उत्तराखंड में महिला सुरक्षा : अपराधियों के हौसले ऐसे ही बुलंद हैं, भाजपा राज में!

- इन्द्रेश मैखुरी

कोलकाता के आरजी कार मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक इंटर्न डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की जघन्य वारदात से पूरा देश उद्वेलित है. उक्त घटना के खिलाफ कोलकाता के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं, न्याय की मांग की जा रही है, महिला सुरक्षा का सवाल एक बार फिर से सतह पर उभर कर आया है, खास तौर पर कार्यस्थलों में महिला सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं.

कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना : सरकारी दावे और जमीनी हकीकत

- महेंद्र यादव/राहुल यादुका

23 जुलाई 2024 को लोक सभा चुनाव के बाद संसद के बजट सत्र में केंद्रीय बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार के महत्वाकांक्षी और बहुप्रतीक्षीत कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना (कोसी एंड मेची रिवर इंटरलिंक प्रोजेक्ट) समेत कई अन्य परियोजनाओं के लिये बजट में 11,500 करोड़ रुपये की घोषणा की. बजट भाषण के दौरान निर्मला सीतारमण ने कहा कि बिहार हमेशा से बाढ़ का दंश झेलता रहा है और इससे मुक्ति दिलाने के लिये केंद्र सरकार आर्थिक रूप से बिहार की मदद करने के लिये प्रतिबद्ध है .

सेबी प्रमुख का इस्तीफा और अडानी घोटाले की सुप्रीम कोर्ट से नयी जांच बेहद जरूरी!

अडानी घोटाले पर हिंडनबर्ग रिसर्च की दूसरी रिपोर्ट कुछ मायनों में पहली रिपोर्ट से भी ज्यादा विस्फोटक है, जिसने अठारह महीने पहले दुनिया को हिलाकर रख दिया था. शुरुआती रिपोर्ट में अडानी समूह द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट धोखाधड़ी का खुलासा हुआ था, जिसकी वजह से गौतम अडानी वैश्विक संपत्ति रैंकिंग में नीचे की ओर धकेल दिये गए थे. इसके बाद, मोदी-अडानी गठजोड़ के बारे में भारतीय संसद सहित पूरे भारत में सवाल उठाए गए.

सिलक्यारा सुरंग का मसला फिर संसद में

- इन्द्रेश मैखुरी

उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग याद है आपको? उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धरासू-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर ये वही सुरंग है जो बीते वर्ष दिवाली के दिन यानि 12 नवंबर 2023 को ढह गयी और 41 मजदूर 17 दिनों तक इस सुरंग के भीतर फंसे रहे. इस सुरंग को बनाने वाली कंपनी का नाम नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड है.

कौन जात है रे!

- कुमार परवेज

कौन जात है रे! यह भाषा हमने खूब सुनी है. आपने भी सुनी होगी. सामंती अहंकार और जातीय वर्चस्व की विशुद्ध लंपट भाषा! आज से 25-30 साल पहले दबी जुबान में इसका जवाब था – मालिक, हम चमार हैं, हम मुसहर हैं!

ऐसा लगता था कि विगत कुछ सालों में लंपटों की यह भाषा खुद को बदलने के लिए बाध्य हुई है!