किसान आंदोलन की अग्रिम चौकी बनता उत्तर प्रदेश


दिल्ली की सीमाओं पर विगत दो माह से जारी किसान आंदोलन में गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2021) के घटनाक्रम के बाद से एक नया उभार आया है. अब गाजीपुर बाॅर्डर और वहां पर धरना में डटे उत्तर प्रदेश के आंदोलनकारी किसानों व उनके संगठनों की भूमिका मुख्य चर्चा में है. लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन और आंदोलनों के दमन के लिए कुख्यात योगी राज वाले उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का इस नए उभार ने नई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म दिया है.

दिल्ली किसान परेड पर कुछ बात


– कविता कृष्णन

25 जनवरी की भयानक ठंड में सिंघू, टिकरी और गाजीपुर के प्रतिवाद स्थलों पर किसान देर रात तक जागते हुए परेड की तैयारी और अपने ट्रैक्टरों व ट्राॅलियों को सजाने में लगे हुए थे.

‘कृषि बाजार कानून’ कानूनों से किसानों का ही नहीं बल्कि आम आदमी का भी बड़ा नुकसान होगा


“कृषि बाजार कानून कानूनों से किसानों का नहीं बल्कि आम आदमी का भी बड़ा नुकसान होगा. कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) को हटाना सरकारी स्कूल को हटाने जैसा हैं, प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देने जैसा है. बिहार के पुराने कृषि उपज विपणन समिति सम्बन्धी कानून को पुनः बहाल करना चाहिए.”

दिल्ली बार्डर किसान आंदोलन: ‘जिसने नहीं देखा … … ...’


विगत 24  दिसंबर 2020 को भाकपा(माले) विधायकों – का. सुदामा प्रसाद (तरारी, भोजपुर) व का. रामबली सिंह यादव (घोषी, जहानाबाद) के साथ हम लोगों की टीम हरियाणा के टिकरी बाॅर्डर पहुंची.

भाजपा है सत्ता की भूखी, सहयोगियों को भी नहीं छोड़ा


भाकपा(माले) राज्य सचिव का. कुणाल ने कहा कि भाजपा एक ऐसी पार्टी है जो सत्ता के लिए हर कुकर्म कर सकती है. पैसे व ताकत के बल पर विपक्षी विधायकों को खरीदना, धमकाना व तोड़ डालना उसके लिए आम बात है. ऐसा करके उसने कई राज्यों में गैरभाजपा सरकार को अलोकतांत्रिक तरीके से गिराकर अपनी सरकार भी बनाई है. उसके डीएनए में ही साजिश व तमाम संवैधानिक मर्यादाओं की हत्या करके सत्ता हासिल करने की भूख है.

सुशील मोदी अंबानी-अडानी जैसे काॅरपोरेटों को ही किसान मानते हैं


29 दिसंबर के किसानों के राजभवन मार्च पर भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी के बयान पर पलटवार करते हुए भाकपा(माले) राज्य सचिव का. कुणाल ने कहा कि कल के राजभवन मार्च में शामिल दसियों हजार किसान सुशील मोदी को किसान नहीं दिखते, क्योंकि भाजपा व पूरा संघ गिरोह तो अब खेत-खेती व किसानी काॅरपोरेट घरानों के हवाले कर देना चाहती है. भाजपा के लिए अब खेतों में काम करने वाले लोग किसान नहीं हैं, बल्कि दुनिया के अमीरों में शुमार अंबानी-अडानी ही किसान हैं और वे उनके लिए सारी संवैधानिक नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं.

लव जिहाद के कानून पितृसत्तात्मक नफरत के औजार हैं


उत्तर प्रदेश का गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निरोधक अधिनियम, 2020, जो महिलाओं की “लव जिहाद” से रक्षा करने का दावा करता है, वास्तव में महिलाओं की स्वायत्तता और इच्छा के खिलाफ हिंसक हमला हैं. यह अध्यादेश – और साथ ही इसी किस्म के अध्यादेश जो उत्तराखंड में लागू हैं तथा भाजपा-शासित अन्य राज्यों में लागू होने की प्रक्रिया में हैं – हिंदू औरतों को ऐसा इन्सान नहीं मानते जो अपनी इच्छानुसार चुनाव कर सकती हैं, बल्कि महज हिंदू समुदाय की सम्पत्ति मानते हैं.