अडानी घोटाले पर हिंडनबर्ग रिसर्च की दूसरी रिपोर्ट कुछ मायनों में पहली रिपोर्ट से भी ज्यादा विस्फोटक है, जिसने अठारह महीने पहले दुनिया को हिलाकर रख दिया था. शुरुआती रिपोर्ट में अडानी समूह द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट धोखाधड़ी का खुलासा हुआ था, जिसकी वजह से गौतम अडानी वैश्विक संपत्ति रैंकिंग में नीचे की ओर धकेल दिये गए थे. इसके बाद, मोदी-अडानी गठजोड़ के बारे में भारतीय संसद सहित पूरे भारत में सवाल उठाए गए. जवाब में, सरकार ने आक्रामक रूप से किसी भी असहज सवाल को चुप कराने की कोशिश की, यहां तक कि उन सांसदों को अयोग्य घोषित कर दिया, निष्कासित कर दिया और गिरफ्तार कर लिया जो जवाब मांगने में सबसे मुखर थे. मोदी तो अडानी के बारे में तब तक चुप रहे जब तक कि उन्होंने अनजाने में अपने एक हताश चुनावी भाषण के दौरान अंबानी और अडानी दोनों पर कांग्रेस को काला धन मुहैया कराने का आरोप नहीं लगा दिया.
कानूनी दायरे में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अडानी समूह के कथित कॉरपोरेट धोखाधड़ी की जांच की मांग को एक विशेषज्ञ पैनल और भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को सौंप दिया था. 25 अगस्त, 2023 को सुप्रीम कोर्ट में सेबी द्वारा दायर हलफनामे से पता चलता है कि 24 में से दो जांच अभी भी अनसुलझी हैं. और अब हिंडनबर्ग की जो दूसरी रिपोर्ट आयी है, वो सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की ईमानदारी पर गंभीर संदेह जताती है, जिससे पूरी जांच की विश्वसनीयता संदेह के दायरे में आ जाती है. हिंडनबर्ग की नवीनतम रिपोर्ट में राज खोलने वाले व्हिसलब्लोअर के दस्तावेजों से पता चलता है कि खुद माधबी और धवल बुच के पास बरमूडा और मॉरीशस में स्थित उदार कर नियामक (आफेशोर) संस्थाओं में हिस्सेदारी थी, जिसे अडानी समूह द्वारा कंट्रोल किया जाता है, जो सीधे तौर पर उन्हें पैसे की हेराफेरी की योजना में फंसाता है.
माधबी और धवल बुच ने 10 अगस्त को हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने के बाद से एक बयान जारी किया है. उनका जवाब हिंडनबर्ग रिपोर्ट में दर्ज बुनियादी तथ्यों की साफ तौर से पुष्टि करता है, और वास्तव में जवाब के बनिस्बत और भी ज्यादा अहम सवाल खड़ा करता है. यह माधबी बुच द्वारा स्थापित सिंगापुर और भारतीय संस्थाओं – अगोरा पार्टनर्स सिंगापुर और अगोरा एडवाइजरी लिमिटेड (भारत) – के अस्तित्व की भी निर्विवाद तौर से पुष्टि करता है. सेबी अध्यक्ष के पति धवल बुच की वैश्विक निजी इक्विटी फर्म ब्लैकस्टोन के साथ सीधी भागीदारी है, जिसे हाल ही में सेबी के कुछ नियमों से स्पष्ट रूप से लाभ हुआ है. बुच परिवार और सेबी पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों को ‘दुर्भावना से प्रेरित’ बताकर खारिज करना पर्याप्त नहीं है, क्योंकि, बुनियादी तथ्य सभी प्रमाणित हो चुके हैं.
हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोपों की गहन जांच की जानी चाहिए, और पहला कदम सेबी के अध्यक्ष के बतौर माधबी पुरी बुच का इस्तीफा है. दरअसल, सेबी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे पर फिर से विचार किया जाना चाहिए, और सुप्रीम कोर्ट को सेबी द्वारा जांचे गए बाईस मामलों को फिर से खोलना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने पूरी जांच में सेबी को अंतिम प्राधिकारी के रूप में नामित किया था, फिर भी अदालत द्वारा दी गई विस्तारित समय सीमा से परे भी जांच अधूरी रही है. अडानी समूह पर हिंडनबर्ग की पहली रिपोर्ट के कारण अडानी के शेयरों में भारी गिरावट आई थी, जिसका स्पष्ट रूप से कई खुदरा निवेशकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा. दूसरी रिपोर्ट, हालांकि अडानी समूह के खिलाफ कोई नया आरोप नहीं लगाती है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप संयुक्त रूप से दस अडानी शेयरों के बाजार मूल्य में 53,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
यह रिपोर्ट न केवल अडानी समूह की प्रतिष्ठा को धूमिल करती है, बल्कि यह सेबी की विश्वसनीयता और भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों के भरोसे को लेकर भी चिंता पैदा करती है. यह संभव है कि सेबी और अडानी के बीच रिश्ते लंबे समय से पनप रहे हों. हमें यह नही भूलना चाहिए कि सेबी के पूर्व अध्यक्ष श्री यूके सिन्हा अब अडानी के स्वामित्व वाले एनडीटीवी के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष हैं. हालांकि माधबी और धवल बुच ने सेबी को सभी आवश्यक जानकारी का खुलासा करने का दावा किया है, लेकिन यह तथ्य कि सेबी अध्यक्ष का अडानी से संबंधित ऑफशोर फंडों में निवेश करने का इतिहास रहा है, और एक बहुराष्ट्रीय इक्विटी फर्म के वरिष्ठ सलाहकार के रूप में काम करने वाले उनके पति, भारतीय उद्योग के प्रमुख ग्राहकों के साथ काम करना जारी रखते हैं – यह सब निश्चित तौर पर सेबी के कामकाज में भरोसा पैदा नहीं करता है.
मोदी के दौर में यूपीएससी से लेकर चुनाव आयोग और सेबी सहित हर संस्था पर कब्जा किया गया है, और हर जांच एजेंसी का इस्तेमाल विपक्ष के खिलाफ हथियार के बतौर किया गया है. जैसे-जैसे इसके परिणाम नजर आते हैं, और दुनिया भारत की दयनीय स्थिति पर टिप्पणी करना शुरू कर देती है – चाहे वह लोकतंत्र की नाजुक स्थिति हो, बढ़ती भूखमरी हो, प्रेस की स्वतंत्रता में गिरावट हो या धोखाधड़ी वाला कॉरपोरेट प्रशासन हो – सरकार इसे साजिश बताकर दबाने की कोशिश करती है. हालांकि, भारत की बिगड़ती आर्थिक स्थिति के लिए हिंडनबर्ग को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, जिसे सरकार के अपने आर्थिक सर्वेक्षण को भी स्वीकार करना पड़ा है. अगर मोदी के दौर में सेबी ने क्रोनी कैपिटलिज्म के खतरनाक उदय में भूमिका निभाई है, तो इस घोटाले को उजागर करना और जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराना भारतीय अर्थव्यवस्था और उसके लोगों के सर्वात्तम हित में है.