- पुरुषोत्तम शर्मा
अखिल भारतीय किसान महासभा ने केंद्र सरकार द्वारा हाल में 14 खरीफ फसलों के लिए बढ़ाई गयी एमएसपी को नाकाफी बताते हुए इसे देश के किसानों के साथ फिर एक धोखा करार दिया है. किसान महासभा ने मोदी सरकार को चेताते हुए कहा, अगर उसने 2014 में किसानों से किये अपने वायदे ‘स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार सी-2+50% की दर से’ एमएसपी घोषित न की और कर्ज माफी के साथ एमएसपी पर खरीद की कानूनी गारंटी न दी तो उसे आने वाले समय में फिर एक बड़े किसान आन्दोलन का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा. आगामी 10 जुलाई 2024 को संयुक्त किसान मोर्चा की आम सभा दिल्ली में बुलाई गयी है, जिसमें देश भर के सैकड़ों किसान नेता भाग लेंगे और फिर से राष्ट्रव्यापी किसान आन्दोलन के अगले चरण की घोषणा करेंगे.
केंद्र सरकार द्वारा घोषित 14 खरीफ फसलों की एमएसपी को फसलों के कुल उत्पादन लागत का डेढ़ गुना बताना देश के किसानों का मजाक उड़ाना है. पिछले दस वर्षों से देश में फर्जी आंकड़ों की बाजीगरी करने वाली मोदी सरकार किसानों को भी अपने फर्जी आंकड़े दिखा कर देश की जनता को गलत सूचना दे रही है जबकि हकीकत यह है कि अभी तक घोषित एमएसपी को नरेंद्र मोदी सरकार ने A2 (फसल बोने से लेकर बेचने तक कुल लागत में की गई नकद भुगतान राशि) + FL (किसान परिवार के शारीरिक श्रम का मूल्य) + 50% फॉर्मूला में स्थानांतरित कर दिया है. C-2 (जमीन का किराया और कृषि ऋण के व्याज की आदायगी की राशि) को अब तक फसलों के लागत मूल्य में जोड़ा ही नहीं गया है.
C-2 फार्मूले में किसान की जमीन का किराया जिस पर वह पट्टेदार या बटाईदार को अपनी जमीन जोतने को देता है और बैंक या आढ़ती से लिए कर्ज का व्याज चुकाता है, को भी फसल की मूल लागत में जोड़ा जाता है. जमीन का किराया देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग है. यह पंजाब में जहां 60 से 70 हजार रुपया प्रति एकड़ है, वहीं देश के सूखे वाले क्षेत्रों में 20 हजार रुपया प्रति एकड़ भी है. बढ़ती मजदूरी, कृषि उपकरणों और अन्य उत्पादन सामग्रियों पर कंपनियों द्वारा लगातार कीमतें बढ़ाने और सरकार द्वारा उन पर 18% से 28% जीएसटी लगाने से किसानों की कृषि लागत पहले ही बहुत बढ़ गयी है.
ऐसे में एमएसपी में मात्र 5 से 7 प्रतिशत के बीच बढ़ोतरी की यह घोषणा हर वर्ष लागत सामग्री की बढ़ती कीमतों और बाजार में खाद्य कीमतों में वृद्धि (10 से 12%) की पूर्ति भी नहीं करती है. सच्चाई यह भी है कि एमएसपी पर खरीद की कानूनी गारंटी न होने के कारण देश के 90 प्रतिशत किसानों को बाजार में एमएसपी से काफी कम कीमतों पर अपने उत्पादों को बेचने पर मजबूर होना पड़ता है. जिन 10 प्रतिशत किसानों को एमएसपी मिलती है, वह भी ज्यादातर धान व गेहूं पर, जबकि देश भर में फैले लगभग 45 प्रतिशत बटाईदार किसानों को जिनकी संख्या बिहार जैसे राज्य में 70 प्रतिशत तक है, न तो एमएसपी पर फसल खरीद की सुविधा मिलती है और न ही उन्हें किसान सम्मान निधि या अन्य सरकारी सुविधा दी जाती है. किसान महासभा बटाईदार किसानों को किसान का दर्जा देकर उनकी फसलों की एमएसपी पर खरीद सहित सभी सरकारी सुविधा देने की मांग की है.
सिर्फ धान का ही उदाहरण लें तो चालू खरीफ सीजन के लिए केंद्र सरकार ने धान का एमएसपी 2183 रुपये और 2320 रुपये प्रति क्विंटल में 117 रुपये बढ़ाया है, जो केवल 5.36% और 5.04% की वृद्धि है. सरकार ने इसकी तुलना 2013-14 में भुगतान की गयी एमएसपी से की है जो 1310 रुपये प्रति क्विंटल थी, जिसमें पिछले 10 वर्षों में 77.8% की वृद्धि का दावा सरकार ने किया है. तुलना करें! प्रत्येक वर्ष के दौरान जीवन यापन की लागत 10 से 12% से अधिक बढ़ी है, यानी पिछले 10 वर्षों में मुद्रास्फीति कम से कम 100 प्रतिशत से अधिक बढ़ी है. अगर सन् 2013 की एमएसपी को ही आधार मानें जो बिना C-2 जोड़े 1310 रुपया प्रति क्विंटल थी, तो मोदी राज के 10 वर्षों में बढ़ी 100 प्रतिशत मुद्रास्फीति के बाद उसकी कीमत स्वतः 1310 + 1310 = 2620 रुपया हो जानी चाहिए थी.
कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने 2023-24 में धान के लिए C-2 लागत की गणना 1911 रुपये की थी, जो अनुमानित खर्च से कम है. फिर भी हम इसे मान लें तो भी इस खरीफ सीजन के लिए 7% की नाममात्र जोड़ी गयी मुद्रास्फीति दर पर यह 2044 रुपये होगी. धान की तरह ही केंद्र सरकार ने आगामी 13 अन्य खरीफ फसलों के उत्पादों के लिए जो न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया है, वह भी वार्षिक महंगाई दर की भरपाई नहीं करता है.
ज्वार के लिए एमएसपी 3371 रुपये से 191 रुपये बढ़ाया गया है, यानी 5.66%, बाजरे का 2625 रुपये से 125 रुपये, यानी 4.76%, रागी का 4290 रुपये से बढ़ाकर 444 रुपये, यानी 10.34%, मक्के का दाम 2225 रुपये से 135 रुपये यानी 6.6%, अरहर की कीमत 7550 रुपये से 550 रुपये बढ़ाया, यानी 7.28%, मूंग की कीमत 8682 रुपये से 124 रुपये यानी, मात्र 1.42%, उड़द का दाम 7400 रुपये से 450 रुपये यानी 6.08%.
मूंगफली 6783 से 406 रुपये, यानी 5.98%, सूरजमुखी का भाव 7280 से 520 रुपये, यानी 7.2%, सोयाबीन 4892 से 292 रुपये, यानी 5.96%, तिल की कीमत 9267 रुपये से 632 रुपये यानी 6.8% बढ़ी, रामतिल का 8717 रुपये से 983 रुपये यानी 11.27% और कपास की 2 किस्मों में 7121 रुपये और 7521 रुपये से 501 रुपये की बढ़ोतरी हुई, यानी क्रमशः 7.03% और 6.66% की बढ़ोतरी की गयी.
अगर देश के 85 प्रतिशत गरीब, सीमान्त व मध्यम किसानों को घाटे की खेती से बाहर लाना है और उन्हें भी एक सामान्य कर्मचारी के वेतन बराबर जीवन यापन योग्य आमदनी अर्जित करानी है, तो उनकी फसलों का वाजिब न्यूनतम समर्थन मूल्य उन्हें दिलाने की गारंटी करनी होगी. इसके साथ ही हर वर्ष सरकारी कर्मचारियों के लिए बढ़ने वाले महंगाई भत्ते की तर्ज पर किसानों की सभी फसलों की कीमतों में भी वृद्धि करनी होगी.
केंद्र सरकार को हर वर्ष बजट पूर्व राष्ट्रीय स्तर के किसान संगठनों और किसान मोर्चों के प्रतिनिधियों के साथ खेती व किसानी के लिए जारी होने वाले बजट प्रावधानों पर चर्चा करने की परम्परा शुरू करनी होगी. अगर देश के कारपोरेट संगठनों, व्यापार संघों, ट्रेड यूनियनों के साथ बजट पूर्व चर्चाएं केंद्र सरकार आयोजित करती है, तो देश की सर्वाधिक आबादी की आजीविका का भार उठाने वाली खेती-किसानी के प्रतिनिध्यिं से चर्चा करने से सरकार क्यों कतराती है? इसलिए केंद्र सरकार को चाहिए कि वह एक किसान आयोग का गठन करे, उसमें किसान संगठनों के प्रतिनिधियों, कृषि वैज्ञानिकों और कृषि मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों को शामिल किया जाये. यह आयोग सरकार की किसान विरोधी नीतियों के कारण समय-समय पर घाटे की खेती से कर्ज के जाल में फंसे किसानों व ग्रामीण गरीबों की समस्त कर्ज माफी और फसलों की उचित कीमत पर सरकार को सुझाव दे.
देश के किसान और जनता अभी भूली नहीं है कि दो माह पूर्व इस चुनाव में उड़ीसा में और कुछ माह पहले छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने किसानों से वोट मांगते वक्त 3100 रुपये प्रति क्विंटल धान खरीदने का वायदा किया था. हालांकि यह वायदा भी C-2 + 50 % फार्मूले से बहुत कम था. पर इन तीनों राज्यों और केंद्र की सत्ता में आने के बाद वही भाजपा आगामी धान फसल के लिए 2300 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी घोषित कर दी है. कृषि लागत पर हुए तमाम शोधों से पता चलता है कि आज 2300 रुपया प्रति क्विंटल धान की पैदावार में वास्तविक लागत आ रही है. कुछ राज्यों में तो यह उससे भी अधिक है.
ऐसे में A-2 + FL + C+2 + 50% के स्वामीनाथन आयोग के फार्मूले के अनुसार धान का एमएसपी कम से कम 2300 + 1150 = 3450 रुपए प्रति क्विंटल होना चाहिए. एक तरफ वोट पाने के लिए किसानों में लोकप्रिय पूर्व प्रधानमंत्रा चौधरी चरण सिंह और कृषि वैज्ञानिक डॉमनकोम्बु सम्बाशिवन (एमएस) स्वामीनाथन को भारत रत्न से सम्मानित करना और दूसरी ओर देश के किसानों को धोखा देकर कारपोरेट की सेवा करना भाजपा के असली चरित्र की पहचान है. देश का किसान इसे अच्छी तरह से समझ चुका है. आगामी 10 जुलाई को एसकेएम के नेतृत्व में दिल्ली में हो रही किसान नेताओं की बैठक में खेती किसानी को बचाने के लिए और भी बड़े आन्दोलन की तैयारी का आह्वान होगा.