बिहार के आश्रय गृहों - बालिका गृहों, अल्पावास गृहों, दत्तक केन्द्रों और सुधार गृहों में सरकारी धन की लूट, संवासिनों के साथ हिंसा और यौन उत्पीड़न के खुलासे का सिलसिला और इसके विरोध में जनता का आक्रोश दोनों ही थमने का नाम नहीं ले रहा है. ‘टिस’ की रिपोर्ट के जरिये मुजफ्फरपुर समेत राज्य के 15 आश्रय गृहों से इसकी शुरूआत हुई और बहुत ही तेजी से देश के हर राज्य में संचालित ऐसे हर ऐसे आश्रय गृह की यही कहानी सामने आने लगी. सीबीआई के जरिए जांच कराने और चंद मंत्रियों-अधिकारियों को हटाने या सजा देने से उस सच्चाई पर पर्दा नहीं डाला जा सकता कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे नरेन्द्र मोदी-नीतीश कुमार ही इसके लिए जिम्मेवार हैं. पटना के आसरा होम में दो संवासिनों की साजिशाना हत्या ने ऐसे लोगों को जो अब भी थोड़ा बहुत न्याय होने की उम्मीद रखते थे, आंदोलित कर दिया है. सफल बिहार बंद आयोजित करने के बाद बिहार के वामदलों ने इसी परिस्थिति में विगत 14 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राज्य के तमाम जिला मुख्यालयों पर कैंडल मार्च आयोजित करने का आह्वान किया था. यहां प्रस्तुत है उसकी एक संक्षिप्त रिपोर्ट जिससे यह पता चलता है कि यह कार्यक्रम गांव-कस्बों तक में लागू हुआ है और बिहार के लोग न्याय पाने की लड़ाई को और आगे तक ले जाने का संकल्प ले चुके हैं.