- कुमार दिव्यम
सितंबर 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के माध्यम से पता चला कि बिहार माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से कर्ज लेने में सबसे आगे है. बिहार में लोग छोटे कर्ज धड़ल्ले से ले रहे हैं. खासकर ग्रामीण इलाकों में छोटे कर्ज लेने का प्रचलन चल रहा है. ज्यादातर कर्ज 10 हजार रूपये से ले कर 50 हजार रूपये तक के होते हैं. यह कर्जा खासकर गरीब तबकों से आने वाले लोग छोटे-मोटे धंधे के लिए ले रहे हैं. शादी-ब्याह के लिए भी कई लोग माइक्रो फाइनेंस कम्पनियों से लोन ले रहे हैं.
माइक्रो फाइनेंस कंपनियां मूल रूप से वित्तीय संस्थाएं हैं जो ऋण या बचत के रूप में छोटे पैमाने पर वित्तीय सेवाएं प्रदान करती हैं. इन कंपनियों को छोटे व्यवसायों के लिए ऋण प्रणाली को आसान बनाने के लिए पेश किया जाता है. बैंकों से ऋण लेने की जटिल प्रक्रिया के कारण जिन्हें ऋण नहीं मिलता है. वे लोग छोटे-छोटे कामों के लिए इन कंपनियों से कर्ज लेते हैं. अक्सर परिवार की महिलाओं के नाम पर यह कर्ज दिया जाता है और गारंटर उनके पतियों को बनाया जाता है. लेकिन ये कर्ज उनके लिए मौत का फंदा बनते जा रहा है.
बिहार में विगत कई महिनों में कर्ज के दबाव तथा माइक्रो फाइनेंस कंपनियों की प्रताड़ना से तंग आकर कई लोगों ने आत्महत्या कर ली है.
11 अगस्त 2024 को मुजफ्फरपुर जिले के सिराजाबाद गांव में आइस्क्रीम विक्रेता मो. अकबर अली की कर्ज के दबाव तथा कंपनी के एजेंटों द्वारा प्रताड़ना के कारण हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई. अकबर अली ने एक-एक कर सात कंपनियों से 6 लाख रूपये का कर्ज ले रखा था. अकबर अली ने कर्ज के पैसे से दो पुत्रियों की शादी की थी. पड़ोसियों ने बताया कि कर्ज की किस्त वसूलने वाले कम्पनियों के एजेंट अकबर अली के साथ बतदमीजी करते तथा गाली-गलौज भी करते थे. मृतका की पत्नी आसमां खातून बताती हैं कि पैसा वसूलने वाले एजेंट पैसा नहीं देने पर बेटियों को उठा कर ले जाने की धमकी भी देते थे. अकबर अली को प्रति सप्ताह 12 हजार रुपये की किस्त भरनी पड़ती थी. पुरे परिवार की कमाई किस्त भरने में ही चली जाती थी. आइसक्रीम बेचने वाले एक शख्स को हर सप्ताह 12 हजार रुपये का किस्त देना पड़ता हो इससे उसके परेशानियों का अंदाजा लगाया जा सकता है. अकबर अली के अलावा अकबर अली के दो बेटे भी मजदूरी करते थे. उनकी पत्नी आसमां खातून भी घर पर ही सिलाई का काम करती थीं. लेकिन पैर टूट के जाने की वजह से उनका काम बंद हो गया था. इस वजह से भी अकबर अली का परिवार समय से किस्त नहीं चुका पा रहे था. किस्त नहीं दे पाने पर उन्हें कंपनियों के एजेंट द्वारा प्रताड़ित किया जाता था तथा बेटियों को लेकर अश्लील टिप्पणियां की जाती थीं. इन्हीं वजहों से अकबर अली को हार्ट अटैक आया और उनकी मृत्य हो गई. तय समय पर किस्त नहीं चुकाने पर कंपनियां फाइन भी वसूलती हैं. कंपनियों द्वारा कर्ज तो आसानी से दे दिया जाता है लेकिन वसूली के नाम पर लोगों को आत्महत्या तक करने पर मजबूर कर दिया जाता है.
दूसरी घटना 6 जूलाई 2024 की है. छपरा जिले के जलालपुर प्रखंड क्षेत्रा के गम्हरिया कला स्थित फुटानी बाजार के रामेश्वर प्रसाद तथा उनकी पत्नी लालमुनी देवी ने ट्रेन से कट कर अपनी जान दे दी. इसके पीछे भी कर्ज का दबाव तथा कंपनियों के एजेंटों द्वारा प्रताड़ना को ही वजह बताया गया. परिजनों का आरोप भी माइक्रो फाइनेंस कंपनियों पर ही है. माइक्रो फाइनेंस कंपनी द्वारा लोन की वसूली के लिए प्रताड़ित किये जाने के कारण ही दोनों ने आत्महत्या कर ली. रामेश्वर प्रसाद के चार पुत्रों में से एक की मृत्यु हो गई थी इसलिए पोतियों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी इनके उपर आ गई थी. उन्हीं पोतियों की शादी के लिए रामेश्वर प्रसाद ने कर्ज लिया था. कर्ज को लौटाने में देरी होने से उन्हों प्रताड़ित किया गया और पति-पत्नी लोगों ने आत्महत्या कर ली.
तीसरी घटना समस्तीपुर जिले के सिमरा गांव की है. यहां रहने वाली उर्मिला देवी (35 साल) ने स्वयं सहायता समूह से करीब 4 लाख रुपये का लोन लिया हुआ था. उर्मिला देवी लंबे वक्त से लोन नहीं चुका पा रही थी जिसकी वजह से महिला और उसका परिवार काफी परेशान था. महिला की बेटी ने बताया था कि समूहों के रिकवरी एजेंट बार-बार आते थे और गाली-गलौज करते थे. हाल ही में एक रिकवरी एजेंट आए थे और उन्होंने खूब भला-बुरा कहा था.
बेटी ने बताया कि इसी बात से उसकी मां काफी परेशान हो गई थी. रात में उसने खाना भी नहीं खाया और बाजू वाले कमरे में चली गई. सुबह उठकर देखा तो मां का शव फांसी के फंदे से लटका हुआ मिला.
बिहार में माइक्रो फाइनेंस कम्पनियों के कर्ज में फंसे लोग पिछड़े और शोषित वर्गों से आते हैं और भूमिहीन होते हैं. उनकी जीविका दिहाड़ी मजदूरी या छोटे मोटे व्यवस्याओं पर निर्भर रहती है. बैकों के ऋण देने के जटिल तथा आम आदमी के पहुंच से बाहर होने का फायदा ये कंपनियां उठाती हैं. बैंको के तुलना में ये कंपनियां दो से तीन गुना अधिक ब्याज लेती हैं.
कई मामलों में यह शिकायत आई है कि कम्पनियों के एजेंट फर्जी कागजात बना कर लोन दिला देते हैं. उसके बाद रिकवरी के लिए प्रताड़ित करते हैं. पैसे मिलने में देरी होने पर डराते-धमकाते हैं, घरों के सामान भी बाहर फेंक देते हैं. कंपनियों द्वारा प्रताउ़ना तथा समाजिक बेइज्जती भी आत्महत्या का कारण बनती है.
टाइम्स ऑफ इण्डिया में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार जून 2024 में वैशाली जिले के शेरपुर में शोभा देवी (30 वर्ष) नामक एक महिला ने कर्ज के दबाव में अपनी आठ वर्षीय बेटी के साथ आत्महत्या कर ली.
ये सभी मामले कम्पनियों द्वारा लोगों को प्रताड़ित करने, 25% तक ब्याज वसूलने तथा आत्महत्या के लिए मजबूर करने के हैं. कर्ज देने वाली लगभग सभी कंपनियां प्राइवेट सेक्टर की हैं. उनका मूल उद्देश्य रहता है कर्ज देकर मुनाफा कमाना. छोटे-मोटे व्यवसायों के लिए सरकारी लोन का सुगमता से नहीं मिलना तथा सरकारों द्वारा सस्ते ऋण का कोई समुचित प्रबंध नहीं करना – माइक्रो फाइनेंस कंपानियों की इस मौत की जाल में लोगों को धकेल रहा है.
माइक्रो फइनेंस कंपनियों की इस हत्यारी मुहिम के खिलाफ संघर्ष छेड़ते हुए बिहार में गरीबों के आर्थिक सशक्तीकरण के मुद्दों को उठाना ही वक्त की मांग है.