पटना का ऐतिहासिक गांधी मैदान एक और इतिहास रच गया. विगत 8 महीनों से विभिन्न आंदोलनकारी ताकतों व सामाजिक समूहों को एक मंच पर लाने की कोशिशों ने रंग दिखाया और 2 मार्च को ‘बदलो बिहार महाजुटान’ का मंच ऐसे ही संगठनों का साझा मंच बन गया. इसने बिहार की बदहाल स्थिति और पिछले 20 वर्षों से जारी भाजपा-जदयू शासन के खिलाफ एक नए बिहार के निर्माण के संघर्ष की आधारशिला रखने का काम किया. बदलो बिहार का एजेंडा अब राज्य की अन्य राजनीतिक पार्टियों का भी एजेंडा बनने लगा है. भाकपा(माले) की यह पहलकदमी चौतरफा चर्चा का विषय बनी. राष्ट्रीय जनता दल भी अब जमीन, बटाईदारी और स्कीम वर्कर्सों के मुद्दे को उठाने लगा है. महाजुटान जनमुद्दों को बिहार की राजनीति का केंद्रीय विषय बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा.
महाजुटान में ग्रामीण गरीबों-महिलाओं-दलितों के साथ-साथ तबकागत संगठनों की शानदार भागीदारी दिखी. इन तबकों में सबसे बड़ी भागीदारी आशा कार्यकर्ताओं की थी जो राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. उनकी प्रमुख मांग यह थी कि महागठबंधन सरकार के दौरान उन्हें जो 2500 रुपए मानदेय देने की घोषणा हुई थी, उसे लागू किया जाए. महाजुटान में जीविका कैडरों की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी. गया की अंजूषा देवी ने अपने संबोधन में कहा कि जीविका के कैडरों ने नीतीश कुमार को सत्ता में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. अगर सरकार ने उनके अधिकारों की अनदेखी की तो वे सत्ता से इस सरकार को बेदखल करने की भी ताकत रखते हैं. महाजुटान में वार विडो एसोसिएशन की ओर से मीता देवी ने अपनी बातें रखीं. उन्होंने शहीदों की विधवाओं के लिए सहूलियतों और सहायता की मांग की. शहीद परिवारों की कठिनाइयों को सामने लाने की कोशिशें की, ताकि उनकी परिस्थितियों में सुधार हो और उन्हें सरकार से सहायता मिले. विद्यालय रसोइयों के संघ की ओर से सरोज चौबे ने रसोइयों की समस्याओं का उठाया. विद्यालयों में बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन बनाने वाली रसोइयों की हालत में सुधार की आवश्यकता पर उन्होंने जोर दिया. उन्होंने बेहतर कार्य परिस्थितियों और सम्मानजनक वेतन की मांग की, ताकि रसोइया अपने काम को अच्छे तरीके से कर सकें.
महाजुटान को उक्त वक्ताओं के अलावा कु. रंजना यादव (बिहार राज्य आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन), राधेश्याम (बिहार प्रोग्रेसिव इलेक्ट्रिकल वर्कर्स यूनियन), इंदुभूषण (बिहार राज्य प्रेरक संघ), प्रमोद सहवाल (आपदा मित्र एसोसिएशन), पवन कुमार (बि.रा. स्वच्छता पर्यवेक्षक एवं कर्मी संघ), जयशंकर (नल-जल पंप आपरेटर, बिहार), डॉ. राकेश (ग्रामीण चिकित्सक संघ, बिहार), प्रेम पासवान (इंडियन रेडक्रास सोसाईटी इम्प. एसोसिएशन), राजेश (डीडीटी छिड़काव कर्मचारी संघ), मुकेश कुमार यादव (बिहार विद्यालय रात्रि प्रहरी संघ), रामभजन सिंह (अ. भा. बाढ़-कटाव-सुखाड़ पीड़ित मोर्चा), नीतीश कुमार (बीपीएससी अभ्यर्थी), राजू वारसी (इदरीशिया दर्जी संगठन), पंकज श्वेताभ (जस्टिस डेमोक्रेटिक फोरम), रिंकू यादव (सामाजिक न्याय आंदोलन), श्यामदेव शर्मा (लोहार संघर्ष मोर्चा), जीतेन्द्र यादव (बागमती बचाओ संघर्ष मोर्चा), सूरज कुमार सिंह (सहारा भुगतान संघर्ष मोर्चा), अशोक कुमार सिंह (अध्यक्ष, एक्स सर्विस मैन कॉआर्डिनेशन कमिटी), वंदना प्रभा (सोशल वर्कर), बालेश्वर यादव (उत्तरी कोयल परियोजना), वीरेन्द्र प्रसाद गुप्ता (विधायक, बेतिया राज भूमि अधिकार संघर्ष मोर्चा), महानंद सिंह (विधायक, सोन नहर बचाओ-जीवन बचाओ), उमेश सिंह (अखिल भारतीय किसान महासभा), शत्रुघ्न सहनी (अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा), अमरजीत कुशवाहा (विधायक व नेता अखिल भारतीय किसान महासभा), मनोज मंजिल (पूर्व विधायक, अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा), अनीता सिन्हा (ऐपवा), सबीर कुमार (आइसा), आफताब आलम (आरवाईए), रामबली प्रसाद (बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ-गोप गुट), का. क्यामुद्दीन अंसारी (इंसाफ मंच), डॉ. कमलेश शर्मा (एआइपीएफ), एड. मंजू शर्मा (आइलाज), चिंटू कुमारी (बीपूटा), नंदकिशोर महतो (आदिवासी संघर्ष मोर्चा) आदि ने संबोधित किया. गांधी मैदान विभिन्न आंदोलनों और संगठनों के झंडों, पोस्टरों और बैनरों से सजा हुआ था. गर्मी थोड़ी अधिक थी, फिर भी लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं थी.
महाजुटान का कार्यक्रम सुबह 11 बजे से शुरू हुआ. अध्यक्ष मंडल में महबूब आलम (नेता, विधायक दल, माले), सत्येदव राम (उपनेता, विधायक दल, माले), मंजू प्रकाश (पूर्व अध्यक्ष, बिहार राज्य महिला आयोग), नेयाज अहमद (इंसाफ मंच), सोहिला गुप्ता (राज्य अध्यक्ष ऐपवा), श्यामलाल प्रसाद (सम्मानित अध्यक्ष, स्थानीय निकाय कर्मचारी संगठन), रामबली प्रसाद (नेता, अरापत्रित कर्मचारी महासंघ, गोपगुट), कविता कुमारी (कोषाध्यक्ष, आशा कार्यकर्ता संघ), विभा भारती (अध्यक्ष, बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ), रंजना यादव (अध्यक्ष, बिहार राज्य आंगनबाड़ी वर्कर्स यूनियन) और अशर्फी सदा (मुसहर सेवा समिति) आदि शामिल थे. कार्यक्रम का संचालन विधायक संदीप सौरभ, विधान पार्षद शशि यादव, और ऐक्टू नेता रणविजय कुमार ने संयुक्त रूप से किया. शहीद वेदी पर माल्यार्पण व शोक श्रद्धांजलि के साथ कार्यक्रम आगे बढ़ा. युवा विधायक अजीत सिंह कुशवाहा ने महाजुटान के प्रस्तावों को पढ़ा जो कजोरदार नारों के साथ पारित हुआ.
इसके बाद का. शशि यादव, का. समता राय, का. रामबलि सिंह यादव और का. रणविजय कुमार द्वारा जनता के संकल्प पत्र का पाठ किया गया. राज्य सचिव कुणाल ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया और महाजुटान के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को विस्तार से रखा. मंच पर गोपाल रविदास, सुदामा प्रसाद, मीना तिवारी, राजाराम सिंह, अमर, धीरेन्द्र झा, निरसा (झारखंड) के विधायक अरूप चटर्जी, बगोदर के पूर्व विधायक विनोद सिंह, यूपी और झारखंड के राज्य सचिव सुधाकर यादव और जनार्दन प्रसाद, कार्तिक पाल, पार्टी के वरिष्ठ नेता स्वदेश भट्टाचार्य, केडी यादव, रामेश्वर प्रसाद, प्रभात कुमार चौधरी, संतोष सहर आदि भी उपस्थित थे.
‘बदलो बिहार महाजुटान’ को संबोधित करते हुए भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा –
राज्य में गरीब, किसान, मजदूर, दलित, आदिवासी, महिलाएं, मुस्लिम, फुटपाथी दुकानदार जैसे कमजोर समुदायों की पीड़ा दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. अब समय आ गया है कि इस पीड़ा को एक ताकत में बदल दिया जाए. जो लोग अलग-अलग मुद्दों पर संघर्ष करते रहे हैं, उन्हें एक मंच पर लाने का अवसर आज मिला है. ये सभी मुद्दे एक ही दिशा में संगठित हो रहे हैं, और गांधी मैदान से बिहार में बदलाव का संकल्प दिख रहा है.
एक हालिया सर्वे में पाया गया कि 50 प्रतिशत लोगों का मानना है कि बिहार सरकार पूरी तरह से विफल हो चुकी है और उसका समय अब खत्म हो चुका है. वहीं, 25 प्रतिशत लोग मानते हैं कि सरकार बेकार है, लेकिन अभी तक बदलाव की सोच नहीं बनी है. अगर 75 प्रतिशत लोग ऐसा मानते हैं, तो भाजपा को अपने ख्याली सपनों में जीने दिया जाए, बिहार झारखंड का रास्ता अपनाएगा और भाजपा की राह रोकेगा. 2020 में जहां गाड़ी रुकी थी, वहीं से आगे बढ़ेगी. नीतीश कुमार के जाने बाद भी 2024 में हमने लोकसभा की कई सीटों पर जीत दर्ज की. यह साबित करता है कि बिहार का बदलाव अब तय है.
विभिन्न आंदोलनकारी ताकतों की एकता की यह शुरूआत बिहार में बदलाव की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है. किसान दिल्ली में एकजुट हुए और मोदी सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया. ठीक वैसे ही, बिहार के मजदूर-किसान भी यदि चाह लें तो चार लेबर कोड वापस करवा सकते हैं. पुरानी पेंशन स्कीम लागू हो सकती है.
यह साल चुनाव का साल है. भाजपा एक साजिश रचने वाली पार्टी बन चुकी है. गिरिराज सिंह की सीमांचल यात्रा के जरिए सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश की गई. हमें ध्यान भटकाने वाली कार्रवाइयों के प्रति सचेते रहना है लेकिन अपने अपने मुद्दों पर ही आगे बढ़ते रहना है.
बिहार के नौजवानों को पलायन से बचाने के लिए, स्थानीय स्तर पर रोजगार की आवश्यकता है. झारखंड में जहां 200 यूनिट बिजली मुफ्त मिल रही है, तो बिहार में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? मोदी जी ने कहा था कि अमृत काल में सबको पक्का मकान मिल जाएंगे. कहां कितना पक्का मकान बना? जो बना था उसे ढाह दिया जा रहा है. स्मार्ट मीटर लाया जा रहा है. महिलाओं-वृद्धों को झारखंड में 2500 रु. मिल सकते हैं तो क्या बिहार में क्यों नहीं मिल सकते? इन्हीं एजेंडों पर बिहार का चुनाव होगा, यहां से तय करके हम सभी को जाना है.
चुनाव आया है, तो जातियां की रैलियां हो रही हैं. सबके अपने-अपने सवाल हैं. जाति प्रथा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल उत्पीड़न के लिए हुआ है. बाबा साहेब ने कहा था कि इस पूरी प्रथा को खत्म कर देना होगा. हम बाबा साहेब के उस सपने के साथ हैं. लेकिन उसके उन्मूलन में अभी समय लगेगा. जाति के आधार पर एक ही अधिकार मिला हुआ था - आरक्षण का. वह आरक्षण का अधिकार अब खतरे में है. संविधान खतरे में है. यदि सरकारी नौकरी व शिक्षा नहीं मिलेगी तो आरक्षण कहां रह जाएगा? कुछ लोग आरक्षण के नाम पर भी बांटने का काम कर रहे हैं. बिहार में जाति आधारित गणना के बाद पूरे देश में जाति गणना की मांग उठी. सभी दलों ने मांग उठाई कि 65 प्रतिशत आरक्षण का विस्तार हो. विधानसभा से पारित भी हो गया लेकिन वह मामला अभी कानूनी पेंच में फंस गया है. यदि भाजपा व जदयू दोनों सहमत हैं तो संसद से भी प्रस्ताव पारित कर दीजिए, संविधान की 9 वीं अनुसूची में डाल दीजिए, मामला हल हो जाएगा, लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे. इसलिए 65 प्रतिशत आरक्षण के लिए लड़ो. इसमें दलितों का आरक्षण बढ़ेगा. वह बढ़कर 20 प्रतिशत होगा. बिहार में कई जिलों में आदिवासी समुदाय हैं. उनका प्रतिशत भी 2 होगा. अतिपिछड़ी जातियों का नीतीश जी खूब नाम लेते हैं. लेकिन उनका आरक्षण नहीं बढ़ा रहे. कर्पूरी जी को भारत रत्न देकर कहते हैं कि सबकुछ हो गया. आपने कुछ नहीं किया. आप आरक्षण खत्म कर रहे हैं. लैटरल इंट्री हो रही है. एक साथ मिलकर लड़िए कि डबल इंजन का धोखा मंजूर नहीं है.
नीतीश जी कहते थे कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलेगा. क्या हुआ? अब कह रहे हैं कि विशेष राज्य का दर्जा नहीं विशेष पैकेज मिलेगा. विशेष पैकेज के नाम पर विशेष धोखा मिला – डबल इंजन का डबल धोखा. यदि महागरीब परिवारों को 2 लाख रु. नहीं मिल रहे तो कौन सा विशेष पैकेज है? एक भी कॉलेज नहीं खुला, स्कूल बंद हो रहे हैं. आशा, ग्रामीण चिकित्सक जिनके आधार पर स्वास्थ्य व्यव्स्था चल रही है, उनके लिए कुछ नहीं किया गया. तो क्या कुछ हवाई अड्डे बन जाने को विशेष पैकेज कहा जाएगा? रोजगार सुरक्षित नहीं है, कोई सम्मान नहीं, कोई जीने लायक वेतन नहीं. सरकार ने खुद तय किया था कि न्यूनतम मजदूरी दी जाएगी लेकिन किसी को भी यह नहीं मिल रहा. किसी की एमएसपी पर फसल की खरीद नहीं होती. रसोइयों को महज 1650 रु. मिलते हैं. यदि न्यूनतम वेज नहीं मिलेगा, न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा तो कौन सा विशेष पैकेज होगा?
20 साल का समय कम समय नहीं है. बार-बार लोगों ने मौका दिया है. नीतीश जी का मतलब अब भाजपा है. बाएं-दाए, उपर-नीचे सब जगह भाजपा ही भाजपा है जो बिहार की सत्ता काबिज करके पुलिस तथा सामंती उत्पीड़न का राज लाना चाहती है. दलितों का उत्पीड़न करो, महिलाओं को घरों में रोक दो, मॉब लिंचिंग को नियम बना दो - भाजपा यही चाहती है. वह बिहार को उत्पीड़न व दमन का प्रयोगशाला बनाना चाहती है. लेकिन हम भाजपा की साजिश को कामयाब नहीं होने देंगे. बिहार आगे बढ़ेगा और वह बदलेगा.
1. दो दशकों से बिहार की सत्ता पर काबिज एनडीए की सरकार वास्तव में डबल बुलडोजर, विश्वासघात और अन्याय की सरकार साबित हुई है. जनता की बुनियादी जरूरतें बहुत पीछे छूट गई हैं और बिहार सस्ता श्रम सप्लाई का जोन बनकर रह गया है. इस बदहाल स्थिति के खिलाफ आज बिहार में चौतरफा बदलाव की आवाज गूंज रही है.
करीब 95 लाख गरीब परिवारों को 2 लाख रुपये सहायता राशि, 5 डिसमिल जमीन व 2022 तक स्वच्छ पेयजल व बिजली युक्त पक्का मकान देने के सवाल से शुरू होकर ‘बदलो बिहार न्याय यात्रा’ और प्रमंडलीय समागमों के जरिए स्कीम वर्कर्स, मजदूर-किसानों, छात्र-युवाओं, आदिवासियों व अन्य आंदोलनकारी समूहों-संगठनों की बीच व्यापक एकता का निर्माण करते हुए तथा उन्हीं के बीच हुए गहन विचार मंथन की प्रक्रिया के उपरांत सभी आंदोलनकारी ताकतों को एक मंच पर लाने की कार्ययोजना आज फलीभूत हो रही है. जनता की आज की विधानसभा से हम भाजपा-जदयू सरकार को खारिज करते हुए ऐतिहासिक गांधी मैदान से बिहार में बदलाव का बिगुल फूंकने तथा जनमुद्दों को आगामी बिहार विधानसभा चुनाव का मुद्दा बना देने का संकल्प लेते हैं.
2. 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम से लेकर रजवार विद्रोह, जमींदारी राज के खिलाफ जुझारू किसान आंदोलन, त्रिवेणी संघ आंदोलन, समाजवादी और कम्युनिस्ट आंदोलनों की इस धरती से बदलाव की जो आवाज उठी है, वह पूरे देश को एक नई दिशा देगी. जब-जब देश में संकट आया है, बिहार संघर्ष के अग्रिम मोर्चे पर खड़ा रहा है. यह महाजुटान फासीवादी भाजपा द्वारा बिहार को पीछे धकेलने, बिहार की सत्ता हड़पने और यूपी की तरह बिहार को सांप्रदायिक हिंसा की आग में झोंकने की हर साजिश का मुंहतोड़ जवाब देने का आह्वान करता है. हम उसे नाकाम बनाते हुए बिहार की ऐतिहासिक विरासत पर खड़े होकर बिहार को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं.
3. यह महाजुटान संविधान की प्रस्तावना से भाजपा-आरएसएस द्वारा पंथनिरपेक्षता और समाजवाद को हटाकर मनुस्मृति को देश का विधान बनाने की साजिशों का पुरजोर विरोध करता है. संविधान के 75वें वर्ष में अमित शाह द्वारा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का उपहास उड़ाना और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा राम मंदिर स्थापना को असली आजादी का प्रतीक बताना यह दर्शाता है कि भाजपा-आरएसएस की कोशिश देश के धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी मूल्यों को नष्ट करने की है. हम आज संकल्प लेते हैं कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान की रक्षा करेंगे और उसके मूल्यों के आधार पर एक समतामूलक समाज बनाने के लिए संघर्ष जारी रखेंगे, जहां हर व्यक्ति को सम्मान, अधिकार और समान अवसर की गारंटी हो सकेगी.
4. अमेरिका द्वारा प्रवासी भारतीयों के साथ की गई क्रूरता और उस पर मोदी सरकार की चुप्पी देश के आर्थिक हित, स्वाभिमान और संप्रभुता पर एक गहरा आघात है. प्रवासी भारतीयों को जिस तरह से अपमानित और प्रताड़ित किया गया, वह न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह भारत की विदेश नीति और देश की प्रतिष्ठा के लिए गंभीर चिंता का विषय है. अमेरिका के समक्ष मोदी सरकार की इस घुटनाटेक नीति ने पूरे देश का मान गिराया है. हम भारत सरकार की इस चुप्पी की कड़ी निंदा करते हैं और मांग करते हैं कि वह अमेरिका से सभी प्रवासी भारतीयों की सम्मानजनक वापसी सुनिश्चित करे. यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी भारतीय नागरिक के साथ किसी भी विदेशी भूमि पर किसी भी प्रकार का अपमानजनक या अन्यायपूर्ण व्यवहार न हो.
5. बिहार में सत्ता संरक्षित सामंती-अपराधियों द्वारा दलित-महिलाओं पर हिंसा, बीपीएसएसी अभ्यर्थियों से लेकर मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रहे नागरिकों पर बर्बर पुलिसिया दमन, राज्य प्रायोजित हिंसा, बेलगाम अफसरशाही और संस्थागत भ्रष्टाचार के खिलाफ महाजुटान न्यायपूर्ण नए बिहार के निर्माण के लिए संघर्ष की सभी ताकतों के बीच और भी व्यापक एकता बनाने तथा आगामी चुनाव में बिहार में सरकार को बदल देने का आह्वान करता है.
महाजुटान ने बिहार में आजादी आंदोलन की महान विरासत को याद करते हुए तिलका मांझी, सिधू-कान्हू, बिरसा मुंडा, रजवार विद्रोह, बाबू कुँवर सिंह-पीर अली सहित 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सभी शहीदों, 1942 के जन विप्लव के योद्धाओं, किसान आंदोलन के संस्थापक नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती, त्रिवेणी संघ आंदोलन के नेताओं और आजादी के बाद उस संघर्ष को बढ़ाने वाले नक्षत्र मालाकार, फणीश्वरनाथ रेणु, जयप्रकाश नारायण, मधु लिमये, तकी रहीम, कर्पूरी ठाकुर, अजित सरकार, जगदेव प्रसाद जैसे महान नेताओं के साथ-साथ नए बिहार के निर्माण के संघर्ष के सभी योद्धाओ और शहीदों को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी. 1970 के दशक में बिहार के ग्रामांचलों में शुरू हुए भूमिहीन-गरीब किसानों के महान उभार के नेताओं - का. जगदीश प्रसाद, का. रामेश्वर यादव, का. रामनरेश राम, का. शाह चांद, का. गंभीरा साह, का. विरद मांझी, का. बूटन मुसहर, का. शीला, का. अग्नि, का. लहरी, का. वीरेन्द्र विद्रोही, का. राजेश्वर महतो, का. सफायत अंसारी, का. उमेश पासवान, का. मनु कुशवाहा, का. योगेन्द्र बिंद, का. बालेश्वर मांझी, का. भैयाराम यादव, का. मोतीचंद राम, का. शिवदानी यादव, का. मंजू देवी, का. चंद्रशेखर, का. श्यामनारायण यादव और कर्मचारी आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले नेता का. योगेश्वर गोप व टेसलाल वर्मा, जगदेव प्रसाद महतो सहित तमाम नेताओं तथा बर्बर जनसंहारों के शिकार हुए दलित-गरीबों, महिलाओं और शहीदों को भी याद किया गया.
महाजुटान में विगत दो वर्षों से इजराइल द्वारा गाजापट्टी में रचाए जा रहे बर्बर जनसंहार में शिकार हुए मासूम बच्चों, महिलाओं और आम नागरिकों, यूक्रेन तथा दुनिया के किसी भी हिस्से में युद्ध की वीभिष्का के शिकार हुए लोगों को श्रद्धांजलि दी गई. साथ ही, देश में बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा, मॉब लिंचिंग और फर्जी मुठभेड़ में मारे गए निर्दाष नागरिकों को भी श्रद्धांजलि दी गई. उन किसानों को भी श्रद्धांजलि अर्पित की गई जिन्होंने कॉरपोरेट ताकतों के खिलाफ संघर्ष में अपनी जान गंवाई. उनका बलिदान याद दिलाता है कि सत्ता और कॉरपोरेट ताकतों के खिलाफ बदलाव के संघर्ष को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाना है. बिहार में हाल के दिनों में सत्ता के संरक्षण में दलितों, आदिवासियों और गरीबों पर हिंसा की घटनाओं के शिकार हुए लोगों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की गई, जिन्हें बर्बर यौन हिंसा का सामना करना पड़ा और हत्या की शिकार हुईं. हाल ही में बनारस में बलात्कार और हत्या की शिकार हुई स्नेहा कुशवाहा को भी श्रद्धांजलि दी गई.