कूच बिहार (पश्चिम बंगाल) के सीतलकुची में वोट डालने के लिए पंक्ति में खड़े चार मतदाताओं को सीआइएसएफ के केंद्रीय जवानों ने फायरिंग कर मार डाला.
खबर है कि ये चारों गरीब परिवारों के कामगार थे: इनमें दो तो प्रवासी मजदूर थे – नूर आलम मियां और मनिरुज्जमन मियां; एक पहली बार वोट डालने गया समीउल हक था; और चौथा एक राजमिस्त्री हमीदुल मियां था. इनके अलावा, एक अलग घटना में 18-वर्षीय पहली बार के वोटर आनंद बर्मन को अनचीन्हे अपराधियों ने गोली से मार डाला.
ऐसी फायरिंग पश्चिम बंगाल चुनावों में केंद्रीय बलों की भूमिका और मंशा पर गंभीर सवाल खड़ा करती है. शांति बनाये रखने और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के बजाय केंद्रीय बल खूनखराबा कर रहे हैं और वोटरों को डरा-धमका रहे हैं. भाजपा नेताओं के बयानों से भी संकेत मिलता है कि केंद्रीय सशस्त्र बल भाजपा के हितों को आगे बढ़ाने के लिए मतदाताओं को डरा-धमका रहे हैं.
यहां हम उन दृष्टांतों की सूची दे रहे हैं, जहां भाजपा के नेतागण सांप्रदायिक रूप से निशाना बनाने और वोटरों को धमकाने के लिए सीतलकुची फायरिंग का इस्तेमाल करना चाहते थे:
- सीआइएपएफ और अन्य केंद्रीय बल अमित शाह की अगुवाई में गृह मंत्रालय को जवाब दे रहे हैं, जो फिलहाल पश्चिम बंगाल में चुनावी मुहिम चला रहे हैं, और अपने भाषणों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज करने के लिए इस फायरिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं. शाह ने (गलत ढंग से) आरोप लगाया है कि मुख्य मंत्री ने सिर्फ उन चार मृतकों के प्रति शोक जाहिर किया जिनके समुदाय का वे ‘तुष्टीकरण’ करना चाहती हैं, और कि उन्होंने आनंद बर्मन की मौत पर दुख व्यक्त नहीं किया. तथ्य तो यह है कि पूरे पश्चिम बंगाल में इन पांचों मृतकों के प्रति शोक जाहिर किया जा रहा है. इनमें से चार की मौत केंद्रीय बल की गोलियों से हुई है, और निर्वाचन आयोग तथा गृह मंत्रालय इन मौतों के लिए जिम्मेदार हैं.
- पश्चिम बंगाल के भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने धमकी दी है कि अगर ‘गंदे लोग ठीक तरह से व्यवहार नहीं करेंगे’ तो ‘कई जगहों पर सीतलकुची जैसी घटनाएं’ होंगी, और यह भी कहा कि इन ‘गंदे लोगों’ को ‘पश्चिम बंगाल में रहने’ की इजाजत नहीं दी जाएगी.
- एक दूसरे भाजपा नेता सयांतन बसु ने एलान किया कि चुनाव के बाकी चार चरणों में सीतलकुची जैसे 16 जनसंहार किए जाएंगे.
- लोकसभा चुनावों के दौरान सयांतन बसु ने अपने भाषण में केंद्रीय बलों से आग्रह किया था कि वे ‘बूथ लुटेरों के पैरों में नहीं, उनके सीने में गोली मारें’. उस समय निर्वाचन आयोग ने कहा था कि वे बसु के खिलाफ कार्रवाई करेंगे. क्या कोई कार्रवाई हुई? अगर नहीं, तो उन्हें सजा देने में नाकामी ने बसु का मनोबल ही बढ़ाया कि आज वे केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की ओर से धमकियां देते फिर रहे हैं.
भाजपा नेतृत्व सीआइएसएफ की ओर से बोल पा रहे हैं, मानो कि वह उनकी निजी सेना हो – यह तथ्य संकेत करता है कि पश्चिम बंगाल के चुनावों में भाजपा-नीत केंद्र सरकार किस प्रकार केंद्रीय बलों का दुरुपयोग कर रही है.
यह तथ्य कि सीआइएसएफ फायरिंग में मारे गए चारों मतदाता मुस्लिम थे, दिलीप घोष और सयांतन बसु के शब्दों में छिपे अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति उनकी सांप्रदायिक धमकियों को उजागर कर देता है.
जन-संहार के बारे में अनुत्तरित सवाल:
- तथ्य यह है कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि उन चार मृतकों ने सीआइएसएफ की रायफलें छीनने की कोशिश की थी, जैसा कि साआइएसएफ आरोप लगा रहा है. इसके भी साक्ष्य नहीं है कि वे लोग सचमुच किसी तरह की हिंसा में शामिल थे.
- उस जनसंहार से बचे एक नाबालिग लड़के मृनल हक के शरीर पर कई जख्म पाए गए जो डंडों से पिटाई के निशान थे. ग्रामीणों का कहना है कि जब उनलोगों ने बगैर किसी उकसावे के मृनल की पिटाई का विरोध किया, तो सीआइएसएफ ने गोली चला दी जिसमें उन चारों की मौत हो गई. मृनल के शरीर पर वे जख्म निर्वाचन आयोग को पुलिस पर्यवेक्षक द्वारा दी गई उस रिपोर्ट को झूठ साबित कर देते हैं कि मृनल बीमार होकर गिर पड़ा था और लोगों ने गलत समझ लिया कि जवानों ने उसे पीटा है और तब वहां भीड़ इकट्ठा हो गई और उन्होंने सीआइएसएफ पर हमला कर दिया.
- मीडिया की रिपोर्ट में पहले बताया गया कि वहां 300-400 लोगों की भीड़ थी, लेकिन अब बताया जा रहा है कि वहां सिर्फ 70-80 लोग ही मौजूद थे. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए न्यूनतम शक्ति का इस्तेमाल होता है. पश्चिम बंगाल में सीआइएसएफ को क्यों तैनात किया गया, जबकि यह सर्वविदित है कि सीआइएसएफ के पास भीड़ को नियंत्रित करने का न तो कोई अनुभव है और न ही कोई प्रशिक्षण? अगर सीआइएसएफ के इस दावे को मान भी लिया जाए कि लड़के की पिटाई पर ग्रामीण उत्तेजित हो गए थे, तो सीआइएसएफ के जवान घातक फायरिंग का सहारा लिए बगैर 100 से भी कम की भीड़ को क्यों नहीं काबू में ला पाए?
- यहां तक कि सीआइएसएफ ने भी दावा नहीं किया है कि वे मृतक हथियारों से लैस होकर बूथ पर आए थे. अगर वे लोग सचमुच हिंसा की योजना बना रहे थे, तो उन्हें हथियारों से लैस होना चाहिए था. लेकिन वे निहत्थे आए थे, क्योंकि उन्हें सिर्फ अपना वोट डालना था. इस पर यकीन करना मुश्किल है कि चार निहत्थे लोग सीआइएसएफ जवानों से अचानक उनके रायफल छीनने लगेंगे, जबकि वे अच्छी तरह जानते थे कि वहां सीआइएसएफ की पूरी तरह से हथियाबंद एक बटालियन मौजूद है.
- हम जानना चाहते हैं कि निर्वाचन आयोग ने सीआइएसएफ के बयान को उसे पुष्ट करने वाला कोई साक्ष्य मांगे बगैर कैसे स्वीकार कर लिया. बेशक, सीआइएसएफ के दावों की संपुष्टि के लिए सीसीटीवी फुटेज अथवा अन्य विडियो साक्ष्य तो रहे ही होगें?
हम मांग करते हैं कि:
- सीतलकुची में सीआइएसएफ फायरिंग की तत्काल जांच कराई जाए,
- फायरिंग का आदेश देने वाले अधिकारी समेत तमाम जिम्मेदार सीआइएसएफ जवानों को गिरफ्तार किया जाए और जनसंहार के लिए उन्हें सजा दी जाए,
- निर्वाचन आयोग सीआइएसएफ की तैनाती को वापस करे और मतदाताओं में विश्वास बहाल करने के उपाय करे,
- निर्वाचन आयोग दिलीप घोष, सयांतन बसु, अमित शाह और ऐसे अन्य नेताओं पर चुनाव प्रचार करने से प्रतिबंध लगाए जो फायरिंग में मारे गए लोगों को दोषी ठहरा रहे हैं अथवा फायरिंग की घटना को सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं, तथा उन्हें नफरत फैलाने और डराने-धमकाने के मामले में आदर्श आचार संहिता और जन प्रतिनिधित्व कानून की प्रासंगिक धाराओं के तहत दंडित करे.
हम आह्वान करते हैं कि सीआइएसएफ फायरिंग के मृतकों के प्रति शोक प्रकट करने के लिए 13 अप्रैल को ‘अखिल भारतीय प्रतिवाद दिवस’ मनाया जाए और कूच बिहार में मारे गए सभी पांच वोटरों के लिए न्याय की मांग की जाए.