वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा गत 23 जुलाई को पेश किया गया केंद्रीय बजट 2024 इस बात का उदाहरण है कि कैसे मोदी सरकार की योजनाएं हकीकत से परे और खुद को शाबाशी देते हुए भारतीय लोगों की दुर्दशा को नजरंदाज करती है. इस बजट को ऐसे समय में पेश किया गया है जब हालिया लोकसभा चुनावों में बड़े पैमाने पर मोदी सरकार की नीतियों से त्रस्त जनता ने कड़ा संदेश देने का काम किया है कि सिर्फ जुमलेबाजी से काम नही चलने वाला. लेकिन, मौजूदा सरकार अपने अहंकार में जनादेश के इस संदेश को ठुकरा रही है.
स्वामीनाथन आयोग (सी2+50) की सिफारिशों के मुताबिक इनपुट लागत पर 50% लाभ सुनिश्चित करने के लिए सभी फसलों के लिए कानूनी रूप से संरक्षित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की किसानों की मांगों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है. इसके अलावा, कर्ज माफी, पेंशन और किसान सम्मान निधि के लिए बढ़ी हुई धनराशि की मांगों की अनदेखी की गई है. भारत के कार्य बल के आधे से ज्यादा को काम देने वाले कृषि के लिए बजट में महज 2.5% आवंटन किया गया है. कृषि क्षेत्र में फैले गहरे संकट को दूर करने के बजाय, वित्त मंत्री ने देश भर के किसानों के विरोध के बावजूद जलवायु-अनुकूल उच्च उपज वाली किस्मों की आड़ में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं.
लगातार बेरोजगारी में बढ़ोतरी से इनकार और रोजगार के आंकड़ों में हेराफेरी करने वाली सरकार, अब इंटर्नशिप के जरिए रोजगार पैदा करने के विचार को बढ़ावा देने की कोशिश कर युवाओं को झांसा दे रही है. मोदी सरकार निजी कंपनियों को शिक्षित युवाओं को कम वेतन पर इंटर्नशिप देने के लिए प्रोत्साहित कर कमजोर तबके के लोगों के शोषण को बढ़ावा दे रहे हैं. इस असुरक्षित और कम वेतन वाले काम को वास्तविक रोजगार के अवसर के बतौर पेश करना की सरकार की युवाओं को गुमराह करने की रणनीति के अनुरूप है. सरकारी क्षेत्र में नौकरियां बढ़ाने सुनिश्चित करने का कोई वादा नहीं किया गया है, न ही निजी क्षेत्र में सम्मानजनक रोजगार के अवसरों का विस्तार पक्का करने के लिए कोई नीतिगत निर्णय लिया गया है. रोजगार को प्रोत्साहित करने के नाम पर चार साल के लिए ईपीएफओ अंशदान को प्रोत्साहन देने का वादा किया गया है. जाॅब कार्ड के लिए आवेदन बढ़ने के बावजूद मनरेगा पर खर्च को नही बढ़ाया गया है.
ऐसे समय में जब नीट जैसी परीक्षाओं में घोटाले और नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा परीक्षाओं को सही तरीके से आयोजित करने में भारी विफलता के खिलाफ बड़े पैमाने पर हंगामा हो रहा है, इस परीक्षा प्रणाली को सुधारने का कोई वादा नहीं किया गया है. समाज के वंचित वर्गों के विशाल तबके के लिए सुलभ सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को सुधारने की अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने के बजाय, मोदी सरकार ने बजट में शिक्षा ऋण को प्रोत्साहित कर रही है. ऐसे समय में जब छात्रों और युवाओं द्वारा आत्महत्या की संख्या बढ़ रही है, सरकार ने छात्रों के लिए शिक्षा ऋण माफ करने का कोई प्रयास नहीं किया है. अल्पसंख्यक धार्मिक पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए मौलाना आजाद राष्ट्रीय फैलोशिप के लिए आवंटन में कटौती की गयी है.
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार की तत्काल आवश्यकता को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है. बढ़ती महंगाई और कम होती मजदूरी की कठोर वास्तविकता को भी दरकिनार कर दिया गया है. मध्यम वर्ग में सालाना 3 से 10 लाख रुपये कमाने वालों के लिए मामूली कर लाभ के रूप में छूट दे सिर्फ मदद का दिखावा किया गया है. अप्रत्यक्ष करदाताओं की बड़ी तादाद को बिना किसी रियायत के छोड़ दिया गया है.
निष्कर्ष रूप में, केंद्रीय बजट 2024 ने भारत के मजदूर वर्ग, किसानों, छात्रों और युवाओं के संघर्षों को अनसुना कर दिया है. सरकार को जनता के इन ज्वलंत मुद्दों को हल कर वास्तविक समाधान प्रदान करने का समय आ गया है.
– केन्द्रीय कमेटी, भाकपा(माले)