12 फरवरी, ऐपवा स्थापना दिवस के अवसर पर बिहार की राजधानी पटना में विधानसभा के समक्ष महिलाओं का प्रदर्शन आयोजित किया गया था. इसी दिन बिहार की भाजपा-जदयू सरकार को विश्वास मत हासिल करना था. राजनीतिक माहौल काफी तनावपूर्ण था और तरह-तरह की बातें हवा में थीं. ग्रामीण और शहरी इलाकों में जहां से महिलाओं को शामिल होना था वहां कई लोगों ने प्रचार कर दिया था कि प्रदर्शन नहीं होगा क्योंकि पटना में धारा 144 लगा दी गई है. कई जगह से महिला साथियों के फोन आने लगे कि कार्यक्रम होगा या नहीं. प्रदर्शन की इजाजत मिली है या नहीं. लेकिन हम लोगों ने कहा कि प्रदर्शन होगा और बिल्कुल विपरीत माहौल में कई अन्य कार्यक्रमों के दबाव के बीच 11 फरवरी की रात से ही महिलाएं पटना आने लगीं और 12 फरवरी को महिलाओं की विशाल संख्या जुटी. महिलाओं को गेट पब्लिक लाइब्रेरी के निकट जहां से इकट्ठा होकर जुलूस की शक्ल में गर्दनीबाग धरना स्थल पर जाना था. वहां जब महिलाएं जमा होने लगीं तो पुलिस ने वहां उन्हें रुकने की इजाजत नहीं दी और समय से पहले ही जबकि आधी महिलाएं भी वहां इकट्ठी नहीं हो पाई थीं, उनको वहां से चुपचाप धरना स्थल पर जाने को कहा. लेकिन महिलाएं जोश के साथ नारे लगाती हुई जुलूस निकालकर रैली स्थल पर पहुंचीं. दोपहर तक अन्य जिलों से महिलाएं आती रहीं और महिलाओं की सभा चलती रही.
उस दिन विधानसभा के भीतर तिकड़मों, खरीद-फरोख्त, धमकियों और पुलिस के बल पर भाजपा अपनी सरकार बचाने में लगी थी और बाहर सड़क पर महिलाएं डटी हुई थीं - इस ऐलान के साथ कि सदन में विश्वास मत भले हासिल कर लो, जनता में तुम्हारा विश्वास उठ चुका है.
तमाम विपरीत स्थितियों में कई हजार महिलाओं का पटना पहुंचना दिखाता है कि बिहार में महिलाओं में किस कदर बेचैनी है. कहा जा रहा था कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से प्रधानमंत्री मोदी महिलाओं में अधिक लोकप्रिय हो गए हैं, जबकि पूरी रैली के दरमियान गर्दनीबाग मोदी के खिलाफ नारों से गुंजता रहा.
महिलाओं के 10 ज्वलंत सवालों पर आयोजित इस प्रदर्शन में अलग-अलग जिलों से महिलाएं अपने-अपने सवालों को लेकर पहुंची थीं. महंगाई, खास तौर पर रसोई गैस की कीमत से सभी तबके की महिलाएं परेशान दिखीं और इस मुद्दे ने उन्हें प्रभावित किया है. महंगी होती शिक्षा से लड़कियों को और माताओं को अपनी बेटियों का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है. पढ़ी-लिखी लड़कियां जिनमें महागठबंधन सरकार में शिक्षक नियुक्ति शुरू होने से उम्मीद जगी थी कि उन्हें भी रोजगार के अवसर मिलेंगे, उनमें निराशा बढ़ी है. स्वास्थ्य, रोजगार, प्राइवेट बैंकों के कर्ज, असमान व कम मेहनताना और महिलाओं की असुरक्षा, हिंसा, यौन उत्पीड़न के प्रश्न हर तबके की महिलाओं को प्रभावित कर रहे हैं. महिलाएं चाहे गृहणी हों, खेत मजदूर हों, स्कीम वर्कर्स में हों या सरकारी-अर्ध सरकारी योजनाओं में काम कर रही हों, सभी महिलाएं इन तमाम मुद्दों से प्रभावित हैं और उनके भीतर मोदी-नीतीश सरकार के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा दिखा.
प्रदर्शन में शामिल एक महिला ने कहा कि 5 किलो अनाज को ऐसे प्रचारित किया जा रहा है जैसे मोदी जी कोई दान दे रहे हैं, अव्वल तो यह हमारा हक है लेकिन इसे हम छोड़ देंगे बशर्ते सरकार महंगाई रोके और हमारे लिए सम्मानजनक रोजगार की गारंटी करे!
एक आम धारणा बनाई जा रही है कि शिव चर्चा, कलश यात्रा और अन्य धार्मिक आयोजनों के प्रभाव में महिलाएं हैं और चूंकि इन धार्मिक आयोजनों का भाजपा राजनीतिक इस्तेमाल करती है इसलिए ये सभी महिलाएं भाजपा को ही वोट देंगी. लेकिन, गांवों की बैठकों में महिलाओं की बातों से महसूस हुआ कि सच इसके विपरीत है. धर्मभीरु महिलाएं भले ही इन धार्मिक आयोजनों में शामिल हो रही हैं लेकिन वे इस बात को भी समझ रही हैं कि सरकार गरीबों के लिए नहीं अमीरों के लिए काम कर रही है. वे समझ रही हैं कि उनकी बदहाली के लिए भाग्य और भगवान नहीं, मोदी सरकार जिम्मेदार है. वे जानती हैं कि धर्म के नाम पर हिंदू-मुस्लिम महिलाओं में भेदभाव की राजनीति की जा रही है. इसलिए अपने मुद्दों पर संघर्ष के लिए महिलाओं की एकता और एकजुटता की जरूरत वे समझ रही हैं. ग्रामीण महिलाएं जो आमतौर पर चुप रहती हैं अपने मुद्दों को मुखरता से नहीं रख पातीं लेकिन उनके भीतर जो गुस्सा है वह बातचीत करते ही फूट पड़ता है. बिहार की महिलाओं में बढ़ता विक्षोभ दिखा रहा है कि आने वाले समय में महिलाएं बिहार में परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण सूत्रधार बनेंगी.
3 मार्च को पटना में लोकतंत्र बचाओ, संविधान बचाओ जन विश्वास रैली में निश्चय ही उनकी बड़ी भागीदारी देखने को मिलेगी.