‘लव जिहाद’ को लेकर हो रही राजनीति संघी मनुवाद का नया संस्करण है


– चिंटू कुमारी, पूर्व महासचिव, जेएनयू छात्रसंघ
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाया गया ‘लव जिहाद’ कानून और कुछ नहीं मनुस्मृति का ही नया रूप है, जो महिलाओं को समुदाय की संपत्ति मानकर गुलाम बनाता है और संघर्षों से हासिल किए हुए अधिकारों को फिर से छीन लेना चाहता है. यह जितना मुस्लिम विरोधी है, उतना ही हिंदू महिलाओं और दलितों का विरोधी भी है.

किसान विरोधी कृषि कानूनों के खिलाफ पूरे देश में किसानों का शाहीनबाग बन रहा है

 
-- दीपंकर भट्टाचार्य     

मोदी सरकार द्वारा संविधान व लोकतंत्र की हत्या करके बनाए गए तीन किसान विरोधी कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर दिल्ली पहुंच रहे किसानों पर बर्बर दमन के खिलाफ 30 नवंबर 2020 को भाकपा(माले) ने पूरे बिहार में विरोध दिवस का आयोजन किया और किसानो

आयुध कारखानों के निगमीकरण का नया बहाना


बीते 30 सितंबर 2020 को लगभग सभी अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं ने एक खबर प्रकाशित की. उक्त खबर के अनुसार भारतीय सेना ने रक्षा मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट में कहा है कि ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड द्वारा भारतीय सेना को घटिया गुणवत्ता के हथियार आपूर्ति किए गए, जिसके चलते अप्रैल 2014 से अप्रैल 2019 के बीच 27 सैनिकों और सिविलियनों की जान गयी और 159 घायल हुए. समाचारों के अनुसार सेना की रिपोर्ट में कहा गया है कि उक्त खराब सामग्री के चलते 960 करोड़ रुपये का नुक्सान हुआ. इतनी धनराशि का उपयोग 100, 155 एमएम की होवित्जर जैसी तोपें खरीदने में किया जा सकता था.

बिहार : एनडीए सुशासन के पोल खोलते तथ्य

नीतीश कुमार लगभग 15 वर्षों से लगातार बिहार के मुख्यमंत्री बने रहे हैं (थोड़े समय के लिए जीतन राम मांझी ने उनकी जगह ली थी). 2005-15 के दरम्यान उन्होंने एनडीए शासन का नेतृत्व किया. 2015 के चुनाव में एनडीए को शिकस्त मिली, और नीतीश कुमार राजद के साथ ‘महागठबंधन’ में मुख्यमंत्री बने. लेकिन एनडीए ने जनादेश को हथिया लिया और नीतीश कुमार ने उसी भाजपा के साथ संश्रय कायम कर लिया जिसे बिहार की जनता ने बड़े पैमाने पर नकार दिया था.

काला धन के नये खुलासे

काला धन - छह साल पहले यह शब्द वर्तमान सत्ता के सिरमौर से लेकर निचले पायों तक, मंत्र की तरह जपा जाता था. देश के हर आदमी की जेब में इसी काले धन को सफेद करके डालने के बड़े-बड़े दावे और वादे भी किए गए थे. लेकिन बीतते वक्त के साथ ‘अच्छे दिनों’ के तमाम रंग-बिरंगे सपनों की तरह इस शब्द को भी जैसे सेंसर कर दिया गया है. अब यह भूल से भी सत्ताधीशों के मुंह से नहीं सुनाई देता.

एक हृदयहीन और निर्मम बहाना

इस बात की काफी चर्चा है कि संसद में मोदी सरकार ने कहा कि उसे लाॅकडाउन के चलते मरने वाले मजदूरों की संख्या की जानकारी नहीं है. मोदी सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय में स्वतंत्रा प्रभार राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने 14 सितंबर को लोकसभा में एक अतारांकित प्रश्न के उत्तर में कहा कि लाॅकडाउन के दौरान मरने वाले मजदूरों का कोई डाटा उपलब्ध नहीं है. श्रम और रोजगार मंत्री ने यह भी कहा कि चूंकि मरने वाले मजदूरों का कोई डाटा नहीं रखा गया, इसलिए उनके मरने पर मुआवजा देने का प्रश्न ही नहीं उठता.

देश भर में आर्थिक संकट लाॅकडाउन के कारण ही पैदा हुआ: सुप्रीमकोर्ट

आजकल यूं भी जुडिशियल ऐक्टिविज्म यानि न्यायिक सक्रियता का जुमला पूरे परिदृश्य से गायब हो गया है, क्योंकि न्यायपालिका राष्ट्रवाद के नाम पर सरकार की हां में हां मिला रही है. लेकिन यह गुब्बारा वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अपने ट्वीट से न्यायिक निष्क्रियता का आरोप लगाकर फोड़ दिया है और देश भर में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है. यहां तक कि सोशल मीडिया से लेकर गली नुक्कड़ पर भी न्यायपालिका चर्चा में है.