कविता : हैं डटे हिमालय सा किसान


– वासुकि प्रसाद ‘उन्मत्त’

हैं डटे हिमालय सा किसान आकाश की तरह हो विशाल
पृथ्वी सा होकर धैर्यवान दृढ़ संकल्पित ज्योतित मशाल
है खिसकती जा है रही उनके पैरों के नीचे से जमीन
काले कृषि कानूनों से वे आहत विषण्ण हैं खिन्न दीन
वे चले घरों से यह कहकर ‘काले कानून मिटायेंगे
हो जायेंगे लड़ते शहीद पर नहीं हार घर आयेंगे
आयेगी हमारी जय हमसे पहले होकर के सिंहनाद
अथवा लाशें आयेंगी करोगे शहीदों सा हम सब को याद’

असली किसान दिवस


– इन्द्रेश मैखुरी

आज 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस है. किसान दिवस पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की याद में मनाया जाता है. हर बार की तरह, इस बार भी किसान दिवस की सरकारी रस्म अदायगी के तहत प्रधानमंत्री और अन्य सत्तासीनों ने किसान दिवस पर बधई संदेश और अन्नदाताओं के आभार के संदेश जारी किए हैं. लेकिन, इस बार का किसान दिवस उस ऐतिहासिक किसान आंदोलन के बीच में आया है जो देश की सत्ता के नाभिस्थल को लगभग महीने भर से घेरे हुए है और सत्ता को कठपुतली की तरह नचाने वालों पर निशाना साधे हुए है.

किसान (एक नज्म़)


तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो
अब ये सैलाब हैं
और सैलाब तिनकों से रुकते नहीं
ये जो सड़कों पे हैं
खुदकशी का चलन छोड़ कर आए हैं
बेड़ियां पावों की तोड़ कर आए हैं
सोंधी खुशबू की सबने कसम खाई है
और खेतों से वादा किया है के अब
जीत होगी तभी लौट कर आएंगे

अब जो आ ही गए हैं तो यह भी सुनो
झूठे वादों से ये टलने वाले नहीं

कारपोरेट की गुलामी किसानों को बर्दाश्त नहीं

पिछले तीन वर्षों से कर्ज मुक्ति और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार कुल लागत का डेढ़ गुना दाम की मांग पर चल रहे देश के किसान आन्दोलन में अब एक जबरदस्त उबाल आ गया है. मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि सम्बन्धी तीन अध्यादेशों को कानून बनाने के खिलाफ देश का किसान सड़कों पर है. पिछले साढ़े छः वर्षों के शासन काल में पहली बार किसी आन्दोलन के दबाव में मोदी सरकार के कैबनेट मंत्री को इस्तीफा देकर सरकार के कदम का विरोध करने पर मजबूर होना पड़ा है.

धीरे बहे सरयू रे

– अरिंदम सेन  -- 

बाबरी मस्जिद के ध्वंसावशेष पर राम मंदिर के वास्तविक निर्माण के साथ, और वह भी भारत के एकमात्र मुस्लिम-बहुल राज्य में बर्बर दमन लादे जाने की सबसे लंबी और अब तक जारी अवधि की वर्षगांठ पर, सरयू किनारे की मंदिर नगरी को भगवा राजनीति का ताजा रंग दे दिया गया है. और, इसे गौरवशाली व शक्तिशाली हिंदू राष्ट्र के सर्वप्रमुख ‘राष्ट्रीय’ प्रतीक के बतौर उछाला जा रहा है जिसने ‘भगवान राम’ की कथित जन्मभूमि को ‘आंतरिक दुश्मन बन बैठे विदेशी आक्रांताओं’ के चंगुल से अब मुक्त करा लिया है.

कोरोना संकट की आड़ में तानाशाही की ओर बढ़ रही सरकारें

कोरोना की आड़ में सरकारें कड़े कानून बना कर तानाशाही को ओर बढ़ रही हैं. हमारे देश में महामारी से लड़ने हेतु एक कानून अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है जिसे ‘महामारी रोग अधिनियम, 1897’ के नाम से जाना जाता है. इस ऐक्ट के अंतर्गत पारित आदेशों का उलंघन आईपीसी की धारा-188 में दंडनीय है जिसमें एक महीने की साधारण जेल और 200 रुपया जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

वहाग वैभव की कविताए : कोई ऐसा शब्द कहो

कोई ऐसा शब्द कहो
जिसका सचमुच कोई अर्थ हो

कोई ऐसी नदी दिखाओ
जिसमें न बह रहा हो हमारी आंख का पानी

कोई ऐसा फूल उपहार में दो
जिसकी गंध बाजार में न बिकती हो

अपने प्रेम और घृणा के लिए दलीलें देना बंद करो
ताकि मैं भरोसे पर पुनः भरोसा कर सकूं

अर्थ, रस, गंध और स्पर्श
सब अपनी सवारियों से पलायन कर रहे हैं
और यही इस दौर की सबसे विकराल महामारी है

अगर नहीं तो
एक ऐसे मनुष्य से मिलाओ
जिसे मनुष्य कहकर पुकारूं और वह पलटकर जवाब भी दे.

पुस्तक समीक्षा : ‘एका’ किसान आन्दोलन और आजादी की लड़ाई में वर्ग हितों की टकराहट का दस्तावेज

1920 से 1928 के बीच अवध के दो महान किसान नेताओं बाबा रामचंद्र और मदारी पासी के नेतृत्व में चले किसान संघर्षों के बारे में एक किताब को देखना और पढ़ना मेरे जैसे कार्यकर्ताओं के लिए एक सुखद अनुभूति है. नवारुण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित और राजीव कुमार पाल द्वारा लिखित ‘एका’ नाम की पुस्तक हमें किसान आन्दोलन के उस इतिहास और उन वीर नायकों से परिचित करा रही है.