नवंबर की महत्वपूर्ण चुनावी लड़ाई

battle-of-novemberहरियाणा में लगातार तीसरी बार अप्रत्याशित जीत से उत्साहित संघ ब्रिगेड महाराष्ट्र में सत्ता बरकरार रखने और झारखंड पर कब्जा करने के लिए पूरी ताकत का इस्तेमाल कर रही है. भाजपा का हर विधानसभा चुनाव में पसंदीदा नारा ‘विकास’ के लिए ‘डबल इंजन’ सरकार को सुनिश्चित करना है, लेकिन पार्टी भली-भांति जानती है कि यह संदेश अब अपनी अपील खोता जा रहा है.

उत्तरी गाजा में अंतहीन अत्याचार

- डॉ. शहद अबूसलामा

[ डॉ. शहद अबूसलामा, गाजा के जबालिया शरणार्थी शिविर से ताल्लुक रखने वाली एक फिलिस्तीनी विद्वान, कार्यकर्ता और कलाकार हैं. उन्होंने हाल ही में शेफील्ड हल्लम यूनिवर्सिटी के खिलाफ एक ऐतिहासिक मुकदमा जीतकर इतिहास रच दिया है. इस यूनिवर्सिटी ने फिलिस्तीनी आवाज उठाने के लिए डॉ. अबूसलामा को आईएचआरए की विवादास्पद एंटीसेमिटिज्म परिभाषा के आधार पर निलंबित कर दिया था.

उत्तरकाशी मस्जिद प्रकरण : इरादा क्या है मुख्यमंत्री जी?

- इन्द्रेश मैखुरी

लगता है कि उत्तरकाशी की मस्जिद और उसके बहाने सांप्रदायिक बवाल करने की कोशिश करने वालों के पक्ष में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुल कर उतर आए हैं.

‘फिलिस्तीन के बच्चों के लिए’ : कवि जसिंता केरकेट्टा ने अमेरिकी संस्था से जुड़ा पुरस्कार ठुकराया

आदिवासी कार्यकर्ता और लेखक-कवि जसिंता केरकेट्टा ने इजरायल द्वारा फिलिस्तीन के खिलाफ छेड़े गए युद्ध के पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) और रूम टू रीड इंडिया ट्रस्ट द्वारा संयुक्त रूप से दिए जाने वाले पुरस्कार को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है.

ठगी की चाल, कूट चरित्र और भ्रष्ट चेहरा ही भाजपा नेताओं की पहचान

नैनीताल दुग्ध संघ के अध्यक्ष रहे भाजपा नेता मुकेश बोरा लगभग 23 दिनों से पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं. गौरतलब है कि मुकेश बोरा के खिलाफ दुग्ध संघ में आउटसोर्सिंग से नियुक्त दैनिक वेतन भोगी महिला कर्मचारी ने बलात्कार, जान से मारने और अश्लील वीडियो बनाने के आरोप लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. 1 सितंबर को आरोपी मुकेश बोरा के खिलाफ काफी दबाव के बाद रिपोर्ट दर्ज हो सकी थी. इससे पहले पीड़िता के प्रार्थना पत्र की रिसीविंग देने में भी दो कोतवालियों की पुलिस, पीड़िता को इधर से उधर दौड़ाती रही.

लोगों की जान लीलती माइक्रो फाइनेंस कम्पनियां

- कुमार दिव्यम

सितंबर 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के माध्यम से पता चला कि बिहार माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से कर्ज लेने में सबसे आगे है. बिहार में लोग छोटे कर्ज धड़ल्ले से ले रहे हैं. खासकर ग्रामीण इलाकों में छोटे कर्ज लेने का प्रचलन चल रहा है. ज्यादातर कर्ज 10 हजार रूपये से ले कर 50 हजार रूपये तक के होते हैं. यह कर्जा खासकर गरीब तबकों से आने वाले लोग छोटे-मोटे धंधे के लिए ले रहे हैं. शादी-ब्याह के लिए भी कई लोग माइक्रो फाइनेंस कम्पनियों से लोन ले रहे हैं.