वर्ष - 34
अंक - 6
16-03-2025

(ऐक्टू के 11 वें राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन वक्तव्य)

जो बिरसा मुंडा ने कहा, ‘अबुआ दिशुम, अबुआ राज’ (अपने देश में अपना हक, अपना राज) वही वह आवाज है, जो 1857 से लेकर 1949 में जब देश में संविधान पारित हुआ और 1950 में जब रिपब्लिक की स्थापना हुई, तब भी गूंजी. आज इस आवाज को और ज्यादा बुलंद करने की जरूरत है, क्योंकि हमारे देश में आज एक ऐसी सरकार है जो इस देश के मजदूर-किसानों – इस देश को बनाने वालों और इस देश को चलाने वालों, इस देश की आम-आवाम –  सबके खिलाफ खड़ी है. इसलिए आप देखेंगे कि आज न सिर्फ हमारा हक छीना जा रहा है - मजदूरों का, किसानों का, नौजवानों का, महिलाओं का हक. न सिर्फ देश की तमाम संपदाओं को अडानी-अंबानी के हाथों में सौंप दिया जा रहा है, बल्कि पूरे देश के स्वाभिमान को अमेरिका के सामने गिरवी रखा जा रहा है.

1857 का एक गीत है, जो कहता है - ‘आया फिरंगी दूर से, ऐसा मंतर मारा, लूटा दोनों हाथ से, प्यारा वतन हमारा.’ आज अमेरिका के सामने हमारे देश के प्रधानमंत्री गिड़गिड़ाते हैं और उसी अमेरिका से लगातार हमारे देश के नागरिकों को अमेरिका के सैन्य विमान में कभी सौ, कभी सवा सौ, कभी डेढ़ सौ की संख्या में हथकड़ी लगाकर, पैरों में बेड़ी लगाकर, गुलाम की तरह, अपराधियों की तरह, देश में वापिस भेजा जा रहा है.

मैं ये कहना चाहता हूं कि जिनको भेजा जा रहा है, वे सारे के सारे लोग, हमारे देश के मजदूरों का हिस्सा हैं. वे वहां मजदूरी करते थे, काम करते थे. उनके पास कागज हैं या नहीं हैं, लेकिन देश का स्वाभिमान है. हमने कोलंबिया में देखा, मैक्सिको में देखा, उन देशों ने कहा – ‘हमारे नागरिक अगर अमेरिका में आपको नहीं चाहिए, बेशक हम उनको अपने देश में वापस ले लेंगे , लेकिन पूरे सम्मान के साथ.’ उन्होंने कहा – ‘हमारा विमान जायेगा और हमारे नागरिकों को देश में वापिस लेकर आएगा.’ हमने देखा किस तरह से कोलंबिया ने, मैक्सिको ने अपने देश के स्वाभिमान का परिचय दिया, लेकिन हमारे देश में 5 तारीख को मोदी जी कुंभ में डुबकी लगा रहे थे, दिल्ली में चुनाव हो रहा था और अमृतसर में हमारी आवाम, महिलाएं, वो आ रहे थे हाथ में हथकड़ी, पैर में बेड़ी लिए.

इसलिए आज हमारे सामने एक बहुत बड़ा सवाल आ गया हैः जो मजदूरों की लड़ाई है, लंबी लड़ाई है. आजादी के आंदोलन के दौर से (अमरजीत कौर यहां मौजूद हैं, ऐटक की महासचिव), 1920 में ऐटक की स्थापना हुई, आजादी के आंदोलन में. हिंदोस्तान की आजादी का आंदोलन, इस देश के मजदूरों का, मेहनतकशों का आंदोलन था. और इतनी बड़ी परंपरा लेकर, 105 साल, इस देश के संगठित केंद्रीय ट्रेड यूनियन आंदोलन, वैसे ट्रेड यूनियन के अधिकार की बात करें, तो वो और भी पुराने हैं. उस लड़ाई को लड़ते हुए आज हम यहां पहुंचे हैं.

हमारे सामने आज बहुत सारे सवाल हैं. इस समय काम की बात होती है, कोई कहता है 70 घंटा काम करो, कोई कहता है 90 घंटा काम करना चाहिए. लोग तो 100-100 घंटे काम कर रहे हैं, काम के दाम की बात नहीं हो रही, मज़दूरी की बात नहीं हो रही है. काम जहां करते हैं, उस काम के इलाके में, काम करने की जगह पर कितनी हमारी सुरक्षा है, कितना सम्मान है, वहां कितना लोकतंत्र है, इसकी बात नहीं हो रही है. कम से कम पैसे देकर के ज्यादा से ज्यादा काम किस तरह से लोगों से निकाला जा सकता है. ये देश में एक बड़ी साजिश चल रही है.

ऐसे दौर में मजदूरों के हक की बात, मजदूरों के अधिकारों की बात करना निश्चित तौर पर हम सब के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. लेकिन यह जो बुनियादी सवाल है, आज इस को शुरू करना होगा वहीं से, ‘हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा.’ इस देश के मालिक हम हैं और मालिक की हैसियत से इस देश के मजदूर अपना हक मांगेंगे; वैसे तो फैज अहमद फैज ने कहा था कि जब हम अपना हिस्सा मांगेंगे, हम पूरी दुनिया मांगेंगे. हम वो मजदूर वर्ग हैं, जो कार्ल मार्क्स ने कहा था, वर्कर्स ऑफ द वर्ल्ड (दुनिया के मजदूरों), हम तो सिर्फ हिंदुस्तान में नहीं, पूरी दुनिया में फैला हुआ वर्ग है, पूरी दुनिया को चलाने वाला वर्ग हैं. तो जब हम मालिक की हैसियत से आज अपने मुल्क के बारे में सोचेंगे, हम अपने बारे में तो सोचेंगे ही, किसानों के बारे में सोचेंगे, नौजवानों के बारे में सोचेंगे, छात्रों के बारे में सोचेंगे, उनकी पढ़ाई के बारे में सोचेंगे, पूरे देश के बारे में सोचेंगे. देश का संविधान जिसको आज खत्म किया जा रहा है के बारे में भी सोचेंगे. अगर देश का संविधान खत्म होगा तो मजदूरों का कौन सा कानून बचेगा? तो ऐसी स्थिति में बड़ी लड़ाई हमारे सामने है, बड़ी एकता की जरूरत है.

आज का जो मजदूर वर्ग है, बदला हुआ मजदूर वर्ग है. पुराना ज़माना था, हम पब्लिक सेक्टर की बात करते थे, ऑर्गेनाइज्ड (संगठित) सेक्टर की बात करते थे. पब्लिक सेक्टर, संगठित क्षेत्र में लंबी लड़ाई के बल पर मजदूरों ने कुछ अधिकार हासिल किए थे. आज जो मजदूरों की संरचना है देश में – पब्लिक सेक्टर खत्म किया जा रहा है, ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर बहुत छोटा है. बहुत बड़ा इनफॉर्मल इकोनॉमी है, बहुत बड़ा असंगठित क्षेत्र है, बहुत सारे मजदूर हैं जिनको सेल्फ-एम्प्लॉयड कहा जाता है, वे कोई मालिक नहीं है. बहुत सारे बेरोजगार लोग हैं और बहुत ही असुरक्षित, बहुत अपमानजनक परिस्थिति में काम करने वाले मजदूर.

मजदूरों के अंदर भी हर तरह के मजदूर हैं. हमारे देश में आधी आबादी महिलाओं की है. हिंदुस्तान की महिलाएं मजदूर वर्ग की भी आधी आबादी हैं और हम देख रहे हैं कि आज बड़ी संख्या में महिलाएं आज यहां हैं. और बड़ी संख्या में उन्हें आने की जरूरत है और आगे एक साथ मिलकर चलने की जरूरत है.

इसलिए आज का मजदूर आंदोलन सब के लिए है, सारे स्कीम वर्कर, आशा, आंगनवाड़ी, मिड डे मील, इनसे जुड़ी हुई करोड़ों-करोड़ महिलाएं, आप सब के लिए यह संगठन है, आप सब के लिए ये आंदोलन है. ये आंदोलन तमाम खेत मजदूरों के लिए है, उन तमाम ग्रामीण मजदूरों के लिए है, करोड़ों की तादाद में, जिनके लिए कानून तो बना मनरेगा का, लेकिन उस कानून में आप देखेंगे कि उनकी मजदूरी बढ़ती नहीं है. जब न्यूनतम मजदूरी सरकार खुद तय करती है, जैसे आज 26,000 न्यूनतम वेतन मिलना चाहिए. आप देखेंगे कि इस देश में किसी स्कीम वर्कर को, किसी मनरेगा मजदूर को, कहीं ये मिनिमम वेज (न्यूनतम वेतन) नहीं मिलता है. सरकार खुद न्यूनतम वेतन की घोषणा करती है और खुद लोगों से काम लेती है, बहुत कम पैसा देकर, टोकन पैसा देकर. वे सारे लोग जो आज न्यूनतम वेतन के लिए लड़ रहे हैं, सब हमारे साथ हैं, सब के लिए मजदूर आंदोलन है. वे सारे लोग जिनकी जमीन छीनी जा रही है, जिनके मकान गिराए जा रहे हैं. आज वकील हसन हमारे साथ हैं, जिनकी पूरी टीम ने टनल में फंसे हुए मजदूरों को बचाने का काम किया था, लेकिन आज देश ऐसा है, सरकार ऐसी है, कि उनको सम्मानित करने की बजाय दिल्ली में उन्हीं के मकान को बुलडोजर से गिरा दिया गया. आज देश में इतना बड़ा जुल्म, इतनी बड़ी नाइंसाफी हो रही है, किसानों के साथ, वकील हसन जैसे मजदूर नेताओं के साथ, या तमाम शहरी मजदूरों के साथ जिनकी झुग्गी-झोपड़ियां गिराई जा रही हैं, उनके मकानों, दुकानों को दंगों में आग लगा दिया जा रहा है, ये सारे सवाल आज हमारे मजदूर आंदोलन के सवाल बन गये हैं.

इसलिए, आप साथियों से अपील करेंगे कि मजदूरों के अपने मुद्दे हैं, अपनी मांगें हैं, लेकिन इस देश में सबसे विशाल हृदय अगर किसी का है, तो मजदूरों का है. सबसे बड़ी जिम्मेदारी किसी पर है तो हिंदुस्तान को चलाने वाले मजदूरों पर है. हम मालिक हैं इस देश के, तो हमें सब के बारे में सोचना होगा, पूरे मुल्क के बारे में सोचना होगा. हिंदुस्तान के मजदूरों को खुद को तैयार करना होगा ताकि अडानी-अंबानी के चंगुल से, ट्रंप और इलोन मस्क के चंगुल से, इस देश को हम बचा सकें, निकाल सकें. बाबासाहेब अंबेडकर जो संविधान देकर गए और संविधान से पहले मजदूरों के अधिकार की लड़ाई भी लड़ते हुए एक-एक करके सारे हक – हड़ताल करने का, आंदोलन करने का, अपना संगठन बनाने का – लेने होंगे. उन्हीं हकों के रास्ते पर हिंदुस्तान का संविधान बना, और संविधान को चाहिए कि हम को मजबूत करे, लेकिन आज संविधान को पूरी तरह से खत्म करने की साजिश हो रही है.

ऐसे दौर में आज आप लोगों का सम्मेलन हो रहा है, इस सम्मेलन से ये एकता का संदेश हो. आज पूरे देश में बड़ी एकता चाहिए – मजदूर संगठनों की एकता, मजदूर और किसान की एकता, मजदूर और छात्र-महिलाओं की एकता, मजदूर और नागरिक की एकता. अगर हम मजदूर हैं तो हम नागरिक भी हैं इस देश के, हम कहते हैं – आठ घंटा काम, आठ घंटा आराम, आठ घंटा इस देश के लिए, लोकतंत्र में भागीदारी के लिए विश्राम. जो आठ घंटा काम करते हैं, मजदूर तो हम हैं, लेकिन इस देश में हम नागरिक भी हैं और इसलिए देश में इस समय जो लोकतंत्र का सवाल, संविधान की रक्षा का सवाल, देश की आजादी, स्वाभिमान, उसकी रक्षा का सवाल जो हमारे सामने है. आज वो समय आ गया है कि अपने ट्रेड यूनियन के मुद्दों के साथ बड़ी लड़ाई का भी हमें हिस्सा बनना है. आजादी के आंदोलन में भी ऐसा ही दौर था, उस समय ट्रेड यूनियन बनने लगी थीं, लेकिन हिंदुस्तान की आजादी के लिए, और आज बिल्कुल दूसरी आजादी देश को चाहिए. संविधान की रक्षा, लोकतंत्र की रक्षा और अपने देश की आजादी और स्वाभिमान की रक्षा – इसकी लड़ाई में हमको जाना होगा.

हमें लगता है कि आपके सामने माहौल बदल रहा है. कानून कुछ भी बन सकते हैं, लेकिन आज मजदूर आंदोलन के लिए जो देश की परिस्थिति है वो खराब नहीं है, बेहतर है. आज से 30-35 साल पहले जब ये न्यू इकोनॉमिक पॉलिसी आई थी, तो इस देश में निजीकरण के नाम पर, भूमंडलीकरण के नाम पर, उदारीकरण के नाम पर भ्रम फैलाया गया. बहुत सारे लोगों को लगने लगा था कि निजीकरण से हिंदुस्तान आगे बढ़ जाएगा, भूमंडलीकरण से हिंदुस्तान आगे बढ़ जाएगा. 1991 में यह पॉलिसी आई थी और तब से आज 2025 तक 35 साल हो गए हैं. 35 साल का अनुभव आप के पास है. 35 सालों ने ये बता दिया है कि निजीकरण इस देश को बर्बाद करने का रास्ता है. आज सिर्फ ट्रेड यूनियन नहीं लड़ रही है निजीकरण के खिलाफ, पूरा हिंदुस्तान अडानी-अंबानी के खिलाफ लड़ रहा है. और मैं समझता हूं कि ये आप के लिए ताकत की बात है कि सब आपकी लड़ाई मिलकर लड़ रहे हैं. हमारे मारुति के साथी, मारुति में जब यूनियन बनाने की लड़ाई शुरू हुई, तब हरियाणा के किसान आपके साथ नहीं खड़े होते. लेकिन आज मैं ये मानता हूं किसान आंदोलन ने किसानों में एक नई चेतना पैदा की है. आज किसान साथी मारुति मजदूरों के साथ खड़े हो जायेंगे, आज हरियाणा के किसान और खाप पंचायत वाले महिला पहलवानों के साथ भी खड़े हो जाते हैं. देश में चेतना का विस्तार हो रहा है, विकास हो रहा है.

आज हमारे देश में नई शिक्षा नीति आई है. ये नई शिक्षा नीति निजीकरण की है, शिक्षा को महंगा बनाने और शिक्षा के अधिकार से मजदूरों को और गरीबों को वंचित रखने के लिए है, ताकि मजदूर का बच्चा पढ़े नहीं, मज़दूरों के घर से कोई आगे ना बढ़े. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था, ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो’ और कोई रास्ता नहीं है आपके सामने. उस रास्ते को रोकने के लिए ये निजीकरण की नीति आई है - नई शिक्षा नीति. जो लगातार ठेकाकरण बढ़ रहा है. रेलवे में, बैंक में जहां पक्की नौकरी होती थी, आज नौजवानों को ठेके पर काम दिया जा रहा है. उसमें भी आप देखेंगे, किसान आपके साथ खड़े हो रहे हैं.

आज बड़ी लड़ाई की संभावना है, जरूरत है. हम आपसे अपील करेंगे कि मजदूरों के अंदर तमाम लोगों को जोड़िए. इस देश में जहां भी जाति के नाम पर उत्पीड़न हो, दलितों पर हमले हों, आदिवासियों पर हमले हों, बिल्कुल खड़े हों उस उत्पीड़न के खिलाफ, उन दलित, आदिवासियों के साथ, तमाम पिछड़ों के साथ. जहां भी इस देश में महिलाओं के ऊपर अत्याचार हो, महिलाओं की कार्यस्थल में सुरक्षा का मुद्दा केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं है, इसको पूरे मजदूर आंदोलन का सेंट्रल इशू बनाइए. इस देश की आधी आबादी जो काम कर रही है, उस के लिए कार्यस्थल असुरक्षित हैं.

पूरे देश के मजदूरों को हिंदू-मुस्लिम में बांटने की जो साजिश है इसके खिलाफ भी, ‘हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा’ का मंत्र है. हम किराएदार नहीं हैं, हम मालिक हैं और हमारे बीच हिंदू-मुस्लिम के विभाजन की कोई जगह नहीं है. आप लोगों का सम्मेलन है, और मैं जानता हूं कि आप लोग, खासकर यूपी, बिहार, बंगाल के साथी कुंभ के कारण बहुत तकलीफ उठाकर इस समय यहां आए हैं. इस देश में लोगों की अपनी-अपनी आस्था है, निश्चित तौर पर जैसे संविधान कहता है कि धार्मिक स्थल की आजादी सब के लिए है. लेकिन आज जो धार्मिक आस्था का कारोबार हो रहा है, व्यापार हो रहा है, जो नफरत की खेती हो रही है. जो देश भर से लोगों को कुंभ में बुलाया गया, जिनके लिए कोई इंतजाम नहीं है, जो जानें गईं, जो स्टैम्पीड हुआ, ये देश के लोग जिनके साथ मजाक हो रहा है, हमें निश्चित तौर पर उनके साथ खड़ा होना पड़ेगा. और धर्म के नाम पर अंधविश्वास फैलाया जाए, धर्म के नाम पर पाखंड हो, तो ऐसे पाखंड के खिलाफ, पूरे देश में ऐसे अंधविश्वास के खिलाफ, लड़ेगा मजदूर आंदोलन. लड़ेगा और आगे बढ़ेगा!

बस अपनी बात को और आगे नहीं बढ़ाना चाहूंगा. आज हमारे पुराने नेता नहीं हैं. कामरेड स्वपन, कामरेड डीपी बक्षी, ऐक्टू के शुरुआती दिनों से, जिन साथियों के नेतृत्व में, जिनके मार्गदर्शन में, जिनकी मेहनत से ये संगठन बना, वो संगठन आज अपना ग्यारहवां सम्मेलन कर रहा है. देश के हर कोने से लोग आए हैं. महिलाओं की संख्या बढ़ी है. आप से यही अपील है कि यह रफ्तार जारी रहे, आगे बढ़े, सब को जोड़िए, हर तबके को जोड़िए. छोटी से छोटी यूनियन, हर असंगठित क्षेत्र में लोगों को जोड़िए, आईटी सेक्टर में कैसे बेरहमी से लोगों को काम से निकाल दिया गया, गुलाम की तरह, मजदूरों की नई पीढ़ी की पीड़ा, ऐक्टू में उसे जोड़िए. जहां भी दमन है, अन्याय है, अत्याचार है, वहीं पर मिल जुल करके आगे बढ़ना है. आपका सम्मेलन एकता का केंद्र बने, संघर्ष का केंद्र बने. आपका सम्मेलन सफल हो. आप सभी साथियों को ये शुभकामनाएं देते हुए अपनी बात खत्म कर रहा हूं.

इंकलाब जिंदाबाद! ऐक्टू जिंदाबाद! मजदूर एकता जिंदाबाद!