चार साल पहले चुनावी हार और तख्तापलट की असफल कोशिश के बाद, डोनाल्ड ट्रम्प ने अब अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में पिछले दो दशकों की सबसे बड़ी रिपब्लिकन जीत के साथ नाटकीय वापसी की है. वे लोकमत से जीतने वाले पहले रिपब्लिकन राष्ट्रपति भी बन गए हैं. सीनेट और कांग्रेस पर रिपब्लिकन पार्टी का नियंत्रण होने सेए ट्रम्प 2.0 ट्रम्प 1.0 की तुलना में कहीं अधिक मजबूत स्थिति में होंगे और उन्हें अपने उग्र नस्लवादी और साम्राज्यवादी दक्षिणपंथी एजेंडे को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाने का अवसर मिलेगा.
जहां तक डेमोक्रेटिक पार्टी का सवाल है, यह परिणाम उनके इतिहास की सबसे बुरी चुनावी पराजयों में से एक है. ट्रम्प के साथ लगातार तीन मुकाबलों में यह डेमोक्रेटिक पार्टी की दूसरी और अधिक निर्णायक और व्यापक हार है. अब अमेरिकी जनता को ट्रम्प के इस नए कार्यकाल के गंभीर खतरों का सामना करने के लिए, डेमोक्रेटिक पार्टी की सीमित और घटती क्षमता से परे एक प्रभावी समाधान खोजना होगा.
अगर 2020 में ट्रम्प की महामारी के दौरान की गई गलतियों ने उनकी मामूली हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, तो इस बार डेमोक्रेटिक पार्टी की असफलता का मुख्य कारण बाइडन-हैरिस प्रशासन का निराशाजनक आर्थिक प्रदर्शन है. महामारी के बाद आर्थिक सुधार के आंकड़ों का असर आम अमेरिकी कामकाजी लोगों तक कम पड़ा हैं, जो लगातार बढ़ती महंगाई और घटती आय के चलते संघर्ष कर रहे हैं. इसके साथ ही, समाज में बढ़ती गरीबी, बेघर होने की समस्या, और गहरी सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा का सामना कर रहे लोग भी हैं. आत्मसंतुष्ट डेमोक्रेटिक पार्टी ने कामकाजी लोगों की चिंताओं और आक्रोश को नजरअंदाज कर दिया, जबकि ट्रम्प ने इस असुरक्षा को अवैध आप्रवासन के मुद्दे के माध्यम से चुनावी मंच पर और भड़का कर लोगों को प्रभावित किया. इसका नतीजा अब पूरी दुनिया के सामने है. अमेरिकी जनता, जिसने ट्रम्प के पहले कार्यकाल का कड़वा अनुभव पहले ही झेल लिया था, अब ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के एक और बड़े संकट का सामना करने के लिए मजबूर है.
ट्रम्प का मुख्य एजेंडा अवैध प्रवासियों के बड़े पैमाने पर निर्वासन का वादा है. वे इसके लिए पुलिस बल का व्यापक उपयोग करना चाहते हैं और 1798 के पुराने एलियन एनिमीज एक्ट जैसे सख्त कानून लागू करने का इरादा रखते हैं, जिनसे लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं. हालांकि, इतनी बड़ी निर्वासन योजना को लागू करने में अमेरिकी संघीय प्रणाली के कारण कई चुनौतियां आ सकती हैं. इसके बावजूद, ऐसे कदमों से फैली जेनोफोबिया (विदेशियों के प्रति नफरत), नस्लवाद और इस्लामोफोबिया (मुस्लिम विरोधी भावनाएं) के कारण अश्वेत, मुस्लिमए विविध जातीय समूहों के लोग और आम तौर पर प्रवासी लोग श्वेत वर्चस्ववादी हिंसा और नफरत का अधिक शिकार बन सकते हैं.
इसके अलावाए ट्रम्प की जीत – पहले 2016 में हिलेरी क्लिंटन और अब आठ साल बाद कमला हैरिस के खिलाफ – अमेरिकी राजनीति में गहराई से फैले पितृसत्तात्मक भेदभाव को भी उजागर करती है. उनके बेशर्म स्त्री-विरोधी विचारों की सफलता इस बात का प्रमाण है कि अमेरिकी राजनीति में आज भी लैंगिक भेदभाव गहरी जड़ें जमाए हुए है.
संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का वैश्विक स्तर पर व्यापक प्रभाव पड़ता है. आर्थिक गिरावट के बावजूद, अमेरिका अभी भी दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है, और इसकी विदेश नीति वैश्विक प्रभुत्व की रणनीति से प्रेरित है, जिसमें दुनिया भर में युद्धों, नरसंहारों और दमनकारी शासनों को समर्थन देना शामिल है.
डेमोक्रेटिक मतदाताओं में निराशा का एक मुख्य कारण यह है कि रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों के बीच इस आक्रामक, साम्राज्यवादी और प्रभुत्ववादी विदेश नीति पर व्यापक सहमति है. इसका एक उदाहरण फिलिस्तीनियों पर इजरायल द्वारा किए जा रहा जातीय सफाया और नरसंहार है, जिसे पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने हमास को दोषी ठहराते हुए एक ‘तर्कसंगत’ इजरायली प्रतिक्रिया के रूप में उचित ठहराने की कोशिश की थी.
डेमोक्रेटिक पार्टी के मतों में आई भारी गिरावट, जो 2020 में 81 मिलियन थी और 2024 में घटकर 70 मिलियन रह गई, यह स्पष्ट संकेत है कि मतदाता इस दो-दलीय शोषणकारी और विनाशकारी विदेश नीति से निराश हो चुके हैं.
संघ परिवार और अमेरिका में मोदी समर्थक भारतीय प्रवासी समूह ट्रम्प के चुनाव अभियान के मुखर समर्थक रहे हैं. उन्होंने ट्रम्प के व्हाइट हाउस में वापस आने पर खुशी जताई है.
हालांकि भारतीय मूल के लोग, जिनमें वर्तमान और भविष्य के प्रवासी भी शामिल हैं, ट्रम्प की प्रवासी-विरोधी नीतियों और बयानबाजी के मुख्य निशाने पर हैं, लेकिन भारत की मोदी सरकार भी उसी किस्म की बयानबाजी, नीतियों और एजेंडे को अपनाना चाहती है.
ट्रम्प और मोदी के बीच करीबी संबंध भारत-अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी को आधार प्रदान करेंगे. इस साझेदारी में फिलिस्तीन में इजरायली जनसंहारी अभियान को समर्थन देने के साथ-साथ नव-रूढ़िवादी सामाजिक एजेंडा, नव-उदारवादी आर्थिक दिशा और फासीवादी शासन का समर्थन भी शामिल होगा, जो वैश्विक दक्षिणपंथ की पहचान बनते जा रहे हैं.
अमेरिका और भारत में लोकतंत्र की ताकतों और सामाजिक, आर्थिक, और जलवायु न्याय के समर्थकों को इस कड़वी सच्चाई का सामना करना होगा. डेमोक्रेटिक पार्टी की हार और ट्रम्प की जीत ने प्रगतिशील आंदोलनों की कमजोरियों को उजागर कर दिया है. फासीवादी ताकतों को रोकने के लिए अब लोकतंत्र के खोखले नारों से आगे बढ़ना होगा. हमें एक ऐसा आंदोलन चाहिए जो जनता की आकांक्षाओं को मूर्त रूप दे, और जो शांति, न्याय, मानव कल्याण, और मानव अधिकारों की जनता की चाहत से प्रेरित परिवर्तनकारी सपनों और प्राथमिकताओं को साकार कर सके.
ट्रम्प-मोदी-नेतन्याहू की तिकड़ी दुनिया पर साम्राज्यवाद, नरसंहार, विदेशियों के प्रति नफरत, कॉर्पारेट लूट, और तानाशाही शासन का घातक पैकेज थोपना चाहती है. इस खतरनाक स्थिति का सामना करने के लिए, दुनिया भर में लोकतंत्र की ताकतों को अटूट एकजुटता बनानी होगी ताकि इस गंभीर खतरे से दुनिया को बचाया जा सके.