकृत किया. आप तो शहरी गरीबों को शहर की परिधि से ही बाहर कर देने पर तुले हुए हैं. पटना के गर्दनीबाग, लोहानीपुर, महमूदीचक आदि तमाम जगहों पर आप जाकर देखिए, गरीब व दलित समुदाय के लोग कैसे रह रहे हैं?

महोदय, मैं कहना चाहता हूं कि चरम बेरोजगारी-नफरत-हिंसा-दमन-सांप्रदायिक हिंसा के इस काल को अमृत काल बताया जाना गरीबों-मजदूरों-अल्पसंख्यकों व महिलाओं के साथ क्रूर मजाक है. अब इस सरकार के दिन पूरे हो चुके हैं.

on the Governor's address is in discussion