बिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्रा में भाकपा-माले विधायक दल ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024, स्मार्ट मीटर और बदलो बिहार न्याय यात्रा के दौरान जनता के बीच से आए सवालों पर सरकार को घेरने की सफल नीति बनाई. 25 नवंबर को सत्र की शुरूआत हुई. उस दिन माले विधायकों ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक, 2024 के खिलाफ बिहार विधानमंडल से प्रस्ताव पारित करने की मांग पर सतमूर्ति से प्रदर्शन किया. अखबारों में इसे खास तवज्जो मिली. बाद में इंडिया गठबंधन के घटक दलों ने एकताबद्ध होकर कार्यस्थगन प्रस्ताव के जरिए सदन के अंदर सरकार को घेरने की संयुक्त नीति बनाई.
26 नवंबर को बिहार में सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर दलितों-वंचितों के बढ़े 65 प्रतिशत आरक्षण को संविधान की 9 वीं अनुसूची में शामिल करने का मुद्दा फिर से उठा. सरकार यह कहकर भागती नजर आई कि हाईकोर्ट द्वारा रद्द कर दिए जाने के कारण अभी यह कानून अपने अस्तित्व में नहीं है इसलिए 9 वीं अनुसूची में शामिल करने की अनुशंसा नहीं की जा सकती. सरकार के इस भ्रामक वक्तव्य के खिलाफ भाकपा-माले और विपक्ष के सारे विधायक वेल में उतर आए. उनका कहना था कि जब बिहार में डबल इंजन की सरकार है तो भाजपा संसद से इस आशय का प्रस्ताव क्यों नहीं लेती, केंद्र सरकार कोई अध्यादेश क्यों नहीं लाती? ऐसे तो हर मामले में वह अध्यादेश लेकर तैयार बैठी रहती है. विपक्ष के विधायकों ने यह भी कहा कि दरअसल भाजपा चाहती ही नहीं है कि आरक्षण का दायरा बढ़कर 65 प्रतिशत हो. भारी शोर-शराबे के कारण सदन स्थगित कर दिया गया.
अगले दिन भाकपा-माले विधायक दल के नेता महबूब आलम की पहल पर वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक, 2024 के खिलाफ बिहार विधानमंडल से प्रस्ताव लाने का कार्यस्थगन दिया. आमतौर पर कार्यस्थगन प्रस्ताव पढ़ डालने की अनुमति देने वाले विधानसभा अध्यक्ष ने इसे पढ़ने तक की अनुमति नहीं दी. इसके कारण विपक्ष के सारे विधायक एक बार फिर से आक्रोशित हो उठे और जोरदार हंगामा करने लगे. कार्यस्थगन प्रस्ताव पर जदयू पूरी तरह बेनकाब हो गई. ललन सिंह के मुस्लिम विरोधी बयानों से पहले से ही सवालों में घिरे नीतीश कुमार ने पूरी तरह बेनकाब नजर आए.
महबूब आलम ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष भाजपा और आरएसएस के इशारे पर सदन चलाना चाहते हैं और संविधान द्वारा प्रदत्त मुस्लिम समुदाय को हासिल अधिकारों पर हमले वाले संशोधान पर चर्चा तक नहीं कराना चाहते. केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक, 2024 स्पष्ट रूप से पूर्वाग्रह से ग्रसित है और मुस्लिम समुदाय की धार्मिक आजादी व विश्वास के अधिकार पर एक गंभीर हमला है. सच्चर समिति की 2006 की रिपोर्ट ने वक्फ को कल्याणकारी गतिविधियों में शामिल एक सामाजिक-धार्मिक संस्था के रूप में मान्यता दी थी. उसने बोर्ड को आवश्यक वित्तीय और कानूनी ताकत देने और उसके प्रशासनिक ढांचे को मजबूत बनाने की अनुशंसा की थी. 2013 में व्यापक स्तर पर विचार-विमर्श करके वक्फ अधिनियम के प्रभावी संशोधनों को मजबूत बनाने की बात कही गई थी. इसके विपरीत, प्रस्तावित विधेयक हिंदुत्व की राजनीतिक विचारधारा को थोपने का प्रयास है. यह वक्फ बोर्ड की भूमिका, उसके अधिकार और उसकी शक्तियों में बुनियादी रूप से बदलाव कर देगा. उन्होंने कहा कि भाकपा-माले दृढ़ता से महसूस करती है कि संशोधन विधेयक 2024 वापस लिया जाना चाहिए और सच्चर समिति की इच्छानुसार वक्फ संपत्तियों के प्रशासन को मजबूत और बेहतर बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए.
स्मार्ट मीटर के सवाल पर भी सरकार पूरी तरह घिर गई. माले विधायक दल और इंडिया गठबंधन के विधायकों ने संयुक्त रूप से पोर्टिको से लेकर सदन के अंदर प्रदर्शन किया. माले की एक मात्र एमएलसी शशि यादव ने विपक्ष के विधायकों के साथ मिलकर विधानपरिषद् में सरकार का घेराव किया. इन मुद्दों के साथ-साथ सभी गरीब परिवारों के लिए 2 लाख रु. सहायता राशि उपलब्ध कराने हेतु पोर्टल तत्काल चालू करने, 5 डिसमिल आवासीय जमीन देने, जबरन भू अधिग्रहण पर रोक लगाने, एमएसपी पर सभी फसलों की खरीद की गारंटी करने, झारखंड की तर्ज पर वृद्धा-दिव्यांग-विधवा पेंशन 3000 रु. करने व 200 यूनिट फ्री बिजली देने, दलित-गरीबों पर जारी हिंसा व बुलडोजर पर रोक लगाने आदि सवालों पर भी प्रदर्शन किए गए. सत्र के दौरान ही 26 नवंबर को जीविका कार्यकर्ताओं और 28 नवंबर को ऐपवा के बैनर से माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की तबाही झेल रहे सेल्फ ग्रुप समूह की महिलाओं का भी विधानसभा के समक्ष प्रदर्शन था. उनकी मांगों को भी जोरदार तरीके से सदन के अंदर उठाया गया.
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सरकार द्वारा पेश अनुपूरक बजट पर बहस के दौरान विधानसभा के अंदर समाज कल्याण विभाग पर चर्चा हुई. भाकपा-माले की ओर से विधायक संदीप सौरभ ने इसमें हिस्सा लिया. उन्होंने कहा कि समाज कल्याण विभाग एक विस्तृत विभाग है जिसमें दलित-भूमिहीनों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों यानी सबके कल्याण की बात होती है. लेकिन सरकार के दावे जो फाइलों में दिखाए जा रहे हैं और जो जमीनी हकीकत है, उसे अदम गांडवी के एक शेर से अच्छे से समझा जा सकता है – जो उलझ कर रही गई है फाइलों के जाल में, गांव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में! सकरार ने इसी सदन के अंदर घोषणा की थी कि 94 लाख महागरीब परिवारों को रोजगार के लिए 2 लाख रु. सहायता राशि दी जाएगी. लेकिन एक साल बीत जाने के बावजूद महज 40 हजार लोगों को पहली किश्त मिली है. जिस गति से पैसा मिल रहा है सभी को पैसा देने में कम से कम 234 साल लगेंगे. यह है सरकार की स्थिति. इसलिए हम मांग करेंगे कि यदि सरकार ने गरीब परिवारों की सूची बनाई है तो सभी को एकमुश्त पैसा दे अथवा इस सदन के अंदर माफी मांगे. सरकार ने भूमिहीनों को 5 डिसमिल आवासीय जमीन देने की भी बात की थी. जमीन क्या मिलेगी उलटे बेदखली की तलवार चल रही है. इसलिए हम मांग करते हैं कि जो जहां बसे हैं उसका मालिकाना हक दो. 2017-18 के बाद एक भी गरीब का नाम आवास की योजना में शामिल नहीं हुआ है. दिल्ली सरकार ने पोर्टल बंद कर रखा है. सरकार केवल प्रचार करती है आवास नहीं देती. उन्होंने सरकार पर तंज किया – वादा किया है तो निभाना पड़ेगा वरना गद्दी छोड़कर जाना होगा. आगे कहा कि झारखंड में वृद्ध-दिव्यांग-विधवा पेंशन 1000 रु. है. मइया सम्मान योजना के तहत 2500 रु. मिलता है. लेकिन बिहार में क्या है – महज 400 रु? यह जुमलेबाजी नहीं चलेगी. हम इस पेंशन को 3000 रु. बढ़ाने की मांग करते हैं.
गरीबी बढ़ाने का एक नया तरीका आया है – स्मार्ट मीटर. एक तो गरीबी व बेरोजगारी की मार – ऊपर से स्मार्ट मीटर की तलवार. हजार रु. गैस का, हजार रु. बिजली बिल का – गरीबों के लिए यही है डबल इंजन की सरकार! यह लूटेरी प्रथा समाप्त होनी चाहिए. पंजाब, झारखंड की तर्ज पर 200 यूनिट फ्री बिजली मिले. उन्होंने एससी-एसटी प्रोन्नति मामला भी उठाया. कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. लेकिन इस बीच बिहार सरकार ने गजट लाकर कहा है कि एससी-एसटी के लिए जो 17 प्रतिशत सीटें रिजर्व हैं, उसे छोड़कर अन्य सारे पदों पर प्रोन्नति होगी. सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद बदला जा सकता है. यह केवल एससी-एसटी के लिए क्यों है? इस समुदाय के लोगों को उच्चतर पदों पर प्रोन्नति क्यों नहीं हो रही है?
उन्होंने यह भी कहा कि जिस समाज में नफरत व विभाजन रहेगा उसका कल्याण नहीं हो सकता. एक खास तरह की प्रवृत्ति चल रही है. मस्जिदों की खुदाई करिए तो मंदिर मिल जा रहा है. यदि ऐसे खुदाई करेंगे तो इस देश में हर जगह बुद्ध की मूर्तियां निकलेंगी, तो इस देश को बौद्ध देश घोषित कर दो. विधानसभा के भवन के नीचे भी कुछ न कुछ मिल जाएगा. इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने की जरूरत है. उन्होंने वक्फ बोर्ड संशोधन 2024, ओबीसी छात्रों के एनसीएल के मुद्दे सहित विश्वविद्यालय और जनता के अन्य सवालों को भी जोरदार तरीके से उठाया.