- कुमार परवेज
कौन जात है रे! यह भाषा हमने खूब सुनी है. आपने भी सुनी होगी. सामंती अहंकार और जातीय वर्चस्व की विशुद्ध लंपट भाषा! आज से 25-30 साल पहले दबी जुबान में इसका जवाब था – मालिक, हम चमार हैं, हम मुसहर हैं!
ऐसा लगता था कि विगत कुछ सालों में लंपटों की यह भाषा खुद को बदलने के लिए बाध्य हुई है!