क्या आखिरी किला भी ढह गया?

जब भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने भाजपा सरकार द्वारा राज्य सभा की सदस्यता के रूप में दिये गये उपहार को खुशी-खुशी ग्रहण कर लिया, तो उनके सहयोगी रह चुके सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी. लोकुर ने उस पर सही टिप्पणी करते हुए कहा, “कुछ समय से अटकलें लगाई जा रही थीं कि जस्टिस गोगोई को क्या सम्मान मिलेगा. ऐसे में उनका मनोनयन आश्चर्यजनक नहीं है, लेकिन जो आश्चर्य की बात है, वह यह है कि फैसला इतनी जल्दी आ गया. यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता को नये सिरे से परिभाषित करता है. क्या आखिरी किला भी ढह गया है?”

भारत में कोरोनावायरस से निपटने के लिए सरकार से की जाने वाली 13 जरूरी मांगे

30 जनवरी, जब कोरोनावायरस का पहला मामला सामने आया, से लेकर 15 मार्च तक भारत में संपुष्ट मामलों की संख्या 110 हो गई है, और दो लोगों की मौत हुई है. भारत सरकार ने इस महामारी पर त्वरित प्रतिक्रिया करते हुए अंतरराष्ट्रीय यात्राओं में कटौतियां की, विदेशों से आनेवालों और उनसे संपर्कित व्यक्तियों की जांच करवाई, और उनमें वायरस पाया गया तो उन्हें अलग (आइसोलेशन) किया गया और अगर लक्षण संपुष्ट नहीं हुए तो उन्हें क्वारंटाइन में रखा गया. बेशक, इससे महामारी के फैसले की रफ्तार धीमी हुई. लेकिन जैसा कि सरकार जानती है, बदतरीन स्थिति आना अभी बाकी हैै.

आंकड़ा ‘संरक्षण’ विधेयक की खाल में छिपी आंकड़ों की तानाशाही

– राधिका कृष्णन

नागरिकता संशोधन कानून, जिसे दिसम्बर 2019 में संसद के दोनों सदनों में पारित कर दिया गया, के खिलाफ बिल्कुल वाजिब प्रतिवादों के उफान में, एक अन्य विधेयक पर लोगों का उतना ध्यान नहीं गया, जितना जाना चाहिये था. दिसम्बर 2019 में ही इलेक्ट्रॅनिक्स एंड इन्पफार्मेशन टेक्नालाजी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) ने सदन में निजी आंकड़ा संरक्षण विधेयक (डीपीबी) पेश कर दिया, और इस विधेयक पर अभी एक संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जांच की जा रही है.

हमें बांटने की कोशिश करने वाली हर साजिश को नाकाम करो

[एआईसीसीटीयू के 10वें अखिल भारतीय सम्मेलन में भाकपा(माले) महासचिव कामरेड दीपंकर भट्टाचार्य का भाषण]

यह मेरे लिये बड़े हर्ष और सम्मान की बात है कि आज मैं एआईसीसीटीयू के दसवें अखिल भारतीय सम्मेलन में आप सभी का अभिनन्दन कर रहा हूं. इस सम्मेलन के जरिये हम भारत में ट्रेड यूनियन आंदोलन के एक सौ वर्षोें तथा एआईसीसीटीयू के तीस वर्षों के गौरवमय इतिहास का भी समारोह मना रहे हैं.

सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ देशव्यापी उभार : हमने क्या हासिल किया और क्या सामने है

– अरिंदम सेन

2019-20 के उस जाड़े में, जब मौसम का पारा गिरने का रिकार्ड दर्ज करा रहा था, सर्दी सामान्य से अधिक पीड़ादायक थी. राजनीतिक वातावरण भी कापफी अवसादग्रस्त था, जिसमें नागरिकता संशोधन विधेयक राज्य सभा में भी, भाजपा की वफादार विपक्षी पार्टियों के सहयोग से, पारित हो चुका था और सर्वोच्च न्यायालय भी बिल्कुल स्पष्टतः इस किस्म के सम्पूर्णतः गैर-संवैधानिक कानून को रोकने की अपनी संवैधानिक जिम्मेवारी को पूरा करने को अनिच्छुक दिख रहा था.

मोदी और ट्रम्प: करोड़ों का फालतू खर्च उड़ाकर मिले दो तानाशाह, मगर इससे भारत और भारतवासियों का क्या फायदा?

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 24 और 25 फरवरी 2020 को भारत का दौरा किया. गोदी मीडिया ने पहले से ही ट्रम्प के दौरे का तमाशा रचना शुरू कर दिया था, क्योंकि इससे शासक भाजपा सरकार एवं उसके प्रवक्ताओं को भारतीय अर्थतंत्र की आपदा, आसमान छूती बेरोजगारी और समूचे देश में साम्प्रदायिक बंटवारे की कोशिश से जनता का ध्यान परे खींचने की एक और भटकाऊ तरकीब गढ़ने का मौका मिल जाता है. लेकिन आइये हम ट्रम्प के दौरे के दृश्यमान नजारे के पार वास्तविकताओं को समझें.

जनता पर दमन का काला अध्याय है योगी सरकार : शांतिपूर्ण धरने में शामिल महिलाओं पर बर्बरता - प्रदर्शनकारियों पर फर्जी मुकदमे

आजमगढ़ के बिलरियागंज कस्बे के मौलाना जौहर अली पार्क मे 4 फरवरी 2020 को सीएए/ एनआरसी/ एनपीआर के विरोध में महिलाओं ने शांतिपूर्ण धरना शुरू किया था जिसमें मासूम बच्चे और वृद्ध महिलाएं भी शामिल थीं. 4-5 फरवरी को आधी रात के बाद करीब 3 बजे शांतिपूर्वक धरना कर रहीं महिलाओं पर पुलिस प्रशासन ने बर्बरतापूर्वक दमन किया, पुलिस द्वारा लाठीचार्ज व आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियां दागी गईं जिसमें कई महिलाएं घायल हुंई और एक वृद्धा अभी भी अस्पताल में गम्भीर अवस्था में भरती है.

एनआरसी विरोधी सत्याग्रह स्थलों पर एक नजर

भोजपुर जिले के पीरो में भागलपुर चौक पर 24 जनवरी 2020 से चल रहा अनिश्चितकालीन धरना आज तक जारी है. इस धरना को शहर के भागलपुर मिल्की मुहल्ले के आम नागरिकों ने शुरू किया. भाकपा(माले) के स्थानीय नेताओं ने शुरूआत से ही इसमें मददी भूमिका निभाई. भाकपा(माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य, पोलित ब्यूरो सदस्य का.

लखनऊ की एक शाम : घंटाघर पर लहराता जनसमुद्र

इन दिनों लखनऊ का घंटाघर सुर्खियों में है. शाहीनबाग से सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में औरतों ने जिस धरने के शुरूआत की थी, उसने विरोध की एक नयी राह दिखाई. सबसे बड़ी खूबी यह थी कि इसकी पहल औरतों ने की. एक नहीं, कई शाहीनबाग देश में खड़े हो गये. इसने जन आन्दोलन का रूप ले लिया. इस तरह के आन्दोलन का, जिसमें महिलाएं केन्द्र में हों, कोई दूसरा उदाहरण शायद ही मिले.